Skip to main content

Posts

Showing posts from November 27, 2009

लो क सं घ र्ष !: न्यायपालिका की स्वतंत्रता-3

संवैधानिक मिथ्या या राजनैतिक सत्य ब्रिटिश एवं फ़्रांसिसी क्रांति के फलस्वरूप , यूरोप में पश्चिमी उदारवादी प्रजातंत्र का जन्म हुआ , परन्तु इस व्यवस्था में व्यापारिक एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का दबदबा बना रहा , जिसके कारण कार्य करने वाले वर्ग अर्थात् मजदूरों एवं किसानों को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय नहीं मिला। संयोगवश कम्पनियों एवं कारपोरेशनों को वैधानिक अधिकार दिया गया ताकि वे व्यापार आसानी से कर सकें। इसके साथ ही साथ न्यायपालिका की स्वतंत्रता की अवधारणा ने भी जन्म लिया। फैक्टरियों में 16 से 18 घण्टे तक काम लिया जाता था , बाल श्रम जोरांे पर था , अनाथालयों की दशा बड़ी दयनीय थी एवं जहाँ की स्थिति गुलामी से थोड़ी बेहतर थी , जिनका सजीव चित्रण मशहूर अंग्रेजी उपन्यासकार चाल्र्स डिकन्स ने अपनी किताबों में किया है। गुलामों एवं मजदूरों का व्यापारिक प्रतिष्ठानों के द्वारा अनियंत्रित शोषण किया जाता था। शासक वर्ग द्वारा समाजवाद के उदय के भय से एवं 19 वीं शताब्दी में मजदू

हिंदी सबके मन बसी -संजीव'सलिल'

हिंदी सबके मन बसी आचार्य संजीव'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा हिंदी भारत भूमि के, जन-गण को वरदान. हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान.. संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट. उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट.. हिंदी आटा माढिए, उर्दू मोयन डाल. 'सलिल' संस्कृत तेल ले, पूड़ी बने कमाल.. ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य. भवन भव्य है हिंद का, हिंदी ह्रदय प्रणम्य. संस्कृत पाली प्राकृत, हिंदी उर्दू संग. हर भाषा-बोली लगे, भव्य लिए निज रंग.. सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप. स्नेह पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप.. भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय. सबसे सबका स्नेह ही, हो लेखन का ध्येय.. उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक. भाषाएँ अगणित रखें, मन में नेह-विवेक.. भाषा बोले कोई भी. किन्तु बोलिए शुद्ध. दिल से दिल तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..