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Showing posts from April 9, 2010

नवगीत: आओ! तम से लड़ें... --संजीव 'सलिल'

नवगीत: चलो! कुछ गायें... संजीव 'सलिल' क्यों है मौन? चलो कुछ गायें... * माना अँधियारा गहरा है. माना पग-पग पर पहरा है. माना पसर चुका सहरा है. माना जल ठहरा-ठहरा है. माना चेहरे पर चेहरा है. माना शासन भी बहरा है. दोषी कौन?... न शीश झुकायें. क्यों है मौन? चलो कुछ गायें... * सच कौआ गा रहा फाग है. सच अमृत पी रहा नाग है. सच हिमकर में लगी आग है. सच कोयल-घर पला काग है. सच चादर में लगा दाग है. सच काँटों से भरा बाग़ है. निष्क्रिय क्यों? परिवर्तन लायें. क्यों है मौन? चलो कुछ गायें... * Acharya Sanjiv Salil http://divyanarmada.blogspot.com

अभिज्ञात के रूप में कहानी का फिर एक तारा चमका है- संजीव

कोलकाताः  अभिज्ञात के रूप में कहानी का फिर एक तारा चमका है। एक जीवंत कथाकार की पुस्तक 'तीसरी बीवी' के लोकार्पण में मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। वे उम्र में छोटे हैं, लेकिन उनके अनुभव की एक बड़ी दुर्जेय दुनिया है जो उनके डेग और डग को विरल और विशिष्ट बनाती है। यह कहना है प्रख्यात कथाकार और हंस के कार्यकारी संपादक संजीव का। भारतीय भाषा परिषद सभागार में 6 अप्रैल 2010 मंगलवार की शाम अभिज्ञात के कहानी संग्रह 'तीसरी बीवी' का लोकार्पण करते हुए उन्होंने यह बात कही।   संजीव ने कहा कि मैंने उनकी दो कहानियां हंस में छापी हैं। उनकी कहानियों के जो पारिवारिक दायरे हैं उनमें द्वंद्व के नये क्षेत्र, आस्था के नये बिन्दु हैं। उन्होंने समकालीन कथासंसार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे धन्य हैं जो प्रयोग के लिए प्रयोग और कला के कला का सहारा लेते हैं। पुनरुत्थानवाद फिर आ गया है जिसके परचम लहराये जा रहे हैं। नये कथाकारों की फौज़ आयी है। भाषा के एक से एक सुन्दर प्रयोग हो रहे हैं। अगर अपनी आत्ममुग्धता को सम्भाल लें तो बहुत है। अभिज्ञात की राह उनसे अलग है। मेरे पास हंस में प्रकाशनार्थ रोज

लो क सं घ र्ष !: न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के सवाल पर जंग

राज्यसभा में भ्रष्टाचार से आरोपित कर्नाटक उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस पि . डी . दिनाकरण पर महाभियोग की कार्यवाही लंबित है । उच्चतम न्यायलय चयन मंडल ने जस्टिस दिनाकरण को छुट्टी पर जाने की सलाह देकर उनकी जगह दिल्ली उच्च न्यायलय के जज जस्टिस मदन बी लोकुर को मुख्य न्यायधीश नियुक्त कर दिया था । अब जस्टिस दिनाकरण ने छुट्टी पर जाने से इनकार कर एक संविधानिक संकट खड़ा कर दिया है माननीय उच्च न्यायलय व उच्चतम न्यायलय के न्यायधीशों को हटाने की प्रक्रिया वही है , जो प्रक्रिया देश के राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति की है । माननीय न्यायधीश चाहे जितने भ्रष्ट हो जाएँ चाहे जितना निरंकुश हो जाएँ उन्हें महाभियोग के अतिरिक्त नहीं हटाया जा सकता है इसीलिए आज तक किसी भ्रष्ट न्यायमूर्ति को हटाया नहीं जा सका है लेकिन उन भ्रष्ट न्यायमूर्तियो ने निरंकुशता का परिचय नहीं दिया था और चयन मंडल की सलाह से छुट्टी पर चले गए थे लेकिन श्री दिनाक

राजस्थान में राजस्थानी ही हो शिक्षा का माध्यम

राजस्थान में राजस्थानी ही हो शिक्षा का माध्यम गलती सुधारने का सुनहरा अवसर गांधी जी के शब्द- 'जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे आत्महत्या ही करते हैं।' -सत्यनारायण सोनी त्रिगुण सेन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए। दूसरी ओर राजस्थान के शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल का बचकाना बयान अखबारों में प्रकाशित हुआ है कि फिलहाल राज्य में हिन्दी ही मातृभाषा है। जबकि मां हमें जिस भाषा में दुलारती है, लोरियां सुनाती है, जिस भाषा के संस्कार पाकर हम पलते-बढ़ते हैं, वही हमारी मातृभाषा होती है। मंत्री महोदय के बयान पर तरस आता है और बरबस ही उनके लिए कुछ सवाल जेहन में खड़े हो जाते हैं। माननीय मंत्री महोदय भी इसी राज्य के हैं। क्या उनकी मातृभाषा हिन्दी है? क्या उन्होंने अपनी मां से हिन्दी भाषा में लोरियां सुनीं। हिन्दी में ही उनके घर पर विवाह आदि उत्सवों के गीत गाए जाते हैं? हिन्दी में ही वे वोट मांगते हैं? जनता से संवाद हिन्दी में करते हैं? जिस महानुभव को महज इतना-सा अनुभव नहीं, उन्हें राजस्थान के शिक्षा म