हरिहर पद रति मति न कुतर्की, तिन्ह कहं विमल कथा रघुवर की ।।- रामचरित मानस सनातनी परम्परा रही है अपने दुश्मनों का भी अहित न विचारना । युद्ध क्षेत्र में विपक्ष सेना के घायलों को भी मरहम का लेप और जीवन दायिनी औषधियॉं देना इस सनातन हिन्दु धर्म की ही प्रारम्भिक परम्परा रही है । अपना अहित विचारने वालों तक को अपनी मृत्यु का सहज मार्ग बता देना इसी धर्म ने सिखाया । सत्य व न्याय के पालन के लिये अपने पुत्र तक को राजगद्दी पर न बिठाकर किसी साधारण सी जनता को राजसिंहासन दे देना भी हिन्दू परंपरा का ही अंग है । अपने आखिरी क्षणों में भी दूसरों की भलाई के लिये उपदेश करना कि जिनके हांथों शरशैरय्या मिली हो उनका भी भला सोंचना हिन्दू धर्म ने ही सिखाया । अरे मनुष्य क्या है और मानवता क्या होती है इसकी भी शिक्षा सर्वप्रथम इसी धर्म ने दी । जहां रावण जैसा महापापी अतुलित बलधारी राक्षस भी वेदों पर भाष्य लिखता है । उसे विरोध राम, विष्णु, ब्रह्मा और इन्द्रादि देवताओं से है पर धर्मग्रन्थों से कोई शिकायत नहीं । इसी सत्य सनातन धर्म के ही कुछ वाहक जो पथभ्रष्ट हो चुके ह