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Showing posts from August 28, 2010

“आजतक” को दो छड़ी लगाओ, उसने भरोसा तोड़ा है!

कोई भी कंपनी या संस्थान कर्मचारियों की वजह से दिवालिया नहीं होता। उसकी नाकामी के पीछे नेतृत्व का हाथ होता है। नीतियों का हाथ होता है। नेतृत्व कमजोर और दिशाहीन हो तो कोई संस्थान तरक्की नहीं कर सकता। आजतक पर यह बात लागू होती है। लंबे दौर तक पूर्वजों की कमाई खाने वाले इस संस्थान की अराजकता अब स्क्रीन पर नजर आने लगी है। पूर्वज शब्द से यह बोध होता है, जैसे कई सौ साल पुरानी बात हो। लेकिन 15 साल के निजी न्यूज चैनलों के इतिहास में एक पूरी पीढ़ी पीछे छूट गयी है। आप याद कीजिए शुरुआती दौर। टेलीविजन न्यूज की नींव किन-किन लोगों ने रखी थी। एसपी सिंह, सूर्यकांत बाली, राजू खार, उमेश उपाध्याय… क्या आपको कोई भी चेहरा या नाम याद है? बहुत कम लोगों को याद होगा। आजतक ने भी अपने पूर्वज एसपी सिंह की कमाई लंबे समय तक खायी है। एसपी के बाद उदय शंकर का दौर आया। वो बहुत शक्तिशाली लीडर रहे। अपने आग्रहों-पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर उन्होंने आजतक को बतौर न्यूज चैनल बुलंदी पर पहुंचाया। नकवी ने भी लंबे समय तक उस बुलंदी को बरकरार रखा। लेकिन अब वही नकवी उस चैनल को खत्म करने पर तुले हैं। आजतक में नकवी की स्थिति कमोवेश जनसत

दी हुई नींद: हूक

दी हुई नींद: हूक : "एक हूक गांव से काम की तलाश में आये भाई को टालकर विदा करते उठती है परदेस में एक हूक जो बूढ़े पिता की ज़िम्मेदारियों से आंख चुराते हुए उठत..." सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ