जरा , यह भी आईने में देखें । 1857 में उत्तर भारत के अन्य रियासतों के साथ ही जोधपुर रियासत में भी क्रांति का बिगुल बजा था । यहाँ एरिनापुर छावनी में अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों ने सर्वप्रथम विद्रोह का झंडा बुलंद किया। आउवा के सामंत कुशल सिंह ने सिपाहियों को नेतृत्व प्रदान किया है । क्रांतिकारियों ने चलो दिल्ली मारो फिरंगी का नारा लगते हुए दिल्ली की और कूच कर दिया। क्रांतिकारियों ने जोधपुर में नियुक्त अंग्रेजो के पोलिटिकल एजेंट मोंक मेसन का सर कलम कर दिया। यह घटना आज भी जोधपुर के लोकगीतों में कुछ इस तरीके से दर्ज है -'' ढोल बाजे चंग बाजे,भालो बाजे बांकियो। एजेंट को मार कर दरवाजे पर टाकियों । '' उस समय यहाँ के महाराजा तख्त सिंह ने क्रांतिकारियों का साथ देने के बजाये उन्हें रोकने के लिए अंग्रेजो को दस हजार सेना व 12 तोपों की सहायता प्रदान की । भीषण संघर्ष में क्रांतिकारियों के नेता कुशल सिंह को जान गावानी पड़ी । हजारो क्रांतिकारी मारे गए और राजपरिवार की गद्दारी के चलते आन्दोलन दबा दिया गया। जोधपुर की तरह ही कोटा में