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Showing posts from June 18, 2012

सिनेमा को नए रंग दे रही स्त्रियां।

‘सिनेमा महिलाओं के बस की बात नहीं है..’ साल 1913 में भारत में मोशन पिक्चर्स की शुरुआत के साथ इस धारणा ने भी पैठ बना ली थी। भारतीय सिनेमा पर यह पूर्वाग्रह लंबे समय तक हावी रहा। आलम यह था कि महिला पात्रों की भूमिका भी पुरुष निभाते। हालांकि भारतीय सिनेमा के शैशवकाल में ही फिल्म मोहिनी भस्मासुर में एक महिला कमलाबाई गोखले ने अभिनय कर नई शुरुआत की, लेकिन सिनेमा अब भी महिलाओं के लिए दूर की कौड़ी थी। कमलाबाई, चरित्र अभिनेता विक्रम गोखले की परदादी थीं, जिन्होंने बाद में कई फिल्मों में पुरुष किरदार भी निभाए। बाद में फिल्मों में महिलाओं के काम करने का सिलसिला बढ़ता गया और अब यह कोई नहीं कहता कि सिनेमा महिलाओं के बस की बात नहीं।  लाइट, कैमरा, एक्शन.. फ्लैशबैक की बात छोड़ वर्तमान में आते हैं; अभिनय छोड़कर कैमरे के पीछे चलते हैं। शुरुआत फिल्म निर्देशन से करें तो इस फेहरिस्त का पहला नाम जो जहन में कौंधता है वो सई परांजपे का है। सई ऐसी फिल्मकार हैं, जिनमें विविधता है, जिन्होंने अपने निर्देशन से हमेशा हैरान किया है। जादू का शंख, स्पर्श, चश्मेबद्दूर, कथा या दिशा सरीखी फिल्में इसकी बानगी हैं। सई की फ