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Showing posts from August 10, 2010

मेरे बचपन का दोस्त ..मुझे याद आने लगा॥

मेरे बचपन का दोस्त ..मुझे याद आने लगा॥ देख के उसकी सूरत दिल मचलाने लगा॥ पप्पू को पुकारा वह हाथ बचाने लगा॥ घर वालो ने एक भूत को बुलाया था॥ मेरा दुल्हा बनने के लिए मेरे घर आया था॥ देख के उसकी सूरत को अन्धेरा यूं छाने लगा॥ मेरे बचपन का दोस्त ॥मुझे याद आने लगा॥ पप्पू और उसमे आठ आने का फर्क था॥ पप्पू गरीब वह अमीर घर का मर्द था॥ माँ दिखाया उसे हमें आंसू आने लगा॥ मेरे बचपन का दोस्त ॥मुझे याद आने लगा॥ पप्पू का रूप देख सहेलिया डिग जाती थी॥ बिना बात के उसे अपने पास बुलाती थी॥ हमें बुरा लगा था बुखार आने लगा॥ मेरे बचपन का दोस्त ॥मुझे याद आने लगा॥ माँ ने समझाया पडोसी पति नहीं होते॥ पड़ोस वाले ही व्यंग के बीज बोते॥ अपनी किस्मत पे मुझे रोना आने लगा॥ मेरे बचपन का दोस्त ॥मुझे याद आने लगा॥ मै हठ कर बैठी ब्याह पप्पू से राचऊगी॥॥ या बिना मांग भरे कुवारी ही मर जाऊगी॥ पप्पू का चेहरा हमें इशारों में बुलाने लगा॥ मेरे बचपन का दोस्त ..मुझे याद आने लगा॥ तब माँ ने पप्पू के बाप को बुलाया था॥ साड़ी हकीकत मेरे ससुर जी को सुनाया था॥ बात हुयी पक्की मौसम गीत गाने लगा॥

हिंदी दिवस

हिंदी दिवस पर एक नेता जी बतिया रहे थे, ‘मेरी पब्लिक से ये  रिक्वेस्ट  है कि वे हिन्दी अपनाएं इसे  नेशनवाइड पापुलर लेंगुएज  बनाएं और हिन्दी को  नेशनल लेंगुएज  बनाने की अपनी  डयूटी  निभाएं।’ 'थैंक्यू'  करके नेताजी ने विराम लिया। जनता ने  क्लैपिंग  लगाई कुछ 'लेडिज नुमा' महिलाएं ‘ वेल डन! वेल डन !!’ चिल्लाईं। ‘सब अंग्रेजी बोल रहे है..’ ‘हिन्दी-दिवस? ’ ...मैं बुदबदाया। ‘हिन्दी दिवस नहीं, बे!  हिन्दी डे !’ साथ वाले ने मुझ अल्पज्ञानी को समझाया।                                                            - रोहित कुमार ‘हैप्पी’                                                             संपादक, भारत-दर्श