संजय सेन सागर ''कितना कमजोर है गुब्बारा चाँद साँसों में फूल जाता है जरा सा आसमां क्या मिला अपनी औकात भूल जाता है .'' यह शायरी अभी ''महंगाई डायन खात जात है''गाने वाली भजन मण्डली पर सटीक बैठ रही है.वैश्विकरण एवं प्रतियोगी काल में जहा कलाकार अवसरों के लिए दर दर भटक रहे है और एक मौके के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार बैठे है,वही इस भजन मण्डली ने आमिर खान के मान सम्मान को दौलत के तराजू में तौलकर स्वयं की एवं ग्रामीण स्तर के कलाकारों की एक अनचाही सी छबी को देश के सामने प्रस्तुत कर दिया है.जिससे कही ना कही इस तरह से प्राप्त होने वाले अवसरों में कमी आ सकती है. खैर भजन मंडली जिस प्रकार की इच्छा रखती थी उसे आमिर खान ने ससम्मान पूरा कर दिया है अब देखना यह है की भजन मण्डली ६ लाख रुपए के साथ कितने समय तक खुद को सुरक्षित महसूस करती है ! गीत की सफलता की बात की जाए तो यह सिर्फ भजन मण्डली का कारनामा ना होकर आमिर खान का प्रस्तुतीकरण एवं उनके जोखिम लेने वाले स्वाभाव का नतीजा ह