"यह तो पाँच ही हैं मालिक ।" "पाँच, नही, दस हैं। घर जाकर गिनना ।" "नही सरकार, पाँच हैं ।" "एक रुपया नजराने का हुआ कि नही ?" "हाँ , सरकार !" "एक तहरीर का ?" "हाँ, सरकार !" "एक कागद का ?" "हाँ,सरकार !" "एक दस्तूरी का !" "हाँ, सरकार!" "एक सूद का!" "हाँ, सरकार!" "पाँच नगद, दस हुए कि नही?" "हाँ,सरकार ! अब यह पांचो भी मेरी ओर से रख लीजिये ।" "कैसा पागल है ?" "नही, सरकार , एक रुपया छोटी ठकुराइन का नजराना है, एक रुपया बड़ी ठकुराइन का । एक रुपया छोटी ठकुराइन के पान खाने का, एक बड़ी ठकुराइन के पान खाने को , बाकी बचा एक, वह आपके क्रिया-करम के लिए ।" प्रेमचंद के गोदान से