नवगीत: चलो! कुछ गायें... संजीव 'सलिल' क्यों है मौन? चलो कुछ गायें... * माना अँधियारा गहरा है. माना पग-पग पर पहरा है. माना पसर चुका सहरा है. माना जल ठहरा-ठहरा है. माना चेहरे पर चेहरा है. माना शासन भी बहरा है. दोषी कौन?... न शीश झुकायें. क्यों है मौन? चलो कुछ गायें... * सच कौआ गा रहा फाग है. सच अमृत पी रहा नाग है. सच हिमकर में लगी आग है. सच कोयल-घर पला काग है. सच चादर में लगा दाग है. सच काँटों से भरा बाग़ है. निष्क्रिय क्यों? परिवर्तन लायें. क्यों है मौन? चलो कुछ गायें... * Acharya Sanjiv Salil http://divyanarmada.blogspot.com