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Showing posts from January 10, 2010

हिन्दुस्तान का एक दर्द यह भी --सबको सिर्फ अपनी पड़ीं है ---

इस खबर को पढ़िए , जनता बड़े ढंग से गुस्सा है रेलवे पर | बस सबको अपनी - अपनी पड़ीं है , किसी को युक्ति - युक्त पूर्ण ढंग से नहीं सोचना है | अखवार वाले समाज के ठेकेदार बने हुए हैं पर दूर की , यथार्थ सोच कहाँ है ? तर्क व वास्तविकता देखे जाने सोचे बिना बस अपने स्वार्थ के लिए हुंकार भरदेना , जवाब देही मांगना ( जहां आसानी से चलती है , गुंडों माफियाओं , छेड़खानी करने वालों के लिए कोइ नहीं भरता )| क्या ये सब नहीं सोचा जा सकता कि जब प्रकृति के इतने कठोर मौसम व कोहरे ठण्ड के कारण जहां कुछ दिखाई नहीं देता , सारे बेतार के तार , मोबाइल , रेडियो , इन्टरनेट लाइनों का सब कुछ ठप है तो अकेली रलवे क्या करे कोइ क्या करे , आखिर काम तो मनुष्य ही करता है |

लो क सं घ र्ष !: आप मुझे अच्छे लगने लगे

साम्राज्यवादी शक्तियों ने आज देश की राजनीतिक विचारधारा, अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति को किस प्रकार अपने काबू में कर रखा है कि जो पार्टी अपने को समाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की अनुयायी कहा करती थी वह कार्पोरेट समाजवाद के जाल में फंस कर साम्राज्यवादी प्रवत्ति के गुण दर्शा रही है तो वही बेनी प्रसाद वर्मा जैसे लोग जो अमर सिंह के समाजवादी पार्टी में बढ़ते हस्तक्षेप व अपनी उपेक्षा से छुब्ध होकर पार्टी छोड़ गए थे अब उन्ही अमर सिंह को अपने साथ आने की दावत कांग्रेस में दे रहे हैं और अमर सिंह अब उन्हें अच्छे लगने लगे। मुलायम सिंह पर समाजवादी विचारधारा का परित्याग कर अमर सिंह के कार्पोरेट समाजवाद के जाल में फंस कर चाल चरित्र बदलने का आरोप उनके पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा लगा कर पार्टी से अलग हुए थे और कांग्रेस की गोद में बैठ कर उन्होंने मुलायम सिंह की पार्टी समाजवादी को प्रदेश में सत्ता से बाहर कर देने में अहम् भूमिका अदा की थी, आज वही बेनी प्रसाद वर्मा अमर सिंह को कांग्रेस में आने का न्योता दे रहे हैं । लोग शायद अनुमान नहीं कर पाए कि बेनी प्रसाद वर्मा ने जब कुरता धोती छोड़ सूट धारण किया

पर्यावरण में बदलाव ..................

पर्यावरण में बदलाव .................. थिरकती धरती का सिहासन जब - जब डोला नयी सभ्यता ने तब - तब नव जीवन पाया ! बलखाती हरियाली ने तब - तब नव पोध उपजाई ! थिरकती धरती का सिहासन जब - जब डोला ........... नयी सभ्यता ने तब - तब नव जीवन पाया ! लेकिन अब !!!!!!!!!!! पर्यावरण में होते बदलाव से ..... जब थरथराती है धरती नवजीवन के बदले में वो विध्वंस मचा जाती है ! लहराती हरियाली अब पल में नष्ट तभी हो जाती है ! ऊंची -ऊंची इमारतो से गाँव कही खो जाते है ! छोटे होते आंगन से अब खेत कही खो जाते है ! युवा होते जीवन से अब बचपन कही खो जाता है ! जब भी थरथराती है धरती उधल - पुथल हो जाती है अब आओ साथियों ........... वक्त की पुकार सुने बदलाव की हवा चले थरथर करती धरती अब थिरकन को मजबूर करे ! यही प्रण ले कर अब हमसब धरती का श्रृंगआर करे ! डॉ.मंजू चौधरी manndagar@yahoo.com