आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा कुण्डलिनी करुणा संवेदन बिना, नहीं काव्य में तंत.. करुणा रस जिस ह्रदय में वह हो जाता संत. वह हो जाता संत, न कोई पीर परायी. आँसू सबके पोंछ, लगे सार्थकता पाई. कंकर में शंकर दिखते, होता मन-मंथन. 'सलिल' व्यर्थ है गीत, बिना करुणा संवेदन. ********************************** http://divyanarmada.blogspot.com