गीतिका संजीव वर्मा 'सलिल' * तुमने कब चाहा दिल दरके? हुए दिवाने जब दिल-दर के। जिन पर हमने किया भरोसा वे निकले सौदाई जर के.. राज अक्ल का नहीं यहाँ पर ताज हुए हैं आशिक सर के। नाम न चाहें काम करें चुप वे ही जिंदा रहते मर के। परवाजों को कौन नापता? मुन्सिफ हैं सौदाई पर के। चाँद सी सूरत घूँघट बादल तृप्ति मिले जब आँचल सरके. 'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर सहन न होते अँसुआ ढरके। **********************