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Showing posts from April 15, 2009

Loksangharsha

Loksangharsha कहेगा कैसे भला कोई वे अमाँ हमको। की जब नवाज़ रहा है ये आसमां हमको । कोई ठिकाना नही है जुनूपरस्तों का फ़िर आप ढूंढेंगे आख़िर कहाँ कहाँ हमको । गुलो का खार जमीं को फलक पड़े कहना इलाही कर दे हमको इस आलम में बेजबाँ हमको । जमीन क्या है मुन्नवर है जिनसे अर्शेवारी खुशनसीब मिला उनका आसमां हमको। डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '

जनसंघ की नीतियों में बदलाव कर भाजपा की स्थापना के समय इसे धर्मनिरपेक्षता का चोला दिया

कुलदीप शर्मा दैनिक भास्कर और नई दुनिया में काम कर चुके कुलदीप शर्मा भोपाल में रहकर अब स्वतंत्र पत्रकारिता और लेखन करते हैं। फिलहाल पिछले 60 साल की राजनीति पर पुस्तक लेखन में व्यस्त क्या भाजपा का उद्देष्य अब कूेवल सत्ता प्राप्त करना मात्र रह गया है ठीक अटलबिहारी वाजपेयी की तरह जो हमेषा से एकमात्र महत्वाकांक्षा देष का प्रधानमंत्री बनने की पाले रहे थे? यदि इन प्रष्नों का जवाब हां में दिया जाए तो अनेक लोग इससे असहमत होंगे, क्योंकि ऐसा कहने को अधिकांष लोग नहीं पचा पाएंगे मगर यही हकीकत मानी जा सकती है। इस बात को सिद्ध करने के लिए अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इतना ही नहीं भाजपा की हालिया नीतियों से भी यह जाहिर होता है कि अब उसका ध्येय प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आडवाणी को आसीन करना ही रह गया है, क्योंकि जिस तरह से वाजपेयी की एकमात्र महत्वाकांक्षा देष का प्रधानमंत्री बनने की रही थी और उन्होंने इसके लिए जनसंघ की घोषित नीतियों में बदलाव कर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के समय इसे धर्मनिरपेक्षता का चोला पहनाया दिया था, जबकि जनसंघ की नीतियों में संभवतः ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं थी। इसका कारण यही मान

असाधारण महिला ....

मेरी क्युरी का नाम उस वक्त सुना था जब चौथी क्लास में था । मामा जी एक किताब लाये थे जिसमे लिखा था की इन्हे दो बार नोबल प्राइज़ मिल चुका है । पहली महिला भी है ,जिनको नोबल प्राइज़ मिला । मामा जी ने कहा देख लो इस महिला को इसके जैसा कोई नही हुआ आज तक । दो बार नोबल प्राइज़ जित चुकी है । मैंने पहली बार नोबल प्राइज़ का नाम भी सुना । समझ में नही आया । इतना जरुर समझ लिया की एक बड़ा पुरस्कार होगा । बाद में नोबल को भी अच्छी तरह से जाना और मैडम क्युरी को भी । ग्यारहवी क्लास में देवरिया के इंटर कोलेज में प्रवेश लिया । पास में ही एक नागरी प्रचारणी सभा थी । मै अक्सर वहां न्यूज पेपर व पत्रिकाएं पढने जाया करता था । एक दिन वही से मैडम क्युरी पर आधारित एक किताब लाया और उसे पुरे मनोयोग से पढ़ा । बचपन की यादें और मामा जी का चेहरा सामने उभर आया । मैडम क्युरी विख्यात विख्यात भौतिकविद और रसायनशास्त्री थी। पोलैंड के वारसा नगर में जन्मी मेरी ने रेडियम की खोज की थी।वारसा में महिलायों को उच्च शिक्षा की अनुमति नही थी । अतः मेरी ने चोरी छिपे उच्च शिक्षा प्राप्त की । पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनने वाली पहली म

क्या है चुनावी मुद्दा...?

सारान्श यहाँ चुनावी माहोल में नेता लोग शायद देश की वास्तविक समस्याओं को भूल गए है!तभी तो सब एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करने लगे है...!इनकी बातें सुन कर तो ऐसे लगता है जैसे देश में कोई मुद्दा ही नहीं है..!मोदी .कांग्रेस को बूढी बता रहे है तो कांग्रेस वाले बी जे पी को ?चलो दोनों .बूढी नहीं है...युवा है...पर ये तो बताइए युवा जन के लिए आपकी क्या योजना है....युवा वर्ग को क्या तोहफा देंगे आप?आज पूरे विशव में आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है....युवाओं की नोकरियाँ जा रही है...!कुछ दिनों के अन्दर ही लाखों युवा बेरोजगार हो गए है...!हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है...!क्या हम बचा पाएंगे?मिलेगी नोकरी...?दूर होगी आर्थिक मंदी?इसके अलावा महंगाई भी सुरसा की तरह मुह बाए खड़ी है...?कीमते आसमान छू रही है...और नेताओं को मसखरी सूझ रही है....!क्या देश में अब कोई मुद्दा नहीं रहा...जो ने३त फालतू की बहस छेड़े .बैठे है....अब आप देखिये किस तरह ये लोग एक दूसरे पर कीचड उछालते फ़िर रहे है...?गडे मुर्दे उखाड़ने से या धर्म की ठेकेदारी करने से .क्या होगा...?युवा लोग आपसे उम्मीद लगायें बैठे है....उन्हें हों

भ्रमर और पुष्प..

हे पुष्प तुम्हारे रस को मई। सदियों से चूसते आया हूँ॥ तेरे कारण काला हूँ मै। रूप कलूटा पाया हूँ॥ कलि तेरी खिलने से पहले उसपर मै मडराताहूँ॥ चूस सुगन्धित रस को तेरे आत्म्संतुस्ती पाता हूँ॥ काले तन पर नाज़ मुझे है। तुम भी मुझपर मरती हो॥ चटक-मटक से हरदम रहती। धुप छाव भी सहती हो॥ रंग बदलते देर न लगाती तेरा रूप निराला है॥ तेरे अन्दर अर्पण है वह जो तेरा चाहने वाला.. चढ़ते यौवन आँख मिचौली। मुझसे करने लगती हो॥ बन थन कर मेरी राह जोहती। हस हस कर बातें करती हो॥ तेरी महक को हवा में सूंघकर बड़ी दूर से आया हूँ॥ आते ही तेरी बाहों में अपनी बाह सताया हूँ॥ जो सुख तेरी इस कलियाँ में। वह सुख कही न आयेगा॥ रमते जमते कही भी घूमू। कोई नही मुझको भाएगा॥ सूर्यास्त बाहों में कस कर। मुझको ले सो जाती हो॥ प्रातः काल संघ मेरे उठती। फ़िर मुझको नहलाती हो॥ कितना कोई मुझे बुलाये कही नही मै जाता हूँ॥ तेरे ही द्वारे में आके तेरी अलख जगाता हूँ॥ हे पुष्प तुम्हारे रस को मई।सदियों से चूसते आया हूँ॥ तेरे कारण काला हूँ मै।रूप कलूटा पाया हूँ॥

कब जायेगी इस गाँव से असभ्यता

जब मैं शहर से गाँव पहुँचा तो मैं किसी साधन से घर जाना उचित समझा और एक टैक्सी से गाँव के गलियों में घुसा तो लोग हमें घूर-घूर के देख रहे थे और हमारे बाप का नाम लेकर कह रहे थे "कि ससुर चमार इतना मोटासा होय गा अहा कि, टैक्सी से गाँव के अन्दर से अपने घर जात बाटे" उनकी बोली सुन कर मैं आवाक था, लेकिन हमारी हिम्मत नहीं हुयी कि उन लोगो से बात करूँ कि क्या चमार इन्सान नहीं होते उनमें खून नहीं है, वे तुम्हारे लोगों की तरह नहीं खाना खाते कपड़े नहीं पहनते है आखिर क्या कारण है जो तुम लोग ऐसी बातें कर रहे हो..। लेकिन मैं नहीं बोल सका अगर मैं बोल देता तो शायद कुछ अनहोनी ही हो जाती क्यों कि इस गाँव मे ठाकुरों की अधिक संख्या है.. और उन्हीं लोगो का बोल बाला है। वे लोग मनचाहा ही कार्य करते है। यहाँ पर अब भी लम्मरदारी प्रथा थोड़ी बहुत तो है ही, लेकिन मैं जब अपने घर पहुचा तो माँ ने कहा कि बेटवा काहे का टैक्सी से आया पैदल या ताँगा से आवय का रहन जब मैंने पूछा ऐसा क्यों? तो माँ बोली इस गाँव के ठाकुरों को जलन होती है। छोटे लोगों को आगे बढ़ते देख ये लोग जलते हैं। देखो बेचारी अनारा को किसी तरह पैसों क

अनारा दीदी का झमेल

एक अकेली औरत जंगल में पेड़ की पत्तियों को बहार करके इकट्ठा करती है और खैंची में भरती है। उसके बाद सिर पर उठाने की कोशिश करती है, लेकिन उसकी खैंची इतनी गहरी और बड़ी होती है कि उठाना अकेले आदमी के लिए असम्भव है वह उन पत्तियों को घर इसलिए ले जाती है कि गाँव के लोग उसके यहाँ सुबह शाम दाना भुजाने के लिए आते हैं। चाहे दाने में खाने योग्य कोई भी अन्न हो सकता है। लोगों का दाना (चबैना) भूंजाना एक नित्य कर्म बन गया है। अगर आप भी उस गाँव मेत्र् पहुँचेंगे तो आप यही सोचेंगे कि लोग इतना सारा आनाज भुंजा के ले जाते हैं फिर तो ये लोग खाना नहीं खाते होंगे! लेकिन आप सही सोचेंगे। उस गाँव के लोग सुबह चबैना चबाने के बाद काम करने चले जाते हैं और दोपहर को जब आते हैं तो खाना खाते हैं। मैं बात अनारा दीदी की कर रहा था जो सारे गाँव मे एक ही भरभुंजा हैं। वह एक औरत हैं जो सारे गाँव के लोगों को हर एक प्रकार के चबैने का स्वाद चखाती हैं और वह अपने लिए नहीं इतनी मेहनत करती हैं। वह तो विधवा हैं उसे 30-35 साल विधवा हुए हो गए हैं। वह जब अपनी दर्द भरी कहानी कहती हैं तो लोगों को जरूर आँसू गिर जातेहैं। लेकिन उस गाँव के लोगों

एक बार फिर से धर्म के नाम पे लोगो को काटने को तयारी

ए क बार फिर से धर्म के नाम पे लोगो को काटने कि तयारी कर रही है BJP. बकवास , राजनाथ सिंह बेवाकुफ्फ़ बनाना चाहते हैं ,वो सोच रहे हैं की लोग इस बकवास के पचडे में पड़ने के लिए वोट देंगे , ये B.J.P. की सबसे बड़ी गलती है . आब पब्लिक समझदार हो गई है और मुझे लगता है की BJP हमेसा k लिए गायब हो जायेगी . धर्म की राजनीति करके ये लोग na सिर्फ़ पार्टी बल्कि हमारे भारत देश का भी नाम ख़राब क़र रहे हैं ये लोग . मुझे लगता है ये लोग दिमागी तौर से बीमार हैं , इन्हे चेयर की नही मेंटल हॉस्पिटल की जरूरत है . धर्म के नाम पे कई सारे संघ बन गए हैं जिनमे 99% आतंकवादी वाले काम करते हैं , जैसे अभी मंगलोर में राम सेना ने जो किया वो बहूत ही सर्म्नक था . संघ का नाम राम सेना और भगवन राम के आदर्शो को ही भूल गए ? . और वो दूसरा वो ढोंगी बाबा मलेगओं ब्लास्ट वाला - आब उसे कौन समझाए की "साधू " का मतलब "अच्छा " होता है .कोई तो समझाए BJP को की ये भड़काऊ बयां न दे , इससे राजनाथ जैसे नेता को तो कुछ नही होगा लेकिन जो "आम आदमी " है उनकी जिंदगी में समस्याएं बढ़ जायेगी । में लोगो से भी गुजारिश करूँगा की ल

भूखी आधी आबादी है। ये कैसी आजादी है?

आ ज के दिन की शरुआत हम कर रहे है अमित दुबे जी की इस कविता के साथ! अमित जी एक मंझे हुए लेखक है और एक न्यूज़ चैनल में काम करते है,यह हिन्दुस्तान का दर्द के अच्छे सहयोगी है और समय-समय पर अपनी रचनाएँ हम तक पहुंचाते रहते है! तो कैसी लगी आपको अमित जी की यह रचना अपनी राय हम तक भेजें! भूखी जनता सूखे खेत, वादों से नहीं भरता पेट। जनता हो गई होशियार, वादा नहीं चाहिए रोजगार।। 5 साल बाद फिर आई है जनता की बारी। केवल वादे करने वाले, कर लें जाने की तैयारी।। अब ना चलेगी किसी तरह की कोई मनमानी। क्योंकि देश की जनता ने सबक सिखाने को ठानी।। आने वाले ने नए चेहरों से भी यही है कहना। जनता की मांगों पर सबसे पहले गौर करना।। जनता नहीं चाहती नारे और शोर। वरना खींच डालेगी की कुर्सी की डोर।। हर पार्टी से जनता की है गहरी नाता। चुनाव-चिह्न नहीं, उन्हें रोटी और रोजगार भाता।। देश की जनता से भी एक अर्जी। वोट डालकर, जाहिर कर देना अपनी मर्जी।। क्योंकि...भूखी आधी आबादी है। ये कैसी आजादी है? आगे पढ़ें के आगे यहाँ