देश दिखता मुझे बहुत बीमार है........... (प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘ ओ.बी. 11 एम.पी.ई.बी. कालोनी, रामपुर, जबलपुर म.प्र. ) है बुरा हाल मंहगाई की मार है, देश दिखता मुझे बहुत बीमार है। गांव की हर गली झोपडी है दुखी, भूख से बाल-बच्चों में चीत्कार है। शांति उठ सी गई आज धरती से है, लोग सारे ही व्याकुल है बेचैन हैं पेट की आग को बुझाने की फिकर में, सभी जन सतत व्यस्त दिन रैन है। जो जहाँ भी है उलझन में गंभीर है, आयें दिन बढती जाती नई पीर है। रोजी रोटी के चक्कर में है सब फंसे, साथ देती नहीं किंतु तकदीर है। प्रदर्शन है कहीं, कहीं हड़ताल है, कहीं करफ्यू कहीं बंद बाजार है। लाठियाँ, गोलियाँ औ‘ गिरफ्तारियाँ, जो जहाँ भी है भड़भड़ से बेजार है। समझ आता नहीं, क्यों ये क्या हो रहा, लोग आजाद हैं डर किसी को नहीं। मानता नहीं कोई किसी का कहा, जिसे जो मन में आता है करता वहीं। बातों में सब हुये बड़े होषियार है, सिर्फ लेने को हर लाभ आगे खड़े। किंतु सहयोग और समझारी भुला, स्वार्थ हित सिर्फ लड़ने को रहते अड़े है। आदमी खो चुका आदमियत इस तरह, कहीं कोई न दिखता समझदार है, जैसे रिष्ता किसी का किसी से नहीं