Skip to main content

Posts

Showing posts from May 27, 2010

आप सभी सुधी पाठक मेरी कही हुई बातों पर गौर करके ये बताइये कि मैने भला क्‍या गलत कहा ।।

  हरिहर पद रति मति न कुतर्की, तिन्‍ह कहं विमल कथा रघुवर की ।।- रामचरित मानस                 सनातनी परम्परा रही है अपने दुश्‍मनों का भी अहित न विचारना । युद्ध क्षेत्र में विपक्ष सेना के घायलों को भी मरहम का लेप और जीवन दायिनी औषधियॉं देना इस सनातन हिन्‍दु धर्म की ही प्रारम्भिक परम्‍परा रही है । अपना अहित विचारने वालों तक को अपनी मृत्‍यु का सहज मार्ग बता देना इसी धर्म ने सिखाया । सत्‍य व न्‍याय के पालन के लिये अपने पुत्र तक को राजगद्दी पर न बिठाकर किसी साधारण सी जनता को राजसिंहासन दे देना भी हिन्‍दू परंपरा का ही अंग है । अपने आखिरी क्षणों में भी दूसरों की भलाई के लिये उपदेश करना कि जिनके हां‍थों शरशैरय्या मिली हो उनका भी भला सोंचना हिन्‍दू धर्म ने ही सिखाया । अरे मनुष्‍य क्‍या है और मानवता क्‍या होती है इसकी भी शिक्षा सर्वप्रथम इसी धर्म ने दी । जहां रावण जैसा महापापी अतुलित बलधारी राक्षस भी वेदों पर भाष्‍य लिखता है । उसे विरोध राम, विष्‍णु, ब्रह्मा और इन्‍द्रादि देवताओं से है पर धर्मग्रन्‍थों से कोई शिकायत नहीं । इसी सत्‍य सनातन धर्म के ही कुछ वाहक जो पथभ्रष्‍ट हो चुके ह

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष से पूछे गए सवालों का जवाब

• जब भारत सेकुलर देश है तो फिर कानून सांप्रदाए के आधार पर क्यों? भारत एक बहुजातीय, बहुधर्मीय देश है। संविधान इस बात की इजाजत देता है की आप अपने धार्मिक रीति रिवाजो के अनुसार अपनी जीवन शैली निर्धारित कर सकते हैं इसीलिए प्रत्येक धर्म वालों को अपने धार्मिक रीति रिवाजों के अनुसार रहने की स्वतंत्रता है। जब कोई धर्म के मानने वाले सरकार से अनुरोध करते हैं कि उनके समाज में यह कुरीतियाँ है और इनको हटाने के लिए कानून बनाया जाए तो सरकार कानून बनाती है। जैसे सती प्रथा, बाल विवाह और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों पर सरकार ने कानून बनाये। • जब संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की मनाही करता है तो फिर मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण की मांग क्यों ? श्रीमान जी, भारत लोकतान्त्रिक देश है। लोकतान्त्रिक ढांचे के तहत हर समुदाय, हर धर्म वाले को अपनी बात कहने का हक़ है कोई जरूरी नहीं है कि वह मांग मानी ही जाए। वास्तव में संविधान पत्थर की लकीर नहीं है की जिसको संशोधित न किया जा सके भारतीय संविधान में कई बार संशोधन किये जा चुके हैं और भविष्य में होते रहेंगे। समाज जैसे जैसे आगे बढ़ता है आवश्यकताएं बदलती रहती हैं। स

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं, सादर प्रणाम, आज दिनांक 26.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-2010 के अंतर्गत अठारहवें दिन प्रकाशित पोस्ट का लिंक- एक सीमा तक करें शैतानियाँ , ना किसी का दिल दुखाना चाहिए। http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_1497.html अजित कुमार मिश्र की दो कविताएँ http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_844.html हल्ला हुआ गली दर गल्ली। तिल्ली सिंह ने जीती दिल्ली।। http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_7061.html कविता रावत की दो कविताएँ http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_2453.html अंग्रेज तो हिन्दुस्तान को आज़ाद छोड़ कर चले गए , लेकिन अपने पीछे हिंदी भाषा को अंग्रेजी का गुलाम बना कर गए ! http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_4631.html सुरेश यादव की दो कविताएँ http://utsav.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_9870.html मैं तुम्हारा हूँ ! http://www.parikalpnaa.com/ 2010/05/blog-post_7