लोग देश के पिछड़ेपन पर इस प्रकार रोते हैं जैसे दूसरो की मैय्यत पर रुदालियाँ । हर छोटी- बड़ी कुव्यवस्था के लिए सिस्टम (व्यवस्था ) को जी भर गालियाँ सुना कर ऐसा लगता है मानो कोई जंग जीती हो ! दिन भर में कम से कम एक बार तो किसी न किसी को पकड़ कर अपनी भड़ास निकाल ही लेते हैं हम सब। तब ऐसा महसूस होता है कि जैसे घंटो दबाये मूत्र का त्याग कर दिया है। यह सब आज हमारी दिनचर्या में शामिल है । इसमे एक बड़ी भूमिका मीडिया की भी रहती है । मीडिया तो ठहरी शासन की जन्मजात दुश्मन ! बाज़ार के हाथों में अपना सर्वस्व सौंप चुकी मीडिया जब श्री राम सेना या मनसे को पानी पी पी कर कोसते समय भूल जाती है कि सब किया धरा उसी का है । श्री राम सेना ने किसी को पीटा तो राष्ट्रीय ख़बर हो गई जबकि उसी दिन विदर्भ में दर्जन भर किसान भूख और कर्ज के बोझ से दब करते है और कहीं चर्चा नही होती। राहुल गाँधी एक दिन किसी दलित के घर रुकते हैं तो वो ख़बर होती है लेकिन किशोर तिवारी को कोई नही जनता जिस व्यक्ति ने सारी जिन्दगी विदर्भ के किसानों की सेवा में झोंक दी है। तो भइया यहाँ सब ऐसा ही चलता है ये मैं नही हम सब कह कर टाल जाते हैं । शासन और व्