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Showing posts from May 23, 2009

Loksangharsha: यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम....

ङाक्टरेट से सम्मानित , शिक्षामंत्री एस .एम पटेल है। के.के.एन.एफ़ डिग्री उनकी ,उई खींच -खाँच नाइन्थ फ़ेल है॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... आफिस मा लागत छुट्टी है,सब देख रहे है क्रिकिटिया । बाबू औ अफसर दूनौ मिलि, जनता कै खड़ी करैं खटिया ॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... स्वीटर बुन रही मास्टरनी , लरिकउनी गप्पे मार रही। मास्टरनी लरिकउनी मिलिकै,विद्या कै अरथी निकार रही॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... मास्टर जी कुर्सी पर सोवैं ,लरिकै खेले गुल्ली डंडा। खुल गवा पोल पढ़ाई कै ,जब पहुंचे इस्पिट्टर पंडा॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... जब मिला नतीजा कै कारड़,लरिकउनेव कै फूटा भंडा । तब बप्पा किहिन धुनाई खूब,जब देखीं सब अंडै -अंडा ॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... दै रही वजीफा गवरमिन्ट औ,पूरी खीर खियावत है। देखै पिक्चर ,फांकै पुकार ,सब लरिका मौज उडावत है॥ यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम .... -मोहम्मद जमील शास्त्री

लिखने के साथ साथ पढ़ें भी.....

आज बहुत दिनों बाद हिंदुस्तान का दर्द पर आया हूँ..!बहुत खुशी होती .इसकी विकास यात्रा देख कर...!बहुत ही अच्छे लोग जुड़ रहें है इससे..!संजय जी जितनी रूचि ले कर इसे सहेज रहे है वह बहुत बड़ी बात है...!लेकिन एक बात जो मुझे खल रही है वो ये की ..लिखने की बजाय लोग पढने में कम रूचि ले रहे है...!इसका अंदाजा पोस्ट के नीचे टिप्पणिया देख कर हो जाता है..!मेरा आप सब लोगों से विनम्र निवेदन है की कृपया कुछ समय पोस्ट को पढने में तथा ने में भी लगायें ताकि नए लोगों को प्रोत्साहन मिल सके...तभी हमारा ब्लॉग नित नई . .मंजिले... ...छुएगा....!

मंजिल अपनी यह अन्तिम नही।

''कठिन राहो से गुजरे बिना मिल जाए , फूलो की घाटियाँ यह मुमकिन नही। बढ़ चलो ,हम राह पे , सोच मंजिल निकट। दृढ संकल्प से भरे , लक्ष्य मुमकिन नही ॥ '' पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य , पग धरे सोच कर । असफलताओ को धकेल कर हम आगे बढे, मंजिल अपनी यह अन्तिम नही। दिनेश अवस्थी इलाहाबाद बैंक उन्नाव

क्यों यूँही---ग़ज़ल

लोग कहते हैं क्यों यूँही सिर खपाता हूँ । गीत गाता व्यर्थ ही क्यों गुनगुनाता हूँ । गीत ही है ज़िंदगी ,मेरे लिए ऐ दोस्त, ज़िंदगी जीता हूँ में तो गुनगुनाता हूँ। जाने कितने गम ज़माना लिए फिरता है, गीत गाकर में वही तुमको सुनाता हूँ। त्रस्त जीवन है यहाँ हर खासो -आम का , इसलिए जन-जन की बातें कहता जाता हूँ। यदि न गायें गुनगुनाएं क्या करें फ़िर हम, या तो तुम मुझको कहो ,या में बताता हूँ। हो रहीं क्यों जहाँ में ये ख्वारियाँ ,रुस्वाइयां , डरते हो तुम किंतु में तो कह सुनाता हूँ। कौन ढाए है कहर हर खासो-आम पर, श्याम ,तुम कहते नहीं पर मैं तो गाता हूँ।।