प्यारे बड़े भाई सआदत हसन मंटो साहिब, आदाब, आज सन् 2008 के दूसरे महीने की दस तारीख़ है और मैं आपकी याद में होने वाले सेमिनार में जिसका मौज़ू ‘मंटोः हमारा समकालीन’ रखा गया है, आपके नाम लिखा हुआ अपना ख़त पढ़ रहा हूँ, ये मौजू शायद इसलिए रखा गया है कि आज भी हमारे मुल्क और दुनिया के तक़रीबन वही हालात हैं, जो आपके ज़माने में थे और कोई बड़ी तब्दीली नहीं आयी। वही महंगाई, बेरोज़गारी, बद अम्नी-जिसकी लाठी, उसकी भैंस। ग़रीबों और कमजोरों का माली, अख़्लाक़ी, जिन्सी और सियासी शोषण। वही तबक़ाती ऊँच- नीच, फ़िरक़ापरस्ती, खू़न-ख़राबा बौर ज़बानों के झगड़े। आपने कहा था कि आप अक़ीदे की बुनियाद पर होने वाले फ़िरक़ावाराना फ़सादात में मरना पसंद नहीं करते, मगर अब ख़ुदकुश हमलों की सूरत में ये फ़सादात रोज़मर्रा का मामूल हैं जिन में आए रोज़ बेशुमार मासूम और बेगुनाह लोगों की जाने जाती हैं . हां, साइंस और टेक्नोलॉजी में ख़ासी तरक्की हुई है और बहुत-सी हैरतअंगेज़ चीजें ईजाद हो गयी हैं, वे चीज़ें जिनकी आपने इब्तिदाई शक्लें देखी थीं और जिनका ज़िक्र आपने ‘स्वराज के लिए’ और कुछ दूसरे अफ़सानों में किया था (कण्डोम और प्रोजेक्टर वगै़रह) अब ख़ासी तरक्क