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Showing posts from October 25, 2009

लो क सं घ र्ष !: ऊदा देवी :- अन्तिम भाग

इससे यह तात्पर्य नहीं लेना चाहिए कि ऊदा देवी का शौर्य और पराक्रम 1857 के महाविद्रोह की केन्द्रीय चेतना से सम्बद्ध नहीं था, यह कि उनकी शहादत मुक्ति के विराट स्वप्न को साकार करने की दिशा में दी गयी आहुति नहीं थी। उनकी शहादत को व्यक्तिगत प्रतिशोध की अभिव्यक्ति मानने वाले यकीनीतौर पर ऊदादेवी के क़द को छोटा करते हैं। साथ ही वे आज़ादी की इस विलक्षण लड़ाई में जनता के सभी हिस्सों की शिरकत के चमकीले यथार्थ को धुँधलाने की कोशिश भी करते हैं। मक्का पासी की शहादत हो या ऊदादेवी का बलिदान, इसके वृहत्तर सन्दर्भ का अनुमान इससे लग सकता है जितना कि इस महाविद्रोह के स्वरुप का मजाक उड़ाते हुए अंग्रेज इतिहासकारों का यह कहना कि ‘तब एक सिपाही भी अपने को राजा समझता था’ या घुड़सवार सिपाहियों की यह घोषणा कि ‘ख़ल्क़ खुदा का, मुल्क बादशाह का, अमल सिपाही का।’ बहुत बार बहुत अवसरों पर बादशाह के हुक्म की भी प्रतीक्षा नहीं की गयी। कई ऐसी साहसिक घटनाएँ भी प्रकाश में आईं जब विद्रोही सैनिकों तथा निःशस्त्र ग्रामीणों ने अपने हौसले और विवेक से अंग्रेज अधिकारियों और सेना पर घातक हमले किये। मगरवारा (उन्नाव) में जनरल आउट्म की मजबूत से

लो क सं घ र्ष !: आशीष खंडेलवाल जी की ताजा पोस्ट के लिए

गूगल, यूं हिंदुस्तानियों के साथ खिलवाड़ न करो शान्ति साम्राज्यवाद की मौत है । युद्घ उसका जीवन है , विश्व में दो विश्व युद्घ लड़े गए है और दोनों ही साम्राज्यवादियों की धरती पर ही लड़े गए है दूसरे विश्व युद्घ के बाद साम्राज्यवादियों ने तय यह किया था कि अपनी धरती पर युद्घ नही लड़ना है । विश्व आर्थिक मंदी से निपटने के लिए साम्राज्यवादियों को युद्घ चाहिए इसके लिए एशिया में बड़े - बड़े प्रयोग किए जा रहे है और उनकी सारी ताकत एशिया की प्राकृतिक सम्पदा को लूट घसोट करने में लगी है । उनकी मुख्य विरोधी शक्तियां ईरान , उत्तर कोरिया , वियतनाम है और मुख्य प्रतिद्वंदी चीन है । ईरान के रेवोलुशनरी गार्ड्स मुख्यालय पर आत्मघाती हमला हो चुका है । चीन भारत का युद्घ वह चाहते है । इसके लिए तरह - तरह की गोटियाँ चली जा रही है । उनके तनखैया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के लोग तरह - तरह की अफवाहबाजी उडा , भ्रम फैला कर युद्घ का माहौल तैयार कर रहे है । उसी का यह एक