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Showing posts from February 1, 2009

एक लड़की मुझे सताती है

एक लड़की मुझे सताती है परिच संजय सेन सागर जन्म 10 जुलाई 1988 म.प्र सागर उपलब्धि संजय सेन सागर की कहानी इक अजनबी को ब्राइटनेस पब्लिकेशन ऑफ दिल्ली की तरफ से राइस ऑफ राइटर अवार्ड से य सम्मानित किया जा चुका है।यंग राइटर्स फाउंण्डेशन ऑफ इंडिया गुप्र के मेंबर ! ''हिन्दुस्तान का दर्द'' ब्लॉग के संचालक अंधेरी सी रात में एक खिड़की डगमगाती है सच बताऊँ यारों तो, एक लड़की मुझे सताती है। भोली भाली सूरत उसकी मखमलीं सी पलकें है हलकी इस रोशनी में, मुझे देख शर्माती है सच बताऊँ यारो तो इक लड़की मुझे सताती है बिखरी-बिखरी जुल्फे उसकी शायद घटा बुलाती है, उसके आंखो के काजल से बारिश भी हो जाती है दूर खड़ी वो खिड़की पर मुझे देख मुस्कुराती है। सच बताऊँ यारों तो इक लड़की मुझे सताती है उसकी पायल की छम-छम से एक मदहोशी सी छा जाती है ज्यों की आंख बंद करु मैं तो, सामने वो जाती है सच बताऊँ यारों तो इक लड़की मुझे सताती है! अंधेरी सी रात में एक खिड़की डगमगाती है ज्यों ही आंख खोलता हँू मैं तो ख्वाब वो बन जाती है रोज रात को इसी तरह इक लड़की मुझे सताती है।

''कलम का सिपाही बनें'' और जीतें 1000 रुपए,भाग लेने के लिए ३ दिन शेष

कलम का सिपाही प्रतियोगिता मे भाग लेने के लिए अब ३ दिन शेष है ,जल्दी कीजिये और लिख भेजिए अपनी कविता ''कलम का सिपाही''प्रतियोगिता के लिए !!दोस्तों हमारा मकसद है हिंदी को उसका जायज मुकाम दिलाना जिसमे आपका सहयोग जरुरी है !!तो देर मत कीजिये,इंतज़ार मत कीजिये !! आज ही भेज दीजिये अपनी कविता,हम किसी एक विजेता को १००० रुपए और प्रमाण पत्र से सम्मानित करेंगे!! प्रतियोगिता की शर्तों और अधिक जानकारी के लिए देखें!! प्रतियोगिता कलम का सिपाही आगे यहाँ

नारी के प्रति अपराध - क्यों और कैसे ?

नारी के प्रति किये जाने वाले अपराध विशेषकर वे अपराध हैं जो नारी के प्रति किये ही इसलिये जाते हैं क्योंकि वह एक नारी है।   यह स्वयं में एक विशद विषय है जिस की गहन जांच पड़ताल की जाये तो ज्ञात होगा कि इन अपराधों के पीछे आर्थिक , सामाजिक , मानसिक , सांस्कृतिक - अनेकानेक कारण छिपे हैं।     मसलन , आयु वर्ग की दृष्टि से अवयस्क बालिका / वयस्क युवती / विवाहित महिला के प्रति अपराध अलग अलग प्रकार के हैं।   ग्रामीण व शहरी महिलायें अलग अलग प्रकार के अपराधों की शिकार होती हैं।   शिक्षित / अल्पशिक्षित व अशिक्षित महिलाओं के कष्ट भी एक दूसरे से अलग हैं। नौकरीपेशा और घरेलू महिलाओं को अलग अलग टाइप के अपराधियों से सामना करना होता है।   जातिवर्ग के हिसाब से दलित महिलाओं व सवर्ण महिलाओं के कष्ट भी अलग अलग हैं।   आयवर्ग की दृष्टि से भी अपराधों मे भेद हैं।   अगला प्रश्न आता है - अपराधी कौन लोग हैं ?  परिचित अपराधी कितने प्रतिशत हैं और अपरिचित अपराधियों का कितना प्रतिशत है ?  महिलाओं के प्रति अपराध करने वालों में महिलाओं का और पुरुषों का कितना - कितना प्रतिशत है ?   परिचितों में भी अलग अलग श्