इस खबर को पढ़िए , जनता बड़े ढंग से गुस्सा है रेलवे पर | बस सबको अपनी - अपनी पड़ीं है , किसी को युक्ति - युक्त पूर्ण ढंग से नहीं सोचना है | अखवार वाले समाज के ठेकेदार बने हुए हैं पर दूर की , यथार्थ सोच कहाँ है ? तर्क व वास्तविकता देखे जाने सोचे बिना बस अपने स्वार्थ के लिए हुंकार भरदेना , जवाब देही मांगना ( जहां आसानी से चलती है , गुंडों माफियाओं , छेड़खानी करने वालों के लिए कोइ नहीं भरता )| क्या ये सब नहीं सोचा जा सकता कि जब प्रकृति के इतने कठोर मौसम व कोहरे ठण्ड के कारण जहां कुछ दिखाई नहीं देता , सारे बेतार के तार , मोबाइल , रेडियो , इन्टरनेट लाइनों का सब कुछ ठप है तो अकेली रलवे क्या करे कोइ क्या करे , आखिर काम तो मनुष्य ही करता है |