वेदप्रताप वैदिक भारत में राजनीतिक पार्टियां तो दो ही हैं- एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा। कांग्रेस अपने सवा सौ साल मना रही है। भाजपा चाहे तो लगभग उससे आधे साल अपने मना सकती है। ये दोनों पार्टियां जितनी लंबी चलीं , देश में कोई अन्य पार्टी नहीं चली। यदि भाजपा और जनसंघ को हम दो अलग पार्टियां मानने लगेंगे तो कांग्रेस को तो हमें कम से कम छह अलग-अलग पार्टियां मानना पड़ेगा। एओ ह्यूम से लेकर तिलक , गांधी , नेहरू , इंदिरा , नरसिंहराव और अब सोनिया कांग्रेस जैसे अलग-अलग कई नाम रखने पड़ेंगे , एक ही कांग्रेस के। यहां मेरा निवेदन सिर्फ इतना है कि आप कृपया इन दोनों पार्टियों की निरंतरता पर ध्यान दें। निरंतरता तो कम्युनिस्ट पार्टी में भी रही , लेकिन उसके दो मुख्य टुकड़े हुए और वे आज भी कायम हैं। एक टुकड़े ने बंगाल , केरल , त्रिपुरा जैसे प्रांतों में राज जरूर किया , लेकिन उसका अखिल भारतीय रूप कभी नहीं उभर पाया और जो रूप उभरा वह भी साम्यवादी नहीं , स्थानीय उपराष्ट्रवादी (बंगाली-मलयाली) रहा। प्रसोपा , संसोपा , स्वतंत्र पार्टी जैसी कई पार्टियां प्रकट हरुई और अपने आप अंतर्धान हो र्गई। देश में जो अनेक छोटे-मो