सर्वत्र उदारीकरण-उदारीकरण की चिलपों मची हुई है। हर कोई उदारीकरण का राग अलाप रहा है। ऐसे में बाजार भी किसी से पीछे नहीं है। बाजार भी कह रहा है कि वो उदार है। आज अगर कोई नंगा दिखता है तो समझिये वो फैशन परस्त है। आज कोई भूखा है तो समझिये वो डाइटिंग कर रहा है। आज कोई परेशान है तो समझिये परेशान होना उसकी फितरत है। आज कोई घी नहीं पीता तो समझिये घी पीने से उसका पेट खराब हो जाता है। बाजार सारी आम-ओ-खास चीजे उदार हो कर दे रहा है। वह भी जीरो परसेंट इंट्रेस्ट पर। है न गजब की उदारता! बाजार बहुत उदार हो चला है। आज शिकायत वो नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। ‘हमें तो कोई पूछता नहीं’ का दर्द अब नहीं रहा। आज परेशानी की वजह तो ‘अरे यार ये तो पीछे पड़ गये’ है। आप क्या सोच रहे है? यही न! क्या कभी बाजार भी उदार हो सकता है? क्या बाजारू शब्द का अर्थ बदल गया है,जो बाजार की विशेषताओं के कारण ही अस्तित्व में आया! वो बाजार जहाँ बड़े से बड़े पल भर में नंगे हो जाते है, क्या अब वो वैसा नहीं रहा! वो बाजार जो किसी को नंगा करने के बाद शर्मता भी नहीं, क्या उसका हृदय परिवर्तन हो गया है! फिलहाल बाजार तो यही कर रहा है कि वो उदा