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Showing posts from April 18, 2009
साहित्य समाचार: जाल पत्रकारिता तथा चिट्ठाजगत : द्विदिवसीय कार्यशाला जाल तथा चिट्ठा 'स्व' से 'सर्व' का साक्षात् करने के माध्यम -संजीव 'सलिल' जबलपुर , १८ अप्रैल २००९। ' अंतरजाल तथा चिट्ठा-लेखन आत्म अनुभूतियों को अभिव्यक्त कर, 'स्व' से 'सर्व' का साक्षात् करने का माध्यम है। 'सत-शिव-सुन्दर' से 'सत-चित-आनंद' की प्राप्ति के सनातन भारतीय आदर्श की साधना के पथ पर अदेखे-अनजाने से संयुक्त होकर समय की सामान्य सीमा को लांघते हुए असीम और निस्सीम की प्रतीति का अवसर ये माध्यम सर्व सामान्य को उपलब्ध करा रहे हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम स्वयं को इन माध्यमों से लाभान्वित करते हैं या साथी आकर्षणों और विवादों में सिमटकर व्यर्थ कर देते हैं। तकनीकी निपुणता को वैश्विक संचेतना जाग्रति का माध्यम बनाया जा सके तो मानव मात्र के लिया यह आयाम कल्याणकारी सिद्ध होगा अन्यथा यही माध्यम विनाश को आमंत्रण देगा.' ये विचार दिव्य नर्मदा पत्रिका के संपादक, विख्यात कवी-समीक्षक संजीव 'सलिल' ने स्वामी विवेकानंद आदर्श महाविद्यालय, मदन महल द्वारा 'जा

हिंदू-मुस्लिम : दूध-पानी - आचार्य संजीव 'सलिल'

कंकर -कंकर में शंकर, कण-कण में भगवान माननेवाले क्या यह बताएँगे कि किसी अहिंदू की आत्मा परमात्मा का अंश नहीं है, यह कहाँ लिखा है? हर जड़-चेतन में बसनेवाला तो हर मुस्लिम और ईसाई, हर हरिजन और आदिवासी में भी है. जिस दिन हम इन्सान को इन्सान के तौर पर देखेंगे, उसे अच्छे-बुरे के रूप में पहचानेंगे उस दिन धर्म और मजहब के ठेकेदारों द्वारा खड़ी की गयी दीवारें गिर जायेंगी. इसके लिए हमें किसी एक धर्म को दूसरे से बेहतर या बदतर मानने के चक्रव्यूह से बाहर निकलना होगा. जब हम अपने विश्वास को किसी भी आधार पर सही और अन्य के विश्वास को गलत कहते हैं तो प्रतिक्रिया के रूप में असहमति, दूरी, गलतफहमी और नफरत पैदा होती है. इससे उपजा अविश्वास अच्छे लोगों को कमजोर कर आपस में लड़ाता है, जिसके फायदा वे लोग उठाते हैं जो धर्म, मजहब या रिलीजन के नाम पर पेट पालते हैं. संजय जी! आप जिनकी चर्चा कर रहे हैं, वे मुल्क के प्रति वफादार होने के साथ-साथ समझदार भी थे, उनहोंने अपने मजहब का ईमानदारी से पालन किया पर कभी उसे दूसरे धर्मों से बेहतर या एकमात्र नहीं क

नहीं चाहिए वृद्ध आश्रम.....

देश में बढ़ रही वृद्ध आश्रमों की संख्या चिंता जगाती है...?श्रवण कुमार के इस देश में वृद्ध आश्रम क्यूँ पैदा हो गए...सोचने की बात है ...आज नहीं तो कल हमारे साथ भी यही होने वाला है.... आगे यहाँ

रूसो का विरोधाभास ......

रूसो को प्रजातंत्र का पिता माना जाता है । अन्य प्रबुद्ध चिन्तक जहाँ व्यक्ति के स्वतंत्रता की बात करते है , वही रूसो समुदाय के स्वतंत्रता की बात करता है । अपने ग्रन्थ सोशल कोंट्रेक्त में घोषित किया की सामान्य इच्छा ही प्रभु की इच्छा है । रूसो ने कहा की सभी लोग समान है क्योंकि सभी प्रकृति की संतान है । कई स्थलों पर रूसो ने सामान्य इच्छा की अवधारणा को स्पस्ट नही किया है । एक व्यक्ति भी इस सामान्य इच्छा का वाहक हो सकता है । अगर वह उत्कृष्ट इच्छा को अभिव्यक्त करने में सक्षम है । इसी स्थिति का लाभ फ्रांस में जैकोवियन नेता रोस्पियर ने उठाया ।

नारद मुनि

विनय बिहारी सिंह नारद मुनि को हमारी भारतीय फिल्मों और टेलीविजन सीरियलों में बहुत ही हास्यास्पद ढंग से दिखाया जाता है। सच्चाई यह है कि वे एक सिद्ध महात्मा हैं और उन्हें ब्रह्मा का मानस पुत्र कहा गया है। नारद मुनि इच्छाधारी मुनि भी कहे जाते हैं- यानी वे जब चाहे किसी भी लोक में जा सकते हैं। किसी भी देवता से मिल सकते हैं। शिव से पार्वती के विवाह के पहले हिमालय से उन्होंने प्रणय बंधन संबंधी भविष्यवाणियां कर दी थीं। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र यानी परम विद्वान हैं। स्वयं ब्रह्मा विष्णु की नाभि से निकले कमल से पैदा हुए हैं। जब ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई तो उन्हें एक अत्यंत विद्वान और सिद्ध मानस पुत्र की जरूरत महसूस हुई। तब उन्होंने इसके लिए नारद को ही चुना क्योंकि नारद जी मंत्रों को इस तरह उच्चारित करते थे कि लगता था वे स्वयं ही मंत्र हैं। नारदमुनि के हाथ में हमेशा वीणा रहती है। इसका अर्थ यह है कि वे संगीत विशारद भी हैं। यानी किस राग और सुर को कब प्रयोग में लाना है, उन्हें अच्छी तरह मालूम है। नारदमुनि लोकहित के लिए पृथ्वी पर भ्रमण करते रहते हैं। जिसकी कोई मदद करने वाला नहीं है, उसे सहारा देते हैं।

जूता चल जायेगा..

नेता जी अपनी रैली में जा रहे थे तो नेतानी जी ने कहा अजी सुनते हो नेता जी ने कहा बोलो" क्या बात नेतानी जी नेता टीका लगाया ओउर उसके बाद बोली बुरा न मनो तो मई भी चली नेता जी बोले मईभी तो सोचा रहा रहा था लेकिन आज कल तो लोग जूता चप्पल चलाते है, इस लिए मई नही तुम्हे ले चल सकता नेतानी जी बोली तो क्या हुआ लोग मारने के लिए थोड़े चलाते है, वे तो जनता को दिखाने के लिए चलाते आज तक किसी नेता को जूता लगा तो नही आप जैसे बचे गे वैसे मई भी बच जाऊगी आख़िर में तो मैसाड़ी जिंदगी लोगो के वार से तो बचाती ही आ रही हूँ, मेरे जाने से आप की रैली में रौनक आ जायेगी ओउर लोग वोट भी देगे क्यो की अभी तक लोगो ने हमें देखा तक भी नही है, नेता जी बोले आप घर पर लोगो को देखो मै बाहर रैली में जा रहा हूँ, पता नही कब जूता चल जाए..
कोई कहता है बहुत सोचती हो कम सोचा करो दूसरों के सोचने के लिए भी कुछ छोड़ना है सोच लिया करो । कोई कहता है - सोचो चाहे जितना तुम लेकिन सोचो में अपनी मुझे भी शामिल कर लिया करो । कोई कहता है - सोचो लेकिन इतना नही ki महज सोचने के लिए रह जाए । सोचती हूँ मैं क्यों न अब छोड़ दिया जाए सोचना ही। आरती "आस्था"

कमाई कैधंधा छूट गवा॥

बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ कमाई कैधंधा छूट गवा॥ जब तक रहे सरकारी अफसर .महफ़िल माँ रंग जमायदेहे॥ बड़े बड़े रंग्बाजन कानाकन चना चबवाय देहे॥ थोडी से गलती हंसी होइगे जो लालच म हम आय गवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ जब तक करत रहे नौकरी घर भर का मौज कराय देहे। बाबू का गया कराय देहे बीबी का गहना बनवाय देहे॥ अपने दादा कै अर्थी हम संगम म तेरे आवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ जब तक रहे सरकारी अफसर पैसा खूब कमाए हे। अम्मा बाबु का अपने गंगा म दुबकी लगवाए हे॥ पता नही ई करम फ़ुट की कंगाली आय गवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ जब हम jayee हिया हुआ तव साथ सिपाही जात रहें। हमारे दफ्तर म आवे तो हाथ जोड़ बतियात रहें॥ थोड़े दिन के अन्दर म बेईमानी का फंदा फ़ुट गवा। बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ कमी कैधंधा छूट गवा॥ जब तक रहे सरकारी अफसर .महफ़िल माँ रंग जमायदेहे॥ बड़े बड़े रंग्बाजन कानाकन चना चबवाय देहे॥ थोडी से गलती हंसी होइगे जो लालच म हम आय गवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ जब तक करत रहे नौकरी घर भर का मौज कराय दे
बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ कमी कैधंधा छूट गवा॥ जब तक रहे सरकारी अफसर .महफ़िल माँ रंग जमायदेहे॥ बड़े बड़े रंग्बाजन कानाकन चना चबवाय देहे॥ थोडी से गलती हंसी होइगे जो लालच म हम आय गवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ जब तक करत रहे नौकरी घर भर का मौज कराय देहे। बाबू का गया कराय देहे बीबी का गहना बनवाय देहे॥ अपने दादा कै अर्थी हम संगम म तेरे आवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥ जब तक रहे सरकारी अफसर पैसा खूब कमाए हे। अम्मा बाबु का अपने गंगा म दुबकी लगवाए हे॥ पता नही ई करम फ़ुट की कंगाली आय गवा॥ बेटवामौज उड़वा कम । किस्मत के लोटा फ़ुट गवा॥

Loksangharsha: मिट- मिट के सुजाना है ...

मिट- मिट के सुजाना है ... मिट- मिट के सुनाना है हँस- हँस के दिखाना है । इक कूंच- ए जाना है इक राहे ज़माना है। सागर की अदाएं है अँजूरी का ठिकाना है । इक अश्को की गागर है इक प्यार का पैमाना है । सुन- सुन के मचलते है , घिर घिर के बरसते है। इक दर्द को सरगम है, इक कहे फ़साना है। - डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

आइये ना...एक-एक जूता हब सब चलायें.....!!

............दोस्तों एक कलमकार का अपनी कलम छोड़ कर किसी भी तरह का दूसरा हथियार थामना बस इस बात का परिचायक है कि अब पीडा बहुत गहराती जा रही है और उसे मिटाने के तमाम उपाय ख़त्म....हम करें तो क्या करें...हम लिख रहें हैं....लिखते ही जा रहे हैं....और उससे कुछ बदलता हुआ सा नहीं दिखाई पड़ता ....और तब भी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता तो हमारी संवेदना में अवश्य ही कहीं कोई कमी है... मगर जिसे वाकई दर्द हो रहा है....और कलम वाकई कुछ नहीं कर पा रही....तो उसे धिक्कारना तो और भी बड़ा पाप है....दोस्तों जिसके गम में हम शरीक नहीं हो सकते....और जिसके गम को हम समझना भी नहीं चाहते तो हमारी समझ पर मुझे वाकई हैरानी हो रही है.... जूता तो क्या कोई बन्दूक भी उठा सकता है.....बस कलेजे में दम हो..... हमारे-आपके कलेजे में तो वो है नहीं....जिसके कलेजे में है.....उसे लताड़ना कहीं हमारी हीन भावना ही तो नहीं...........?????? ............. दोस्तों हमारे आस - पास रोज - ब - रोज ऐसी - ऐसी बातें हो रही हैं और होती ही जा रही हैं , जिन्हें नज़रंदाज़ कर बार - बार हम अपने ह

गीतिका : आचार्य संजीव 'सलिल'

चल पड़े अपने कदम तो,मंजिलें भी पायेंगे. कंठ-स्वर हो साज़ कोई, गीत अपने गायेंगे. मुश्किलों से दोस्ती है, संकटों से प्यार है. 'सलिल' बनकर नर्मदा हम, सत्य-शिव दुहारायेंगे. स्नेह की हर लहर हर-हर, कर निनादित हो रही. चल तनिक अवगाह लें, फिर सूर्य बनकर छायेंगे. दोस्तों की दुश्मनी की 'सलिल' क्यों चिंता करें. दुश्मनों की दोस्ती पाकर मरे- जी जायेंगे. चुनें किसको, तजें किसको, सब निकम्मे एक से. मिली सत्ता तो ज़मीं से, दूर हो गर्रायेंगे. दिल मिले न मिलें लेकिन हाथ तो मिलते रहें. क्या पता कब ह्रदय भी हों एक, फिर मुस्कायेंगे. स्नेह-सलिला में नहाना, 'सलिल' का मजहब धरम. सफल हो श्रम साधना, हम गगन पर लहरायेंगे.