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Showing posts from December 14, 2009

गीत: एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए... संजीव 'सलिल'

गीत एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए... * याद जब आये तुम्हारी, सुरभि-गंधित सुमन-क्यारी. बने मुझको हौसला दे, क्षुब्ध मन को घोंसला दे. निराशा में नवाशा की, फसल बोना चाहिए. एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए... * हार का अवसाद हरकर, दे उठा उल्लास भरकर. बाँह थामे दे सहारा, लगे मंजिल ने पुकारा. कहे- अवसर सुनहरा, मुझको न खोना चाहिए. एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए... * उषा की लाली में तुमको, चाय की प्याली में तुमको. देख पाऊँ, लेख पाऊँ, दुपहरी में रेख पाऊँ. स्वेद की हर बूँद में, टोना सा होना चाहिए. एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए... * साँझ के चुप झुटपुटे में, निशा के तम अटपटे में. पाऊँ यदि एकांत के पल, सुनूँ तेरा हास कलकल. याद प्रति पल करूँ पर, किंचित न रोना चाहिए. एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए... * जहाँ तुमको सुमिर पाऊँ, मौन रह तव गीत गाऊँ. आरती सुधि की उतारूँ, ह्रदय से तुमको गुहारूँ. स्वप्न में देखूं तुम्हें वह नींद सोना चाहिए. एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए... *

हार्दिक क्षमा याचना

सहारनपुर वासियों से हार्दिक क्षमा याचना   सहारनपुर :  १३ दिसंबर :   होटल स्काइलार्क , अंबाला रोड सहारनपुर को सभागार बुकिंग हेतु अग्रिम भुगतान करने के बावजूद अंतिम समय में पूर्व निश्चित सभागार देने से मना कर देने के कारण द सहारनपुर डॉट कॉम का लोकार्पण कार्यक्रम आपात्कालीन ढंग से रामतीर्थ केन्द्र , अंबाला रोड में अंतरित किया गया। कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा आपात्कालीन ढंग से फोन और एस.एम.एस. द्वारा सैंकड़ों अभ्यागतों को स्थान परिवर्तन की सूचना दी गई ,  होटल के बाहर सहायक खड़े किये गये जो आमंत्रितों को स्थान परिवर्तन की जानकारी दे सकें।  जनरेटर व जलपान की व्यवस्था के जैसे - तैसे करके वैकल्पिक प्रबंध किये गये।  नगर के सैंकड़ों बुद्धिजीवी , पत्रकार , साहित्यकार , कलाकार , उद्यमी एवं व्यापारी जिनको ससम्मान आमंत्रित किया गया था , होटल स्काइलार्क , अंबाला रोड सहारनपुर पहुंचे और वहां कार्यक्रम होता न देख कर किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में वापिस लौट गये।  होटल स्काइलार्क के प्रबंधकों ने वहां पहुंचने वाले अतिथियों को स्थान परिवर्तन की सूचना देने में अपनी ओर से कोई भी सहयोग देने की भी कोशिश

इस विचार को मैने जमा किया है www.wagonrsmartideas.com में

नवाचार का स्वागत .... हम सब अपनी कार को करते हैं प्यार .. कही लग जाये थोड़ी सी खरोंच तो हो जाते हैं उदास .. मित्रो से , पड़ोसियों से , परिवार जनो से करते हैं कार को लेकर ढ़ेर सी बात ... केवल लक्जरी नही है , अब जरूरत ... है कार घर की दीवारो पर हम करवाते हैं मनपसंद रंग , , अब तो वालपेपर या प्रंटेड दीवारो का है फैशन .. फिर क्यो? कार पर हो वही एक रंग का , रटा पिटा कंपनी का कलर , क्यों न हो हमारी कार युनिक??जिसे देखते ही झलके हमारी अपनी अभिव्यक्ति , विशिष्ट पहचान हो हमारी अपनी कार की ... कार के भीतर भी , कार में बिताते हैं हम जाने कितना समय रोज फार्म हाउस से शहर की ओर आना जाना , या घंटो सड़को के जाम में फंसे रहना .. कार में बिताया हुआ समय प्रायः हमारा होता है सिर्फ हमारा तब उठते हैं मन में विचार , पनपती है कविता हम क्यों न रखे कार का इंटीरियर मन मुताबिक ,क्यों न उपयोग हो एक एक क्युबिक सेंटीमीटर भीतरी जगह का हमारी मनमर्जी से .. क्यो कंपनी की एक ही स्टाइल की बेंच नुमा सीटें फिट हो हमारी कार में .. जो प्रायः खाली पड़ी रहे , और हम अकेले बोर होते हुये सिकुड़े से बैठे रहें ड्राइवर के डाइगोनल .. क्या