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Showing posts from June 2, 2011

रामदेव की राजनीति

By रामबहादुर राय दिल्ली के रामलीला मैदान पर रामदेव ने दस्तक दे दी है. बुधवार को उन्होंने रामलीला मैदान पर मीडिया को संबोधित किया और मीडिया ने यह प्रचारित करने की कोशिश की है कि रामदेव 4 जून से अपने अनशन के फैसले पर अडिग है. लेकिन रामदेव के इस अनशन को अगर आंदोलन मान भी लें तो क्या वे जनता की उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं. क्या उनके आंदोलन से समाज का समर्थन मिलेगा और किसी बड़े राजनीतिक परिवर्तन की राह निकलेगी या फिर रामदेव जन भावनाओं के साथ छल कर रहे हैं? रामदेव के आंदोलन को परखने की कसौटियां कई हो सकती हैं लेकिन पिछले तीन चार दिनों में उन्होंने जिस तरह से अपने ही दिये गये बयानों पर लीपा पोती की है उससे इतना तो साफ जाहिर होता है कि वे न केवल आंदोलन समूहों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं बल्कि व्यापक जनभावना का भी अनादर कर रहे हैं. रामदेव को भी पता है कि कैसे अन्ना हजारे और उनके साथी उसी सरकार से लोकपाल के सवाल पर लोहा ले रहे हैं जिसका समर्थन कभी खुद बाबा रामदेव ने किया था. लोकपाल के लिए सरकार और जनता के नुमांइदों के बीच बैठकों का जो दौर चल रहा है उसमें उस वक्त गतिरोध आ गया जब अन्ना हजारे ने

हर पल टूटता-बिखरता पाकिस्तान

किसी भी देश के इतिहास में कुछ ऐसे पल आते हैं, जो निर्णायक होते हैं और उसकी किस्मत तय करते हैं। पाकिस्तान इस वक्त ऐसे ही दौर से गुजर रहा है। संकट के साये वैसे तो काफी दिनों से बढ़ रहे थे। साये जब छोटे होते हैं, तो मुंह चिढ़ाते हैं, लेकिन जब अपने कद से बड़े हो जाते हैं, तो डराने लगते हैं। पाकिस्तान में साये अब डराने लगे हैं। जेहादी आतंकवाद का खतरा अब पाकिस्तान के वजूद को खत्म करने पर आमादा है। जेहाद पाकिस्तान के लिए नया नहीं है। जनरल जिया उल हक के पहले से ही इसकी जमीन पाकिस्तान में पुख्ता थी। लेकिन जिया के सरकारी संरक्षण ने इसको नई जिंदगी दी। जिया के जमाने में इस्लामीकरण सरकार की राष्ट्रीय नीति हो गई। यह मामूली इस्लामीकरण नहीं था। जिया इसको समझते थे या नहीं, लेकिन सऊदी अरब से जो पैसा आया और उससे जिस तरह के मदरसे बने और उनमें जो पढ़ाई हुई, वह बेहद खतरनाक थी। सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए। जिया उल हक की नीतियों की वजह से ही पाकिस्तान में कट्टरपंथियों ने मदरसों के जरिये अपनी जबर्दस्त पैठ बनाई। चार्ल्स एलेन अपनी किताब गॉड्स टेररिस्ट्स में लिखते हैं कि भारत के विभा

आमसूत्र को कामसूत्र का ट्रीटमेंट अब टीवी पर नहीं चलेगा

आईबी मिनिस्‍ट्री की नींद खुली, अश्‍लील विज्ञापनों की बेलगाम बाढ़ पर रोक लगेगी ♦ देवांशु कुमार झा आ प घर बैठे अपने माता-पिता, भाई-बहन, छोटे-छोटे बच्चों के साथ टीवी पर आखें गड़ाये कुछ देख रहे होते हैं कि अचानक एक विज्ञापन आता है। कंडोम का वह प्रचार जीवों में यौनेच्छा की सहज प्रकृति को तकरीबन उसी तरह से दिखाता है, जैसे सेक्स परोसने वाली बी ग्रेड की फिल्मों में फोर प्ले को दिखाया जाता है। बस फर्क इतना ही होता है कि उन मॉडलों के बदन पर थोड़े बहुत कपड़े होते हैं। पूरा प्रस्तुतिकरण अत्यंत ही अश्लील, भौंडा और आक्रामक। अगर आपके जीवन में रिश्तों की मर्यादा मौजूद है और आप नैतिक-अनैतिक जैसे शब्दों का अर्थ समझते हैं, तो बगलें झांकने को मजबूर हो जाएंगे। नजरें चुराएंगे, ध्यान बंटाने की कोशिश करेंगे। आप उस विज्ञापन बनाने वाले को सौ बार कोसेंगे। अफसोस करेंगे कि टीवी देख क्यों रहे थे और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भी मन ही मन गरियाएंगे कि उन्हें यह नग्नता नजर क्यों नहीं आती। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे तमाम बेहया विज्ञापनों की बाढ़ आयी है। उसमें आम जनता के डूबने-उतराने और दम फूल जाने के बाद अब सूचना प्र

राजा नहीं, नेता चाहिए

‘एक समय की बात है। एक राजा था..’ इस तरह की कहानियां हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता हममें से किसी ने भी ऐसी कहानियां सुनी होंगी, जिनकी शुरुआत इस तरह होती हो : ‘एक समय की बात है। एक लोकतंत्र था। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि चुनावी प्रक्रिया, अदालतों और लोकपाल के मार्फत जनता के प्रति उत्तरदायी थे।’ हम सभी पहली पंक्ति से बखूबी वाकिफ हैं, लेकिन दूसरी पंक्ति के बारे में हम ज्यादा नहीं जानते। लोकपाल बिल लागू करने में आ रही समस्याएं भी इसी में निहित हैं। हम यह तो जानते ही हैं कि हमारे मौजूदा सिस्टम में कहीं कुछ गड़बड़ है। इसके बावजूद बदलाव हमें असहज कर देता है। अन्ना के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाए गए आंदोलन में हम एकजुट हुए और आंदोलन को सफल बनाया। लेकिन जब हम भ्रष्टाचाररोधी लोकपाल बिल का मसौदा बनाने बैठे तो अंतर्विरोध सामने आने लगे। ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों पर निजी टिप्पणियां की गईं, दुर्गति के अंदेशे लगाए जाने लगे और यह भी कहा गया कि स्वयं लोकपाल भी तो भ्रष्ट हो सकता है। कुछ बुद्धिजीवियों ने इस आंदोलन को लोकतंत्र पर एक आक्रमण बताया। नागरिकों के असु