जब कोई युवा पढ़ाई-लिखाई करके शहरों की ओर भागने की बजाय अपनी शिक्षा और नई सोच का उपयोग अपने गाँव, ज़मीन, अपने खेतों में करने लगे तो बदलाव की एक नई कहानी लिखने लगता है, ऐसे युवा यदि सरकार और संस्थाओं से सहयोग पा जाएं तो निश्चित ही क्रान्तिकारी परिवर्तन ला देते हैं। ऐसी ही एक कहानी है ‘जब शौच से उपजे सोना’ की और कहानी के नायक हैं युवा किसान श्याम मोहन त्यागी......
आर के श्रीनिवासन, डाऊनटूअर्थ की रपट
अपने हरे-भरे खेतों की ओर उत्साह और खुशी से इशारा दिखाते हुए श्याम मोहन त्यागी बताते हैं “आसपास के खेतों के मुकाबले मेरी फ़सल ज्यादा अच्छी हुई है, कारण मानव मल-मूत्र की बनी खाद।“ अपने खेतों की ओर देखते हुए उनकी आंखों में चमक है।
श्याम मोहन त्यागी गांव- असलतपुर, वाया भोपुरा मोड़, गाजियाबाद, के निवासी हैं। श्याम ने अपने खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल करना सन् 2006 से बन्द कर दिया था। खाद के लिये वह अपने गांव के सार्वजनिक शौचालय से मानव मल-मूत्र इकट्ठा करते हैं। चूंकि यह सार्वजनिक शौचालय "पर्यावरणमित्र शुष्क शौचालय" है, मल-मूत्र ठोस और द्रव रूप में अलग-अलग खुद-ब-खुद मिल जा