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Showing posts from August 31, 2009

लघुकथा: जंगल में जनतंत्र

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ लघुकथा जंगल में जनतंत्र जंगल में चुनाव होनेवाले थे. मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे.- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये. सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये.' ' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद. आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ. ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया. मंत्री जी खुश हुए. तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं. हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया. विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हु

लो क सं घ र्ष !: जीवन है केवल छाया

जीवन सरिता का पानी , लहरों की आँख मिचौनी । मेघों का मतवाला पन , बरखा की मौन कहानी ॥ गल बाहीं डाले कलियाँ , है लता कुंज में हँसती । चलना , जलना , जीवन है आहात स्वर में हँस कहती ॥ संसार समर में कोई , अपना ही है न पराया । सम्बन्ध ज्योति के छल में , जीवन है केवल छाया ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '

पता नही रूक ज़ाता हूँ...

करता कोशिश मेरा दिल जब॥ तेरे दिल से भिड़ने को॥ पता नही क्यो रूक ज़ाता है.. नैना तुमसे मिलने को॥ पथ पर तेरे चल कर आया॥ सात जनम तक रहने को॥ पता नही क्यो पर रूक ज़ाता है॥ संग संग तेरे चलने को... व्याकुल होता बहुरंगी मन॥ पास तुम्हारे आने को॥ पता नही क्यो दिल नही कहता॥ तुमको राज़ बताने को॥ दिल तो धक् धक् कर जाता है॥ तेरे संग मचलाने को॥ पता नही क्यो रूक ज़ाता है॥ पास तुम्हारे आने को॥ रात को सपना बुन लेता हूँ॥ तुमसे प्रीत लगाने को॥ पता नही क्यो कह नही पाता॥ मन की बात बताने को॥