♦ उदय प्रकाश रा त पौने ग्यारह का शो था। डेढ़ के आस-पास छूटा। पूरा हाल ठसा-ठस भरा हुआ था। हर डायलाग पर तालियां और सीटियां। हर डायलाग एक पंचलाइन। शोले के सलीम-जावेद, यहूदी के सोहराब मोदी और अभी हाल वाले कादिरखान के संवादों को बाहर का गेट दिखाती एक डरावनी, हारर, हास्य-फिल्म। एक वायोलेंट कामेडी। फनी … फन-फिल्म। घर पहुंचते-पहुंचते ढाई बज गये थे। पिटरौल पंप के पास तड़ातड़ गोलियां। कार के दोनों साइड के कांच तोड़ के, कट्टा और आटोमेटिक तमंचे की नली नीचे करके। गियर बक्सा की साइड पर, सीट की आड़ में भी छुपा हो साला तो छेद डाल। दाहिनी कनपटी में छेद हो गया है। खून से बायें हाथ का पंजा भीग गया है। दाहिने में पिस्तौल। बनारस में चिरकुट आर्मडीलर यादव को गोली मार कर उड़ाया गया आटोमेटिक पिस्तौल। कमीज पैंट सब में खून। खूनम खून। सरदार खान सूरज की चकमक रोशनी के खिलाफ चौंधियाया हुआ, मुंह खोल कर सांस भरता, किसी कदर डगमगाता हुआ ‘जयसवाल बिल्डिंग मेटीरियल’ के छकड़े पर गिर कर ढेर हो जाता है। पंजे से पिस्तौल छूट कर जमीन में गिरती है। छकड़े का पहिया पिस्तौल पर चढ़ता है और उसमें भरी हुई गोली … ढ