विश्व गौरैया दिवस पर गौरैया हमारे जीवन का एक अंग है मनुष्य जहाँ भी मकान बनता है वहां गौरैया स्वतः जाकर छत में घोसला बना कर रहना शुरू कर देती है। हमारे परिवारों में छोटे छोटे बच्चे गौरैया को देख कर पकड़ने के लिए दौड़ते हैं उनसे खेलते हैं उनको दाना डालते हैं। हमारा घर गाँव में कच्चा बना हुआ है जिसकी छत में सैकड़ो गौरैया आज भी रहती हैं। घर के अन्दर बरामदे में एक छोटी दीवाल है। जिस पर हमारी छोटी बहन नीलम एक कप में पानी व चावल के कुछ दाने रख देती थी जिसको गौरैया आकर खाती थीं और पानी पीती थी। बहन की शादी के बाद भी वह परंपरा जारी है हमारा लड़का अमर और मैं पकड़ने के लिए आँगन में टोकरी एक डंडी के सहारे खड़ी कर देते थे, टोकरी के नीचे चावल के दाने डाल दिए जाते थे टोकरी वाली डंडी में रस्सी बंधी होती थी उस रस्सी का एक सिरा काफी दूर ले जा कर मैं और मेरा लड़का लेकर बैठते थे गौरैया चावल चुनने आती थी और टोकरी के नीचे आते ही रस्सी खींच देने से वह टोकरी के नीचे कैद हो जाती थी। टोकरी पर चद्दर डाल कर गौरैया पकड़ी जाती थी । गौरैया लड़का देखने के पश्चात उसको अपनी मम्मी के पास पहुंचा दो कहकर छोड़ देता था। इ