मसालों से जीता जंहा जब जब देशी मसलों की चर्चा चिड्ती है तो मुझे एक ही नाम याद आता है ऍमडीएच !इस मसाले के बिज्ञापन में आने वाले पगडीधारी वृद्ध को तो सब जानते है लेकिन महाशय धर्मपाल को कोई नहीं जनता..क्यों की पगडीधारी का नाम ही महाशय धर्मपाल है! ऍमडीएच का आज कारोबार ८०० करोड़ रुपए से अधिक है! २७ मार्च १९२३ को पाकिस्तान में जन्मे महाशय धर्मपाल का मन पडी में तो लगता न था ..सो दुसरे कामों में जायदा व्यस्त रहते थे और थोड़े बहुत रूप में मसाले का कार्य करते थे !१९४७ में देश के बटवारे में वो १५०० रुपए लेकर भारत आ गए ..यहाँ उन्होंने ६५० रुपए का एक रिक्शा ले लिया..लेकिन वो कहते है की मैन इस काम के लिए नहीं बना था और न ही मेरी शक्ल ऐसी थी ..उन्हें तो बस अपनी देगी मिर्च याद आती थी एक दिन वे अपने पिताजी एक साथ एक दुकां गए वह मसलों का बड़ा व्यसाय चलता था ..उनका दिमाग घूमा की उन्हें सिर्फ मसाला बनाना ही आता बह तो सिर्फ इशी लिए ही बने है ..फिर उन्होंने मसाला बनाना चालू कर दिया! उस सस्ते ज़माने में भी उनकी रोजाना बिक्री ३०००-४००० थी !इसके बाद उन्होंने बिज्ञापन दिया तो पाकिस्तान से मसाले की लिए पत्र आने ल