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Showing posts from May 10, 2009

Loksangharsha: 1857 से 1947 गद्दारी दर गद्दारी

जरा , यह भी आईने में देखें । 1857 में उत्तर भारत के अन्य रियासतों के साथ ही जोधपुर रियासत में भी क्रांति का बिगुल बजा था । यहाँ एरिनापुर छावनी में अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाहियों ने सर्वप्रथम विद्रोह का झंडा बुलंद किया। आउवा के सामंत कुशल सिंह ने सिपाहियों को नेतृत्व प्रदान किया है । क्रांतिकारियों ने चलो दिल्ली मारो फिरंगी का नारा लगते हुए दिल्ली की और कूच कर दिया। क्रांतिकारियों ने जोधपुर में नियुक्त अंग्रेजो के पोलिटिकल एजेंट मोंक मेसन का सर कलम कर दिया। यह घटना आज भी जोधपुर के लोकगीतों में कुछ इस तरीके से दर्ज है -'' ढोल बाजे चंग बाजे,भालो बाजे बांकियो। एजेंट को मार कर दरवाजे पर टाकियों । '' उस समय यहाँ के महाराजा तख्त सिंह ने क्रांतिकारियों का साथ देने के बजाये उन्हें रोकने के लिए अंग्रेजो को दस हजार सेना व 12 तोपों की सहायता प्रदान की । भीषण संघर्ष में क्रांतिकारियों के नेता कुशल सिंह को जान गावानी पड़ी । हजारो क्रांतिकारी मारे गए और राजपरिवार की गद्दारी के चलते आन्दोलन दबा दिया गया। जोधपुर की तरह ही कोटा में

.मेरी माँ........

हँसती, खिलखिलाती ,मुस्कराती ....मेरी माँ लिए आँखों में छवि उस ममता की मूरत की उसकी छाव तले..मिलता ...... मेरे तपते दिल को जो सुकून ..... सूरज सा तेज उसकी आँखों में .... मिलती चांदनी की ठंडक उसकी पनाहों में ...... प्यार है उसका ..पवन सा पावन..... मन में उसके शीतलता भरी......... स्पर्श है उसका जैसे हरता हर दर्द को मेरे , लेती बंलाये वोह मेरी .... ममता पे वो अपनी ......सदके सदके ..वो वारी वारी .... माँ.....वो माँ......माँ मेरी ...... (....कृति....अनु....)

Loksangharsha: यह क्या है ?

' 'भारत माता की जय सुनिश्चित करें !'' -आडवाणी '' भारत का निर्माण करें , विभाजन की शक्तियों को पराजित करें '' - आडवाणी '' हिंदू हितों की पोषक बने राजनीती , हिंदू अस्मिता की रक्षा करने वाली सत्ता बने !'' - R.S.S चुनाव अब अपने अन्तिम चरणों में प्रवेश कर रहे है । मतदान क्षेत्रो के एक और हिस्से में वोट डाले जायेंगे। मतदाता अपनी -अपनी पार्टिया चुनने में लगे हुए है । लेकिन इन सारी गतिविधियों के बीच एक पार्टी ऐसी भी है जो तय नही कर पा रही है कि आखिर वोटरों से क्या कहा जाए! अब तक मीडिया और अखबारों में साम्प्रदायिकता के जहरीले प्रचार और व्यक्तिगत चरित्र हनन ,वह भी अत्यन्त ही निम्न स्तर पर उतरकर, के अलावा भाजपा वोटरों से कुछ भी नही कह पाई है । ऊपर उल्लिखित नारों से पता चलता है कि भाजपा और उसका निर्देशक R . S . S अनिश्चितता और भयंकर दुविधा के दौर से गुजर रहे है । ये दिलचस्प नारे और्गेनाइज़र और पांचजन्य के 12 और 19 अप्रैल के अं

देश पर न्यौछावर बेटा मेरा - मदर्स डे स्पेशल

चिलचिलाती धूप में आंचल की ओट में यूं चेहरा, बारिश में कोमल हाथों से भीगे बाल पोंछना, गोदी में बैठकर रोटी का वो कौर, रात की लोरियां और सुबह जल्दी उठने पर रोज रोज झिड़कियां। मां से जुड़ी यादें इतनी सारी हैं कि उस रग रग में बसे ममत्व को कहने के लिए एक दिन नाकाफी है। अपनी मां को नमन करने, कृत्ज्ञता व्यक्त करने और उसके सारे दुलार को फिर से तरोताजा कर देने के लिए मदर्स डे काफी खास है। अपनी मां के वात्सल्य और पोषण को न भूलते हुए क्यों न आज उस मां को नमन करें, जिसनें अपने बेटे को खुद के सुख के लिए संजोय नहीं रखा बल्कि देश की सुरक्षा के लिए उसकी आहुती दे डाली। सलाम उस मां को जिसके बेटे ने सरहद पर लड़ते हुए दम तोड़ा और वह घर पर इस इंतजार में बैठी रही कि बेटा जब लौटेगा तो दुलार से सेहरा बांधेगी, अपने हाथों से खाना बनाएगी, उसकी सूनी आंखो में बेटे की परछाई तो नहीं पड़ी लेकिन आंखों की कोर गीली हो गई। इस गर्व के साथ कि उसने जो किया है वह हर कोई नहीं कर सकता.... याद करें उन मांओं को जिनके पास अब बस अपने बेटे की यादें रह गई हैं...उस मां को जिसने अपने बच्चों की जिम्मेदारी अकेले उठा रखी है.क्योंकि उसका प

खत मां के नाम

याद है सीख ‘हमें किसी के बारे में पहले से ही कल्पना नहीं करनी चाहिए। किसी की निंदा का जीवन में स्थान नहीं होना चाहिए, क्योंकि इंसान पल-पल बदलता है।’ मां के ये शब्द आज भी मन में बसे हुए हैं। मेरे जीवन की प्रेरणा मेरी मां ही हैं। मेरी भाषा, मेरे संस्कार सब उन्हीं के देन हैं। मां प्रसिद्ध थीं इसलिए उसका सीधा असर हमारे व्यक्तित्व पर पड़ा। आज मैं भी मां हूं और जीवन के हर कदम पर उसके (मां के) पदचिह्नें पर चल रही हूं। मुझे आज भी वो क्षण याद है जब मेरे हाथों में इंफेक्शन हो गया था और दोनों हाथों से काम करना मुश्किल था। इस स्थिति में मां ने उस तरह खयाल रखा जिस तरह नवजात शिशु का रखा जाता है। मां का स्थान दुनिया में सबसे ऊपर है। अनुराधा शंकर, डीआईजी इंटेलीजंेस मां तुम्हें क्या दूं! हर साल की तरह फिर मदर्स-डे आया है और इस बार भी मैं दुविधा में हूं कि मां तुमको क्या तोहफा दूं। आज तक मां तूने ही तो मुझे दिया है प्यार और दुलार। जब भी तुम्हें तोहफा देने के बारे में सोचती हूं तो दुविधा में पड़ जाती हूं, क्योंकि संसार के सारे तोहफे यदि एकत्रित कर लूं तो भी तुम्हें देने लायक तोहफा न बना पाऊंगी। इसलिए हर

मदर्स-डे पर चंद्रकांत देवताले की रचना

चंद्रकांत देवताले मां के लिए संभव नहीं होगी मुझसे कविता अमर चिऊंटियों का एक दस्ता मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है मां वहां हर रोज चुटकी-दो चुटकी आटा डाल देती है मैं जब भी सोचना शुरू करता हूं यह किस तरह होता होगा घट्टी पीसने की आवाज मुझे घेरने लगती है और मैं बैठे-बैठे दूसरी दुनिया में ऊंघने लगता हूं जब कोई भी मां छिलके उतारकर चने, मूंगफली या मटर के दाने नन्हीं हथेलियों पर रख देती है तब मेरे हाथ अपनी जगह पर थरथराने लगते हैं मां ने हर चीजा के छिलके उतारे मेरे लिए देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया मैंने धरती पर कविता लिखी है चंद्रमा को गिटार में बदला है समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया सूरज पर कभी भी कविता लिख दूंगा मां पर नहीं लिख सकता कविता आगे पढ़ें के आगे यहाँ

ओ माँ.....तेरे बारे में क्या कहूँ...मैं तो तेरा बच्चा हूँ....!!

माँ के बारे में मैं क्या कहूँ अब.........आँखे नम हो जाती हैं माँ की किसी भी बात पर........दरअसल माँ का कृत्य इतना अद्भुत होता है कि उसका पर्याय धरती पर ना कभी हुआ और ना कभी हो भी सकता है......आदमी की सीमितताओं के बीच भी माँ जिन कार्यों को अपने जीवन में अंजाम देती है....वह उसे एक अद्भुत व्यक्तित्व में परिणत कर देते हैं....माँ सृष्टि का ही एक व्यापक रूप है.... माँ प्रकृति का ही इक पर्याय है....माँ अपनी ससीमताओं के बावजूद भी एक असीम संरचना है....मगर सच तो यह है कि आप जब आप माँ के बारे में कुछ भी कहने बैठते हो तो आपके तमाम शब्द बेहद बौने लगने लगते हैं.....सृष्टि के आरम्भ से ही धरती पर विभिन्न तरह के जीवों की प्रजातियों में माँ नाम की इस संज्ञा और विशेषण ने अपनी संतान के लिए जो कुछ भी किया है... उसके सम्मुख अन्य कुछ भी तुच्छ है....और आदमी की जाति में तो माँ का योगदान अतुल्य है...........!!! माँ के बारे में आप यह भी नहीं कह सकते कि उसने हमारे लिए कितना-कुछ सहा है....सच तो यह है कि हम तो यह भी नहीं जान सकते कि उसे इस "कितना-कुछ" सहने में भी कितना

माँ तुझे सलाम...

माँ...कितना अद्भुत और सम्पूर्ण शब्द है ..जिसकी कोई तुलना ही नहीं है..!सभी भाषाओँ में ये शब्द सबसे लोकप्रिय है..!जब भी कोई व्यक्ति दुखी होता है तो उसके. मुंह से यही शब्द निकलता है..!माँ होती भी ऐसी है..तभी तो बच्चा माँ की उपस्थिति मात्र से चुप हो जाता है..!उसके आँचल और सानिध्य में ही वह सुरक्षित महसूस करता है..!कहा भी गया है पूत ,कपूत हो सकता. है पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती..!वह स्वंय.. भूखी रह कर भी बच्चे को खिलाती है,स्वंय. गीले में सोकर भी उसे सूखे में सुलाती है..ऐसी होती है..माँ!कहते है की एक अकेली माता अपने सभी बच्चों को प्यार से पाल लेती है,लेकिन वही बच्चे सारे मिल कर भी एक माँ को नहीं पाल सकते..!माँ सभी के लिए ममता लुटाती है...उसे अपने सभी बच्चे समान .रूप से..प्रिय होते है..! बच्चे कोई भूल कर दे तो भी वह बच्चों को भूलती नहीं है.!.....पन्ना धय जैसी माँ ने जहाँ अपनी ममता की नई मिसाल पेश की वहीँ हँसते हँसते अपने बेटों को .युद्घ..भूमि में भेजने वाली भी एक माँ ही होती है...."मदर्स डे" पर मैं माँ को बारम्बार नमन....करता हूँ..!

कनिष्क कश्यप: क्यों उठ रहे मेरे ब्लॉग पर सवाल ?

मैंने जैसे हीं अपने ब्लॉग को एक सार्वजनिक स्वरुप दिया , मेरे अन्य मित्रवत व्यवहार करने वालो ने मेरे नक्से कदम पे चलते हुए , वही किया जो मैंने ! परन्तु मेरी और उंगली उठाने से बाज़ नही आए। उनका मानना है कि मैं अपने उद्देश्य को तो कुछ और बता रखा है , और ब्लॉग पर छप कुछ और रहा । मैं पूछता हूँ की अपनी शादी की सी डी बना कर , स्वयं को मुख्य किरदार निभाते हुए देखना , बहुत सुखदायक तो नही , पर अच्छा अवश्य लगता है। स्वयं को नायक की तरह , कैमरे के फोकस में देखना एक पल के लिए सुभाष घई की याद तो दिला हीं देता है। । अ़ब आपने गाँव में होली गाते तो देखा हीं होगा .... एक व्यक्ति पंक्तिओं को गाता हैं और पीछे -पीछे सब उसी को ढोलक और झाल की थाप पर दुहराते हैं। कोई मतभेद नही होता , कोई अलग सुर में नही गाता ..सब एक की सुनते हैं और गाते हैं ।मेरे (उस मित्र )मित्रों ने अपने ब्लॉग का उद्देश्य तो अवश्य बताया , पर उसका अर्थ ख़ुद नही समझ पाए ... उनके शब्दों में "दरअसल हमारा उद्देश्य है " भारतवर्ष में समसामयिक राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर सही वैचारिक दृष्टिकोण , जिसे हम भारतीय नजरिया भी कहते हैं , प्रस्

कसाब को बिरयानी और खेल को देश निकाला

तो कसाब को आखिरकार वकील मिल ही गया। हजारो आतंकवादियो की तरह उसे भी पालने का जिम्मा मनमोहन सिंह ने उठा ही लिया। अब कसाब अंडा सेल में बिरयानी खाते हुए बीस साल तो आराम से निकल ही लेगा और इस बीच उसका कोई भाईजान फिर किसी विमान को हाइजैक कर के उसे पकिस्तान बुलाने का प्रबंध कर ही लेगा, कितना हास्यापद लगता है कि जिस कसाब को सरे देश ने टीवी पर गोलिया बरसाते देखा उसे पहचानने के लिए एक पुलिस अधिकारी को अदालत बुलाया जाता है। क्या इस कमीने को अदालत ने उस वक्त नही देखा जब वो वीटी स्टेशन पर सरेआम खून कि होली खेल रहा था। अजीब है यह देश कि यहाँ चुनाव का हवाला देकर आईपील देश से बाहर करवाकर भारत की नाक कट दी जाती है और कसाब की सुरक्षा के लिए ५० करोड़ देश की जनता के फूंक दिए जाते है। आतंकी की सुरक्षा और खेल को देशनिकाला देना क्या न्यायसंगत है। क्या अब सुरक्षा नही दे पाने के कारण एक दिन सरकार १५ अगस्त का तिरंगा भी दुसरे देश में लहरायेगे। हद है बेशर्मी की यह तो।