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Showing posts from June 22, 2009

लो क सं घ र्ष !: सुंदर सी, सुन्दरता

है राग भरा उपवन में, मधुपों की तान निराली। सर्वश्व समर्पण देखूं फूलो का चुम्बन डाली॥ स्निग्ध हंसी पर जगती की, पड़ती कुदृष्टि है ऐसी। आवृत पूनम शशि करती, राहू की आँखें जैसी॥ उपमानों की सुषमा सी, सौन्दर्य मूर्त काया सी। प्रतिमा है अब मन में सुंदर सी,सुन्दरता सी॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

जवाहर लाल नेहरू और लेडी माउंटबेटन

लोग कहते हैं इस लव स्टोरी ने भारत के इतिहास को प्रभावित किया है। लेडी माउंटबेटन की बेटी पामेला ने अपनी एक किताब में लिखा है कि दोनों के बीच रुहानी संबंध था। साथ ही वह यह भी कहती हैं कि कई बार मेरी मौजूदगी उन दोनों के लिए असहजता की स्थिति पैदा कर देती थी। दोनों घंटों तक कमरे में अकेले रहते थे। लॉर्ड माउंटबेटन भी दोनों को अकेला छोड़ देते थे। लेकिन यह साबित कोई नहीं कर पाया कि दोनों में शारीरिक संबंध थे। वैसे कुछ चीजें साबित करने के लिए नहीं होती। आगे पढ़ें के आगे यहाँ

इस्लाम का विरोध ही भाजपा का ‘हिन्दुत्व’

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी हार के बाद भाजपा में घमासान मचा हुआ है। सास-बहु के झगड़ो ंकी तरह नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। भाजपा के दो मुस्लिम चेहरों में से एक मुख्तार अब्बास नकवी कह रहे हैं कि ‘मैं वरुण के भाषण की वजह से हारा।‘ नकवी साहब से सवाल किया जा सकता है कि जब वरुण ने मुस्लिम विरोधी बयान दिया था, तब ही आपने अपना विरोध क्यों नहीं दर्ज कराया था ? क्या इसलिए कि तब शायद उन्हें लग रहा होगा कि वरुण के बयान के बाद हिन्दु वोटों का ध्रुवीकरण होगा और वह चुनाव जीत जाएंगे। और यदि नकवी साहब जीत जाते तो क्या तब भी वरुण की ऐसी ही खुली आलोचना करते ? शायद नहीं। अब बात करें जनता दल यू के शरद यादव की। 2004 के चुनाव में शरद यादव ने कहा था कि हम गुजरात दंगों की वजह से चुनाव हारे हैं। अब हालिया चुनाव में अपनी हार का ठीकरा भी नरेन्द्र मोदी के सिर पर फोड़ा है। सवाल यह है कि 2004 की हार से सबक न लेकर आप राजग में क्यों बने हुए थे ? 2009 में तो नरेन्द्र मोदी भाजपा के स्टार प्रचारक थे। तब ही उन्होंने नरेन्द्र मोदी को प्रचार से दूर रखने का दबाव भाजपा पर क्यों नहीं डाला ? भाजपा में बहस इस बात पर थी क

हमका गीली देखात बतोहायकुर्ती॥

हमका गीली देखात बतोहायकुर्ती॥ तोहका थोक के खियौबतम्बाकू सुरती॥ जब सज धज के प्रेम गलिन महंस हंस के आँख लादौलू॥ तोहरे जियरा म देखब कहा ब फुर्ती.. ।तोहका थोक के खियौबतम्बाकू सुरती॥ पकड़ हाथ लाबी तोहरी तोहोय जाबू चितचोर॥ संग म तोहरे ऐसें नाचाबजैसे सावन म मोर॥ हरदम छिनता से बचौबयतोहाय कुर्ती॥ तोहका थोक के खियौबतम्बाकू सुरती॥

लो क सं घ र्ष !: फिर स्वप्न सुंदरी बनना...

वह मूर्तिमान छवि ऐसी, ज्यों कवि की प्रथम व्यथा हो। था प्रथम काव्य की कविता प्रभु की अनकही व्यथा हो॥ निज स्वर की सुरा पिलाकर हो मूक ,पुकारा दृग ने। चंचल मन बेसुध आहात ज्यों बीन सुनी हो मृग ने॥ मुस्का कर स्वप्न जगाना, फिर स्वप्न सुंदरी बनना। हाथो से दीप जलना अव्यक्त रूप गुनना॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'