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Showing posts from March 4, 2009

आतंकवाद पर वार करती विनोद बिस्सा जी की कविता ''शर्म करो''

आतंकवाद पर वार करती विनोद बिस्सा जी की कविता ''शर्म करो'' विनोद बिस्सा अब हिन्दुस्तान का दर्द के लिए नया नाम नहीं है इनकी रचनायें सत्य से जुडी हुई होती है तो पढिये बहस का बिगुल बजाती दूसरी कविता ''शर्म करो''!!! .....शर्म करो...... खिलाड़ियों पर आतंकी हमला और सियासती टिप्पणिया अब तो शर्म भी शर्मिंदा है पर अफसोस लोकतंत्र के पहरेदारों के लिये महज ये सियासी किस्सा है ... नहीं फिक्र किसी को हैवानियत के परिणामों की महज औपचारिकता बची हैं चिंता, शोक श्रद्धांजलियों की ...... ..............विनोद बिस्सा आगे पढ़ें के आगे यहाँ

बहस का आगाज़-दो कविताओं से

हिन्दुस्तान का दर्द द्वारा आयोजित बहस का आगाज़ कर रहे है हम दो कविताओं के माध्यम से जिसे लिखा है ! संजीव बर्मा जी ने एवं दूसरी रचना को सजाया है विनोद बिस्सा जी ने तो पढिये इन कविताओं को और दीजिये बहस पर अपनी राय !! तुमको मालूम ही नहीं, शोलों की तासीर. तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर? बहरे मिलकर सुन रहे, गूंगों की तक़रीर, बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर. दहशतगर्दों की हुई, है जब से तक्सीर. वतनपरस्ती हो गयी, खतरनाक तक्सीर. फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर. भीष्म द्रोण कुरु कृष्ण कृप, घूरें पांडव वीर. हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर. प्यार-मुहब्बत ही रहे, मज़हब की तफसीर. सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर. हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर. हिंद और हिंदी करे, दुनिया को तन्वीर. बेहतर से बेहतर बने, इंसान की तस्वीर. हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर. खिदमत भूली कर रही, बातों की तब्जीर. तरस रहा मन 'सलिल' दे, वक्त एक तब्शीर. शब्दों के आगे झुकी, जालिम की शमशीर. - आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा आगे पढ़ें के आगे यहाँ

maharastra ka halla

हल्ला सुना महारास्ट्र - महारास्ट्र का सुन के अजीब लगा की हम अभी नही सम्हाल सके है रास्ट्र और चिल्लाते है महारास्ट्र महारास्ट्र अरे क्या चाहते हो करके हल्ला क्या कभी सोचा होगा किसी ने की होगी मार अपनों में रास्ट्र के भीतर महारास्ट्र के लिए कभी आप सोचे जरा गौर से की क्या सम्भव है राष्ट्र के भीतर भी महारास्ट्र जैसे पृथ्वी के अन्दर अकास या ब्रम्हांड जैसा ही कुछ ? www.pathiik.blogspot.com

आरती आस्था जी की कविता ''लिखावट''

कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत आज हम आपके लिए जो कविता प्रकाशित कर रहे है उसे अपने अल्फाजों से सजाया है आरती आस्था जी ने ! कलम का सिपाही मे सहयोग के लिए हम आपके आभारी है और हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ! इस रचना पर आप अपनी राय दें ! लिखावट हाथो से जो नही लिख पते हम लिखने की कोशिस करते है बहुत बार आसुओ से इस आस में की शायद लिख जाए कुछ ऐसा जो न लिखा गया हो अब तक हमारी किस्मत में............! आगे पढ़ें के आगे यहाँ

मुस्लिम धोखेबाज़ होते हैं !??

पाकिस्तान में कल श्रीलंकाई खिलाडियों पर कुछ दहशतगर्दों ने जो हमला किया उससे ये साफ़ हो गया कि पाकिस्तान में किस तरह से आतंकियों ने अपनी पैठ बना ली है| उनके वहां के स्थानीय नागरिकों और कुछ राजनितिक पार्टयों से शह भी मिली हो सकती है, से इंकार नहीं किया जा सकता | जिस तरह से अपने भारत में भी कुछ संस्थाए प्रत्यक्ष रूप से आतंक का पर्याय बन कर कभी गुजरात तो कभी कर्णाटक में अपनी दहशत फैलाती रहती है| ( पढ़े मेरा लेख यहाँ चटका लगाकर ) कुल मिला कर यह बहुत ही कायराना पूर्ण हरक़त थी और अल्लाह का लाख लाख शुक्र था कि क्रिकेट के खिलाडियों में से कोई हताहत नहीं हुआ| इससे एक बहुत बड़ा फर्क यह हो सकता है कि पाकिस्तान में घटी यह आतंकी घटना से सीधे रूप से खेल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और मुझे नहीं लगता कि भविष्य में कोई भी वहां खेलने जायेगा लेकिन यह दुर्भग्य भी हो सकता है कि क्रिकेट विश्व-कप की मेजबानी जो एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप) के देश करने जा रहे हैं वो ना छीन जाये | मैंने अभी यहाँ हिंदुस्तान के दर्द पर देखा एक जनाब अपने दर्द का इज़हार कर रहे थे, एक नहीं दो नहीं अनेक पोस्ट एक साथ करके यानि जैसे जैसे दर

उनको मटियामेट करना होगा

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ अब जरूरत है कि विश्व विरादरी पाकिस्तान पे हमला कर के उसे नेस्तनाबूद कर दे नहीं तो अभी कितने और बेगुनाह मारे जायेगे।और आतंकवादियों के दमादों जो भारत सहित कई देशों में हैं जो अफजल्गुरूओं के मानवाधिकारों किबात करते है सबसे पहले उनको मटियामेट करना होगा।

ताकि भाईचारा बढे़

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ भारत के कुछ फंडू पत्रकार व आतंकवादियों के रिस्तेदार टाईप लोग चाहते थे कि भारत को पाकिस्तान में मैच खेलना चाहिये ताकि भाईचारा बढे़ अगर ऐसा होता तो क्या होता?