By रामबहादुर राय दिल्ली के रामलीला मैदान पर रामदेव ने दस्तक दे दी है. बुधवार को उन्होंने रामलीला मैदान पर मीडिया को संबोधित किया और मीडिया ने यह प्रचारित करने की कोशिश की है कि रामदेव 4 जून से अपने अनशन के फैसले पर अडिग है. लेकिन रामदेव के इस अनशन को अगर आंदोलन मान भी लें तो क्या वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं. क्या उनके आंदोलन से समाज का समर्थन मिलेगा और किसी बड़े राजनीतिक परिवर्तन की राह निकलेगी या फिर रामदेव जन भावनाओं के साथ छल कर रहे हैं? रामदेव के आंदोलन को परखने की कसौटियां कई हो सकती हैं लेकिन पिछले तीन चार दिनों में उन्होंने जिस तरह से अपने ही दिये गये बयानों पर लीपा पोती की है उससे इतना तो साफ जाहिर होता है कि वे न केवल आंदोलन समूहों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं बल्कि व्यापक जनभावना का भी अनादर कर रहे हैं. रामदेव को भी पता है कि कैसे अन्ना हजारे और उनके साथी उसी सरकार से लोकपाल के सवाल पर लोहा ले रहे हैं जिसका समर्थन कभी खुद बाबा रामदेव ने किया था. लोकपाल के लिए सरकार और जनता के नुमांइदों के बीच बैठकों का जो दौर चल रहा है उसमें उस वक्त गतिरोध आ गया जब अन्ना हजारे ने