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Showing posts from June 14, 2010

भोपाल गैस त्रासदी

...तो अब मुंह खोलेंगे अर्जुन सिंह विजय कुमार झा न्यूज़ एडिटर, भास्कर डॉट कॉम भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़तों के पक्ष में हर ओर से उठ रही आवाज के मद्देनजर अब प्रधानमंत्री को भी बोलना पड़ा है । उन्‍होंने मंत्रियों के समूह से दस दिन में रिपोर्ट देने के लिए कहा है। वह इस रिपोर्ट को जल्‍द ही कैबिनेट में भी विचार के लिए रखे जाने की बात कह रहे हैं। मंत्रियों के समूह को यह पता भी लगाना है कि भोपाल गैस कांड का मुख्‍य अभियुक्‍त वारेन एंडरसन कैसे देश से भागने में कामयाब रहा। इसका जवाब अर्जुन सिंह को पता है। पर वह कह रहे हैं कि सही समय पर मुंह खोलेंगे। तो क्‍या दस दिन में वह समय आने वाला है? या अर्जुन के मुंह खोले बिना मंत्रियों का समूह 'सच' सामने लाने वाला है। भोपाल गैस कांड का मुद्दा फिलहाल अदालती फैसला आने के बाद गरम हुआ है। हर ओर से दो बातों के विरोध में ही सुर उठ रहे हैं। एक तो, हजारों मौतों के जिम्‍मेदार लोगों को महज दो साल की सजा और उसमें भी तुरंत जमानत मिल जाने के विरोध में है। और, दूसरा यह कि मुख्‍य अभियुक्‍त वारेन एंडरसन को कांड के तुरंत बाद सरकार ने भगा दिया और फिर उसे भारत न

लो क सं घ र्ष !: हिंदी ब्लॉगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-2009, भाग-6

आईये शुरुआत करते हैं व्यंग्य से , क्योंकि व्यंग्य ही वह माध्यम है जिससे सामने वाला आहत नहीं होता और कहने वाला अपना काम कर जाता है । ऐसा ही एक ब्लॉग पोस्ट है जिसपर सबसे पहले मेरी नज़र जाकर ठहरती है .... १५ अप्रैल को सुदर्शन पर प्रकाशित इस ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक है - आम चुनाव का पितृपक्ष ......व्यंग्यकार का कहना है कि -" साधो , इस साल दो पितृ पक्ष पड़ रहे हैं । दूसरा पितृ पक्ष पण्डितों के पत्रा में नहीं है लेकिन वह चुनाव आयोग के कलेण्डर में दर्ज है । इस आम चुनाव में तुम्हारे स्वर्गवासी माता पिता धरती पर आयेंगे , वे मतदान केन्द्रों पर अपना वोट देंग और स्वर्ग लौट जायेंगे । " इस व्यंग्य में नरेश मिश्र ने चुटकी लेते हुए कहा है कि -" अब मृत कलेक्ट्रेट कर्मी श्रीमती किशोरी त्रिपाठी को अगर मतदाता पहचान पत्र हासिल हो जाता है और उसमें महिला की जगह पुरूष की फोटो चस्पा है तो इस पर भी आला हाकिमों और चुनाव आयोग को अचरज नहीं होना चा

लो क सं घ र्ष !: हिंदी ब्लॉगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-2009, भाग-5

आईये आज की चर्चा की शुरुआत करते हैं सामाजिक , सांस्कृतिक और एतिहासिक महत्व से संवंधित विविध विषयों पर केंद्रित कुछ महत्वपूर्ण पोस्ट से । " ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का माध्यम है। पर सार्वजनिक रूप से अपने को अभिव्यक्त करना आप पर जिम्मेदारी भी डालता है। लिहाजा, अगर आप वह लिखते हैं जो अप्रिय हो, तो धीरे धीरे अपने पाठक खो बैठते हैं।" यह कहना है श्री ज्ञान दत्त पांडे जी का मानसिक हलचल के २६ जनवरी के पोस्ट अपनी तीव्र भावनायें कैसे व्यक्त करें? पर व्यक्त की गई टिपण्णी में । वहीं उड़न तश्तरी .... के १३ फरवरी (प्रेम दिवस ) के पोस्ट मस्त रहें सब मस्ती में... में श्री समीर भाई ने बहुत ही मार्मिक बोध कथा का जिक्र किया है कि" एक साधु गंगा स्नान को गया तो उसने देखा कि एक बिच्छू जल में बहा जा रहा है। साधु ने उसे बचाना चाहा। साधु उसे पानी से निकालता तो बिच्छू उसे डंक मार देता और छूटकर पानी में गिर जाता। साधु ने कई बार प्रयास किया मगर बिच्छू बार-बार डंक मार कर छूटता जाता था। साधु ने सोचा कि जब यह बिच्छू अपने तारणहार के प्रति भी अपनी डंक मारने की पाशविक प्रवृत्ति को नही