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Showing posts from March 5, 2009

मांसाहार नहीं, शाकाहार स्वास्थ्यकर है।

मांसाहार या शाकाहार !  बहस बहुत उपयोगी है और मनोरंजक भी !  मैं स्वयं पूर्णतः शाकाहारी हूं पर मेरे विचार में मैं शाकाहारी इसलिये हूं क्योंकि मेरा जन्म एक शाकाहारी माता - पिता के घर में हुआ और मुझे बचपन से यह संस्कार मिले कि शाकाहार मांसाहार की तुलना में बेहतर है।   आज मैं स्वेच्छा से शाकाहारी हूं और मांसाहारी होने की कल्पना भी नहीं कर पाता हूं।     मुझे जिन कारणों से शाकाहार बेहतर लगता है , वह निम्न हैं :-   १ .     मैने विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते पढ़ा है कि ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य है। पेड़ - पौधे फोटो - सिंथेसिस के माध्यम से अपना भोजन बना सकते हैं पर जीव - जंतु नहीं बना सकते। ऐसे में वनस्पति से भोजन प्राप्त कर के हम प्रथम श्रेणी की ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं।   २ .   दुनिया के जिन हिस्सों में वनस्पति कठिनाई से उत्पन्न होती है - विशेषकर रेगिस्तानी इलाकों में , वहां मांसाहार का प्रचलन अधिक होना स्वाभाविक ही है।   ३ .   आयुर्वेद जो मॉडर्न मॅडिसिन की तुलना में कई हज़ार वर्ष पुराना आयुर्विज्ञान है - कहता है कि विद्यार्थी जीवन में सात्विक भोजन करना चाहिये।   सात्

आम चुनाव के बाद दो फाड़ हो जायेगी भाजपा ?

राहुल गाँधी की युवा ब्रिगेड( भलेही राजनीती में उनका प्रवेश अनुकम्पा के आधार पर हुआ हो ) से मुकाबला करने वाले कौन हैं ? यह भाजपा से लेकर तमाम दलों के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है ।लेकिन इस सवाल का जबाब ढूंढने के बजायसभी इधर -उधर की बेकार दलील देकर ताल -मटोल करते नज़र आते हैं । इसी सवाल पर बहस के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक छात्र नेता ने तर्क देते हुए युवा की जगह अनुभव को तरजीह देने की बात कही । कुछ अन्य युवा नेताओं ने उनकी बात का विरोध किया तो वो मुद्दे से भटक कर विचारधारा और हिंदुत्वा को परिभाषित करने लगे । अपनी आधी -अधूरी जानकारी और थोड़े बहुत महापुरुषों के कथन को तोड़- मरोड़ कर लगे भाषण देने । अभी टीवी में राजनाथ जी की भूलने की गाथा देख रहा था जिसमे वो यूपीए की जगह एनडीए , एनडीए की जगह यूपीए का नाम ले रहे थे । क्या यह घटना इनके खोखले युवापन के दावे को नही झुठलाती ?क्या भाजपा को युवाओं को आगे लाने की बात पर गंभीरता से सोच कर अमल करने की आवश्यकता नही है? क्या नरेन्द्र मोदी को अपनी महत्वाकांक्षा की आड़ में रोक कर युवा ब्रिगेड को पाँच साल पीछे नही कर दिया गया ?संगठन में तो वैसे भी ४० पार

मुक्तक (Muktak):
लाभ प्रद दोहे

मुक्तक (Muktak): <blockquote><em><strong>लाभ प्रद दोहे </strong></em></blockquote> : "कण कण ले चींटी चढ़े गिरती सौ सौ बार । रह रह कदम संभालती, हो जाती है पार ॥" बधाई. आपका यह दोहा बिलकुल शुद्ध है. शेष में कुछ परिवर्तन करने से वे शुद्ध हो सकते हैं. मैंने कुलवंत जी की कविता 'कोयल' पर टिप्पणी में आपकी लिखी कुण्डली देखी. कुण्डली की पहली दो पंक्ति दोहा तथा बाद में रोला होता है. दोहा की कक्षा में आगे कुण्डली, जनक छंद, सोरठा आदि पर भी बातें होंगी. आप में प्रतिभा है. थोडा सा तराशने से अभिव्यक्ति खूबसूरत हो जायेगी. कृपया अन्यथा न लें...यह सिर्फ स्नेह के नाते लिख दिया. आपका - सलिल

हिन्दुस्तान का दर्द द्वारा आयोजित ''बहस'' में भाग लें !

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

मांसाहार क्यूँ जायज़ है? निशांत जी को मेरा जवाब!

हाल ही में मैंने एक आलेख लिखा था,जिसका मज़मून था - मांसाहार क्यूँ जायज़ है? मैंने कुछ दिन बाद देखा कि हमारे एक शाकाहारी मित्र लेखक जनाब निशांत मिश्र जी ने भी शाकाहार या माँसाहार पर एक लेख लिखा मैंने उसे दिनांक 04/03 /2009 को पढ़ा तो मन हुआ कि जब बात डिबेट तक पहुँच गयी तो क्यूँ  ना इसका जवाब भी दे दूँ| मैंने सिर्फ यह बताने की कोशिश की थी कि मांसाहार भी सही है| विमर्श को आगे बढ़ाने से पहले मैं जैसा कि हमेशा अपना एक बात कहना चाहता हूँ तो इस लेख का सन्देश यह है-  " मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है, ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है| कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है कि वह सब्जियां भी खा सकता है और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए | इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए, ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा | अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां | आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं" निशांत भाई ने कई तर्क रखे और आरोप भी मैं उन सभी तर्कों और आरोपों का मैं बिन्दुवार

फोटोग्राफी क्लासरूम - प्रथम प्रश्नपत्र !

मित्रों !    जो आज तक बताया , वह सब याद है न ? गुड !    चलो चेक कर लेते हैं।   आशा है , आप निम्न प्रश्नों का सही उत्तर लिख भेजेंगे ताकि मुझे यह विश्वास हो सके कि मैं अपना कार्य सफलता पूर्वक कर पा रहा हूं . यदि आप सब विशेष योग्यता के साथ पास हो गये तो एक प्रशिक्षक के रूप में मेरी हिम्मत बहुत बढ़ जायेगी और मैं दूने जोश खरोश के साथ आपकी सेवा में लग सकूंगा ।   तो ये रहा पहला प्रश्नपत्र -   १ .  कुछ फिक्स्ड फोकस कैमरों के निर्माताओं का नाम व कैमरों का मॉडल बतायें .   Name some models of fixed focus cameras.   २ .  लेंस की रिज़ॉल्विंग पॉवर से क्या तात्पर्य है ? आप इसे कैसे चेक करेंगे ?   What do you understand by the term - RESOLVING POWER OF A LENS ?  How do you check it as a camera buyer ?   ३ .  यदि कोई डिजिटल कैमरा पूर्ण अंधकार में भी फोटो खींच लेता है तो वह ऐसा क्यों कर पा रहा है ?  If a camera is taking photograph in complete darkness,  how is it able to do so?  What is causing the exposure on the CCD / Film ?    ४ .  लेंस के डायमीटर और कैमरे के मेगा पिक्सल

''आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान का बहिष्कार हो''

आतंकवाद पर आयोजित ''बहस'' के अंतर्गत हमने जानी श्री गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' जी की राय तो देखिये क्या कहते है वो इसी गंभीर मुद्दे पर ! दोस्तों अगर आप भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखना चाहते है तो हमें लिख भेजिए mr.sanjaysagar@gmail.com पर 'केवल बस केवल बहिष्‍कार. पाकिस्‍तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाये. भारत द्वारा इस पर पहल करते हुए सबसे पहले सभी राजनीति सम्‍बंध तोड़ कर अपने राजनयिकों को वापस बुला लेना चाहिए. बाद में दोस्‍ती और अमन के लिए विश्‍व में सबसे सार्थक मार्ग खेल जिसमे 'स्‍पोर्ट्स स्‍पिरिट' जब वहां जन जन में जाग्रत नहीं तो भारत को खेल एवं व्‍यावसायिक सम्‍बंध भी तोड़ लेने चाहिए. भारत, पाक स्‍थित आतंकवादी संगठनों से सबसे ज्‍यादा प्रभावित है. बोम्‍बे कांड, कंधार काबुल की हवाई जहाज हाइजैक घटना, संसद, अक्षरधाम की नृशंस घटना, जयपुर, दिल्‍ली के बम कांड, मुंबई की ताज बर्बर घटना से भी यदि भारत सबक नहीं लेता तो भारत के दुर्भाग्‍य को कोई नहीं बदल सकता. हम विकास की बातें करते हैं; क्‍या इसी के चलते विश्‍व के सर्वशक्‍तिमान ब

आतंकवाद विषय पर लेख

आतंकवाद की समस्या को अनेक पहलुओं से विचार करने की आवश्यकता है।  सबसे पहली बात तो ये कि आतंकवाद को नैतिक व तात्विक आधार इस्लाम धर्म से ही मिल रहा है।  यह कहना सच्चाई से मुंह चुराना है कि आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता।  जब आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी जाती है तो सबसे पहले तो उनके दिमाग में यह बात बिठाई जाती है कि यह बड़े सबाब का काम है।  आप ही बताइये किसी व्यक्ति में फिदाइन ( आत्मघाती )  बनने लायक , अपनी जान देकर भी वर्ल्ड ट्रेड टॉवर , संसद , ताजमहल होटल या अब क्रिकेट  खिलाड़ियों से भरी बस पर हमला करने लायक जज़्बा और किस ढंग से पैदा किया जा सकता है ?  आतंकवादी यह सोच कर शायद ही हमला करने के लिये निकलते हों कि वह सुरक्षित लौट पायेंगे।  अतः ये कार्य धन के या सत्ता के लालच में करते होंगे , यह सोचना तो हास्यास्पद ही है।     आत्मघाती हमलों में आतंकवादी सबसे पहले अपनी जान देते हैं , तब जाकर दूसरों की जान लेने की उम्मीद करते हैं। इस प्रकार का उन्माद सिर्फ मजहब या देश की रक्षा के नाम पर ही व्यक्ति में पैदा किया जा सकता है। अतः आतंकवादियों को आम अपराधी मानने से हम केवल स्वयं को धोखा ही दे सक

ब्लॉग ने संजय सेन सागर की जान ली

आज ऑनलाइन आया तो देखा ''हिन्दुस्तान का दर्द''पर एक पोस्ट पडी हुई है जिसे संजय सेन सागर जी ने लिखा है यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी अब आप कहेंगे की यह महाशय तो हर रोज क ई पोस्ट डालते है लेकिन बात यह है की संजय सेन सागर बी.कॉम.सेकंड इयर के स्टुडेंट है और कल से उनकी परीक्षा प्रारंभ हो रही है तो मुझे उनसे यह आशा तो बिलकुल भी नहीं थी लेकिन उन्होंने यह कर दिखाया,ब्लॉग्गिंग के प्रति इतना लगाब देखकर ख़ुशी हुई लेकिन परीक्षा के प्रति इतनी लापरवाही देखकर दुःख हुआ ! समझ नहीं आ रहा है की इस ब्लोगेरिया का कोई हल है भी की नहीं,मुझे निश्चित तौर पर इनकी परीक्षा की चिंता है क्योंकि संजय सेन मेरे अच्छे मित्र है !अब इनकी परीक्षा के नतीजे का तो नहीं पता जो होगा सो देखा जायेगा,लेकिन अभी तो यह ही कहा जा सकता है की यह मासूम ब्लोगेरिया से पीड़ित हो चुका है औरइसे दवा की नहीं दुआ की जरुरत है आप लोग संजय सेन सागर जी के लिए दुआ कीजिये क्योंकि यदि यह फ़ैल हुए तो मेरी भी शामत आ जायेगी आगे पढ़ें के आगे यहाँ