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Showing posts from February 25, 2014

हिंदी के लिए बेस्ट सेलर होना इतना आसान क्यूँ ?

विश्व पुस्तक मेला का समापन तो हो गया लेकिन कई सवाल बेजवाब ही रह गए। हिंदी के वर्त्तमान और भविष्य के बारे में कई बातें भी हुई लेकिन बस उम्मीदों के आलावा हिंदी के पास शायद अब कुछ भी नहीं है।हिंदी को लेकर मेरी फ़िक्र बयां करता यह लेख- मैं ऐसे दर्ज़नों लोगों को जानता हूँ जो इंग्लिश की किताबें खरीदते है लेकिन उसे पढ़ते  नहीं है,वो दुर्जोय दत्ता के ''होल्ड माय हैण्ड'' या ''अफकोस आई लव यू'' जैसे रंगीन कवर पेज देखकर,लाइफ स्टाइल के लिए वो किताबें खरीद लेते है।हिंदी में अच्छा कंटेंट उपलब्ध नहीं है ऐसा बिलकुल नहीं है हिंदी में अच्छा लेखन हो रहा है लेकिन पाठकों की विचारधारा ही हिंदी को लेकर बदल चुकी है वो लेखक की किताबों को फ्री पाने की जोड़तोड़ सीख चुके है। नए लेखक होने का यह मतलब बिलकुल नहीं होता की उसकी किताबें महज गिफ्ट में देने के लिए छापी गयी है। जो हिंदी और इंग्लिश दोनों पढ़ते है वो बताएं की उन्होंने ऑफ़कोर्स आई लव यू में ऐसा क्या पढ़ लिया जो उनकी 5 लाख कॉपी बिक गयी,यह बड़ा ही औसत लेखन है। मेट्रो सिटीज में इंग्लिश बहुत बिक रही है,लेकिन हमारे यहाँ कम से क

कल्पेश याग्निक का कॉलम: अच्छा किया जो अंतिम दिन इतनी मर्यादा दिखाई।

एक अच्छा इंसान होना एक बात है और एक अच्छा नेता होना दूसरी। किन्तु हम दोनों बातें किसी एक में ही ढूंढते रहते हैं।      - अज्ञात यह  सभा समाप्त हुई। भारी मिठास के साथ। मिसाल बनी। पन्द्रहवीं लोकसभा का यह अंतिम दिन था। शुक्रवार 21 फरवरी 2014 को समूची संसद भाईचारे, स्नेह और गरिमा का प्रतीक बन कर उभरी। बहुत ही अच्छा किया। क्योंकि देशवासी अभी भूले नहीं हैं। मिर्च छिड़कना। माइक को चाकू की तरह इस्तेमाल करना। बाकी सांसदों को आंसू बहाने पर विवश कर देना। अभी कल की ही तो बात है। तेलंगाना को पृथक राज्य बनाने का कानून किसी 'वयस्क' दृश्य की तरह लोकसभा के लाइव प्रसारण से सेंसर कर दिया गया था। कहीं हम देख न लें कि कितने लज्जाजनक हैं हमारे चुने हुए सांसद। इसलिए अंतिम दिन भाईचारा दिखाना आवश्यक था। अब लोगों के बीच जो जाना है। चुनाव में कोई पूछेगा नहीं कि आपने लोकसभा में तो स्तर गिराया। किन्तु लोगों के मन में कहीं न कहीं यह बात रह जाती है। बड़े नेताओं के लिए ख़तरा हमेशा बना रहता है। हर तरह का। लोग कहेंगे कि वे क्या कर रहे थे? पूछेंगे कि आपका बड़प्पन कहां गया? इतना स्नेह विरोधियों के बीच में द