है राग भरा उपवन में, मधुपों की तान निराली। सर्वश्व समर्पण देखूं फूलो का चुम्बन डाली॥ स्निग्ध हंसी पर जगती की, पड़ती कुदृष्टि है ऐसी। आवृत पूनम शशि करती, राहू की आँखें जैसी॥ उपमानों की सुषमा सी, सौन्दर्य मूर्त काया सी। प्रतिमा है अब मन में सुंदर सी,सुन्दरता सी॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''