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Showing posts from November 2, 2009

"दुःख थे पर्वत, राई अम्मा; हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।" - इस ग़ज़ल को पूरा कीजिये।

मित्रों , हमारे सहारनपुर के गौरव , हम सब के दुलारे कवि और मेरे प्रिय सखा श्री योगेश छिब्बर ने अपनी नवीनतम रचना मुझे एस.एम.एस. द्वारा भेजी है - लेती नहीं दवाई अम्मा , जोड़े पाई-पाई अम्मा । ( पूरी ग़ज़ल यहां उपलब्ध है - www.thesaharanpur.com/amma.html ) प्रो. छिब्बर का और अधिक परिचय - www.thesaharanpur.com/chhibber.html लिंक पर उपलब्ध है। प्रो. छिब्बर ने यह भी आह्वान किया कि मैं भी अपनी अम्मा के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए कुछ पंक्तियां लिखूं और इस ग़ज़ल को आगे बढ़ाऊं । गीत , कवितायें और ग़ज़ल लिखना अपने बूते की बात नहीं पर घोर आश्चर्य ! जब अपनी अम्मा की छवि सामने रख कर गुनगुनाना शुरु किया तो कुछ पंक्तियां कागज़ पर उतर आईं। आप भी तो अपनी अम्मा के बारे में कुछ कोमल भावनायें अपने हृदय में रखते होंगे /रखती होंगी ? देश के हर बच्चे से हमारा आह्वान है कि अपनी अम्मा की छवि दस मिनट अपनी आंखों में बसा कर , इस गज़ल को गुनगुनाते हुए इसे और आगे बढ़ायें। यह हम सब बच्चों

जबाब दो ........

जबाब दो ......... ओ दुनिया वालो .....ओ दुनिया वालो छोटे से सवाल का ,जुल्म के फैले जाल का , इंशा के इस हाल का ,जबाब दो !ओ दुनिया वालो हाथो में हथियार क्यो -देशो में दिवार क्यो ? टुकडो में संसार क्यो ,जबाब दो !ओ दुनिया वालो मुल्को में तकरार क्यो -जलता ये संसार क्यो हर मजहब बीमार क्यो ,जबाब दो !ओ दुनिया वालो प्यार की बोली भूल गए सब -चलन चला है गोली का हर दमन पर लगा हुआ है -रंग खून की होली का कोई मुझको यह तो बता दे -इतना अत्त्याचार क्यो नही दिलो में प्यार क्यो ,जबाब दो !दुनिया वालो बारूदों की बरसातो घायल रोतीहै गोली चाहे चले जन्हा पर -माँ की ममता रोती है उजड़ गए उन सभी घरो की -कहा गई आबादिया ! बच्चो की किल्कारिया ,जबाब दो ..ओ ............... बहन खोजती है भाई को -माँ से बिछुड़ा लाल है सूनी मांग पर सिसकी लगाती -दुल्हन का यह हाल है शहर बना है मरघट जैसा ,हर बस्ती बेहाल है !! बरिष्ठ पत्रकार कवि" श्री दयाराम अटल "के प्रथम काव्य संग्रह "जबाब दो "से साभार ...............

लो क सं घ र्ष !: संप्रभुता से समझौता नहीं - उत्तरी कोरिया - 1

साम्राज्यवाद के घड़ियाली आँसू हाल में 5 अगस्त 2009 को बिल क्लिंटन उत्तर कोरिया से दो अमेरिकी पत्रकारों को रिहा करवा के अपने निजी चार्टर्ड प्लेन में बिठाकर अमेरिका ले आये। ये चीनी-अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई-अमेरिकी मूल के पत्रकार मार्च 2009 में चीन की सीमा के नज़दीक उत्तर कोरिया में शरणार्थियों की स्थिति पर भ्रामक रिपोर्टिंग करने के आरोप में गिरफ़्तार किये गये थे। क्लिंटन ने उक्त दोनों पत्रकारों की रिहाई के लिए उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेताओं से विनती की और उत्तर कोरिया के राजनीतिक नेतृत्व ने भी अपनी मानवीयता प्रदर्शित करते हुए उनकी 12 साल की सश्रम सज़ा माफ कर उन्हें क्लिंटन को सौंप दिया। ओबामा प्रशासन ने इस कार्य से अपने आपको पूरी तरह अलग बताते हुए यह बयान जारी किया कि यह बिल क्लिंटन का स्वप्रेरित मानवीय कदम था। इसे साबित करने के लिए ये तर्क भी दिया गया कि क्लिंटन उत्तरी कोरिया सरकारी हवाई जहाज से नहीं बल्कि निजी चार्टर्ड हवाई जहाज से गये थे। हालाँकि उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी ने यह ख़बर दी कि क्लिंटन ओबामा प्रशासन का शांति संदेश भी लेकर आये थे। प्रसंगवश कैलेंडर में 6 अगस्त 1945 हि