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Showing posts from February 27, 2010

होली पर -श्याम मधुशाला -----

श्याम मधुशाला शराव पीने से बड़ी मस्ती सी छाती है , सारी दुनिया रंगीन नज़र आती है । बड़े फख्र से कहते हैं वो , जो पीता ही नहीं , जीना क्या जाने , जिंदगी वो जीता ही नहीं ।। पर जब घूँट से पेट में जाकर , सुरा रक्त में लहराती । तन के रोम - रोम पर जब , भरपूर असर है दिखलाती । होजाता है मस्त स्वयं में , तब मदिरा पीने वाला । चढ़ता है उस पर खुमार , जब गले में ढलती है हाला। हमने ऐसे लोग भी देखे , कभी न देखी मधुशाला। सुख से स्वस्थ जिंदगी जीते , कहाँ जिए पीने वाला। क्या जीना पीने वाले का, जग का है देखा भाला। जीते जाएँ मर मर कर, पीते जाएँ भर भर हाला। घूँट में कडुवाहट भरती है, सीने में उठती ज्वाला । पीने वाला क्यों पीता है, समझ न सकी स्वयं हाला । पहली बार जो पीता है ,तो, लगती है कडुवी हाला । संगी साथी जो हें शराबी , कहते स्वाद है मतवाला । देशी, ठर्रा और विदेशी , रम,व्हिस्कीजिन का प्याला। सुंदर -सुंदर सजी बोतलें , ललचाये पीने वाला। स्वाद की क्षमता घट जाती है , मुख में स्वाद नहीं रहता । कडुवा हो या तेज कसैला , पत

लो क सं घ र्ष !: अमेरिकन साम्राज्यवाद : अंतिम भाग

महायुद्ध यूरोप में लड़ी गयी दो लड़ाइयों को विश्वयुद्ध संज्ञा दी जाती है- प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध। किंतु ज्यादा सही बात यह है कि दुनियां का प्रथम महायुद्ध सं0 रा0 अमेरिका ने पश्चिमी गोलार्द्ध में शुरू किया। यह युद्ध लातिन अमेेरिका कब्जाने के लिये स्पेन से लड़ा गया। स्पेन-अमेरिका युद्ध 1898 हुआ, जिसमें जीर्णशीर्ण स्पेन का राजतंत्र हार गया। फिर तो लातिन अमेरिका में यूरोप का प्रभाव घटता गया और वह धीरे-धीरे पूरी तरह सं0 रा0 अमेरिका के प्रभाव में आ गया। इसने प्रशांत महासागर के हवाई द्वीप पर कब्जा किया और फिलीपींस को भी दबाया। इस तरह पश्चिमी गोलार्द्ध से यूरो को निकाल बाहर कर अमेरिका ने उसे अपना गलियारा बनाया। लातिन अमेरिकी देशों का शोषण-दोहन करने के लिये उसने एक मनरो सिद्धांत अपनाया, जिसके अंतर्गत वहां यूरोपियन देशों का हस्तक्षेप अवांछित करार दिया गया। सर्वविदित है, यूरोप के दोनों ही विश्वयुद्धों में अमेरिकी नीति मुनाफा कमाने की रही। अलबत्ता द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत सोवियत यूनियन जब विश्वशक्ति के रूप में उभरा और समाजवादी अर्थव्यवस्था समानांतर विश्वव्यवस्था के