श्याम मधुशाला शराव पीने से बड़ी मस्ती सी छाती है , सारी दुनिया रंगीन नज़र आती है । बड़े फख्र से कहते हैं वो , जो पीता ही नहीं , जीना क्या जाने , जिंदगी वो जीता ही नहीं ।। पर जब घूँट से पेट में जाकर , सुरा रक्त में लहराती । तन के रोम - रोम पर जब , भरपूर असर है दिखलाती । होजाता है मस्त स्वयं में , तब मदिरा पीने वाला । चढ़ता है उस पर खुमार , जब गले में ढलती है हाला। हमने ऐसे लोग भी देखे , कभी न देखी मधुशाला। सुख से स्वस्थ जिंदगी जीते , कहाँ जिए पीने वाला। क्या जीना पीने वाले का, जग का है देखा भाला। जीते जाएँ मर मर कर, पीते जाएँ भर भर हाला। घूँट में कडुवाहट भरती है, सीने में उठती ज्वाला । पीने वाला क्यों पीता है, समझ न सकी स्वयं हाला । पहली बार जो पीता है ,तो, लगती है कडुवी हाला । संगी साथी जो हें शराबी , कहते स्वाद है मतवाला । देशी, ठर्रा और विदेशी , रम,व्हिस्कीजिन का प्याला। सुंदर -सुंदर सजी बोतलें , ललचाये पीने वाला। स्वाद की क्षमता घट जाती है , मुख में स्वाद नहीं रहता । कडुवा हो या तेज कसैला , पत