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Showing posts from April 25, 2009

Loksangharsha: घटाओं को आक्रोश है...

कुन्तलों पर घटाओं को आक्रोश है। चंद्रमा मुख से करता सा परिहास है। कुम्भ शिखरों सदृश कटि लजाई हुई- नूपुरों ने किया मन को मदहोश है॥ नैन देते है निमंत्रण पर रागिनी निर्दोष है। मन का संयम टूटता है पर चांदनी निर्दोष है। गहन तम के पार जन दृष्टि का ठहरा कठिन - कालिमा मन की गले पर यामिनी निर्दोष है॥ है अभावो भरा इनका सारा जनम। जोङते जोङते बिखरा सारा जनम । गाँव जिंदगी श्राप सी हो गई - एक पल को हँसे रोये साए जनम॥ दीन की दीनता जब नमन छोड़ देगी । मनुज की मनुज़तर घरम छोड़ देगी। नदी के किनारों संभल जावो वरना- लहर बढ़ बनकर कसम तोड़ देगी॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

विकलांग पुलिस प्रशासन ने अपराधियों के समक्ष घुटने टेके व पीड़ित को खुद मामला सलटाने को कहा

महेश कुमार वर्मा http://popularindia.blogspot.com/ हमारी पुलिस प्रशासन का हालात कैसी है इसका अंदाजा इसी घटना से लगाया जा सकता है कि आगामी ३०।०४।२००९ को लोकसभा चुनाव है और इससे मात्र ८ दिन पहले २२.०४.२००९ को एक प्रा. वि. के हेडमास्टर श्री चितरंजन भगत का अपहरण होता है। पर घटना के चौथे दिन आज २५.०४.२००९ के अब तक भी पुलिस द्वारा न तो अपहर्ता के विरुद्ध कोई खाश कार्रवाई ही की गयी है न तो अपहृत को ही उनके चंगुल से मुक्त कराया गया है जबकि अपहर्ता व अपहृत से मोबाईल पर बराबर बात हो रही है। इसके बावजूद भी पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं की जा रही है। आरक्षी अधीक्षक (एस. पी.) ने स्पष्ट रूप से कल २४.०४.२००९ को पीड़ित वालों को कह दिया कि मेरे पास कार्रवाई करने के लिए फोर्स नहीं है। वहीं डी. एस. पी. ने कह दिया कि आपलोग खुद अपने स्तर से मामला को सलटा लें। उल्लेखनीय है कि अपहर्ता द्वारा मोबाईल पर ६ लाख रूपये फिरौती की माँग की गयी है (जो बाद में कम कर ४ लाख कर दिया गया है) और पैसे जमा करने के लिए आज २५.०४.२००९ तक का समय दिया गया है अन्यथा अपहृत को जान से मार डालने की धमकी दी गयी है। पर पुलिस अब तक हाथ पर ह

गीतिका - आचार्य संजीव 'सलिल'

'सलिल' को दे दर्द अपने, चैन से सो जाइए. नर्मदा है नेह की, फसलें यहाँ बो जाइए. चंद्रमा में चांदनी भी और धब्बे-दाग भी. चन्दनी अनुभूतियों से पीर सब धो जाइए. होश में जब तक रहे, मैं-तुम न हम हो पाए थे. भुला दुनिया मस्त हो, मस्ती में खुद खो जाइए. खुदा बनने था चला, इंसा न बन पाया 'सलिल'. खुदाया अब आप ही, इंसान बन दिखलाइए. एक उँगली उठाता है जब भी गैरों पर; सलिल' तीन उँगली चीखती हैं, खुद सुधर कर आइए.

जीवन

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है । सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ??? अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा । फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है । सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे । इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में ! यह सनसनी है या हकीकत नही पता । अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ... इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पत

धर्मनिरपेक्षता केवल वरुण गाँधी की टिप्पणी , गुजरात दंगों और विनायक सेन तक सीमित है क्या ?

आज जनसत्ता में संपादक के नाम रमेश कुमार दुबे का पत्र :- अपूर्वानंद का एक आलेख " शुभ संकेत नहीं "१५ अप्रैल की जनसत्ता में पढ़ा । वचन भंग के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा कठोर दंड न देने की केवल और केवल एक घटना( बाबरी मस्जिद विध्वंस पर कल्याण सिंह को कठोर सजा न देना ) का जिक्र किया गया है । कावेरी के पानी बटवारे को लेकर उच्चतम न्यायालय के आदेशों की धज्जियाँ उडाने वाली राज्य सरकारों के निर्णय क्या भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत हैं ? लेखक सलवा-जुडूम और विनायक सेन को लेकर चिंतित हैं लेकिन नक्सलियों के हाथों मारे जाने वाले परिवारों के प्रति कोई संवेदना प्रकट नही करते ? केन्द्रीय पुलिस बल में तैनात मेरे एक सहपाठी को नक्सलियों ने मौत के घाट उतर दिया । अब उसकी विधवा और मासूम बच्ची का क्या होगा ? ऐसी हजारों नक्सल पीड़ित बेबाओं और मजलूमों के बारे में लेखक ने कभी दो शब्द भी लिखे हों मुझे याद नही आता । लेखक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा अवयस्क मुस्लिम छात्र के दाढ़ी रखने और तालिबानीकरण के बीच रिश्ते खोजने का तो उल्लेख करते हैं , लेकिन इस मुद्दे को नही उठाते कि बारहवीं तक सामान

अब इस बुढापे में खुस्वंत से क्या उम्मीद की जाए ....

खुशवंत सिंह ने "दैनिक हिन्दुस्तान " में २४ जनवरी २००९ को एक लेख लिखाजिसमे उन्होंने लालच को वर्तमान के सभी समस्याओं के ....एक बुनियादी कारण के रूप में... देखा॥ पेश है उनकी टिपण्णी पर टिपण्णी॥ खुशवंत सिंह निश्चित तौर पर आज के बुद्धिजीवी वर्ग के प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं। उनकी सोच और समझ के सभी कायल हैं और समाज का एक बड़ा तबका उनकी कलम से प्रभावित और प्रवाहित होता है। उन्होंने अपने इस लेख में पञ्च मकारों (काम, कोध, लोभ, मोह और लालच।) के मध्य लालच को सबसे व्यापक और दुष्प्रभावी माना है। उन्होंने सत्यम घोटाला, झारखण्ड में सिबू सोरेन का गद्दी छोड़ना, उत्तर प्रदेश में मायावती का जन्मदिन का मामला, राजस्थान में वशुंधरा राजे के खिलाफ भ्रस्टाचार जैसे मामले में लालच को हीं पर्याय माना हैयह तो सत्य है कि मनुष्य आपनी भावी ज़िन्दगी और योजनाओं के प्रति मानसिक तौर पर इतना कृतसंकल्प हो जाता है कि वर्तमान और इसकी उपलब्धियां अन्धेरें में लगती हैं। हाँ जब कभी उसका अंहकार हावी होता है, तो उसकी अभिव्यक्ति वह अपने इतिहास और वर्तमान के सापेक्ष में हीं करता है। परन्तु यह क्या सत्य नही कि "ज़रूरत &q

शूर्पनखा

सूर्पनखा भी एक पात्र है , जग्विजयी रावण की भगिनी। बनी कुपात्र परिस्थितियों वश , विधवा किया स्वयं भ्राता ने । राज्य मोह पदलिप्सा कारण , पति रावण विरोध पथ पर था। कैकसि और विश्रवा ऋषि की , थी सबसे कनिष्ठ संतान । अतिशय प्रिय परिवार दुलारी , सारी हठ पूरी होतीँ थीं। मीनाकृति सुंदर आँखें थीं , जन्म नाम मीनाक्षी पाया। लाड प्यार मैं पली बढ़ी वह , माँ कैकसि सम रूप गर्विता । शूर्प व लंबे नख रखती थी , शूर्पनखा इसलिए कहाई । शुकाकृति थी सुघड़ नासिका , शूर्प नका भी कहलाती थी । जन स्थान की स्वामिनी थी वह, था अधिकार दिया रावण ने । पर पति की ह्त्या होने पर, घृणा द्वेष का ज़हर पिए थी । पूर्ण राक्षसी भाव बनाकर , अत्याचार लिप्त रहती थी । अश्मक द्वीप ,अश्मपुर शासक , कालिकेय दानव विध्युत्ज़िहव; प्रेमी था वह शूर्पनखा का , रावण को स्वीकार नहीं था। सिरोच्छेद कर विध्युत्जिब का , नष्ट कर दिया अश्मकपुरको । पति ह्त्या से आग क्रोध की, लगी धधकने शूर्पनखा में । पुरूष जाति प्रति घृणा भाव मैं , शीघ्र बदलकर तीव्र होगई । प्रेम पगी वह सुंदर रूपसि , एक कुटिल राक्षसी बन गयी। यह दायित्व पुरूष का ही है, सदा रखे सम्मान नारि का ।

मेरी बहन शर्मीला !

क्या आप इरोम शर्मीला को जानते हैं ? वो दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र में पिछले ८ सालों से भूख हड़ताल पर बैठी है , उसके नाक में जबरन रबर का पाइप डालकर उसे खाना खिलाया जाता है , उसे जब नहीं तब गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाता हैं , वो जब जेल से छूटती है तो सीधे दिल्ली राजघाट गांधी जी की समाधि पर पहुँच जाती है और वहां फफक कर रो पड़ती है , कहते हैं कि वो गाँधी का पुनर्जन्म है , उसने ८ सालों से अपनी माँ का चेहरा नहीं देखा , उसके घर का नाम चानू है जो मेरी छोटी बहन का भी है और ये भी इतफाक है कि दोनों के चेहरे मिलते हैं | कहीं पढ़ा था कि अगर एक कमरे में लाश पड़ी हो तो आप बगल वाले कमरे में चुप कैसे बैठ सकते हैं ? शर्मीला भी चुप कैसे रहती ? नवम्बर २ , २००० को गुरुवार की उस दोपहरी में सब बदल गया , जब उग्रवादियों द्वारा एक विस्फोट किये जाने की प्रतिक्रिया में असम राइफल्स के जवानो ने १० निर्दोष नागरिकों को बेरह

मेरे देश का दिल अब रोता है।

मेरे देश का दिल अब रोता है। पापियों के पाप से। ये गंदे इंसान से॥ गन्दगी को धोता है॥ ................................... रोज़ धमाके यहाँ पे होते दहशत चारो ओरहै। अब्लाओ की इज्जत लुटती महापाप ये घोर है॥ सरकारी नेता अफसर गन बोते बीज संताप के॥ पापियों के पास से..... .............................. गली गली गांजा दारू बिकते खुलेआम है। गुंडे गर्दी दादा गिरी बच्चो के हाथ में जाम है॥ देश का शाशन ऐसे चलता जैसे बिना लगाम के॥ पापियों के पाप से॥ ....................................... दस दस पग पर घपले होते सौ मीटर पर चोरी। मूक बधिर शाशन सत्ता है। ऐसी क्या मजबूरी॥ जनता का माल हड़प जाते है॥ डरते न भगवान् से॥ पापियों के पाप से। ये गंदे इंसान से॥ गन्दगी को धोता है॥ मेरे देश का दिल अब रोता है।

~~~~~~~~~~~~~इंसान~~~~~~~~~~~~~~~

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~इंसान~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कब जन्म हुआ कई राय है पर इस पर मेरी कोई राय नही । इंसान जंगल में रहने वाला जानवर था जो आज केवल कुछ जगह आदिवासी के रूप में जन जाता है । पर कल तक ये इंसान जंगल में अकेला रहता था और अन्य जंगली जानवर इस पर हमला करते थे व इसका शिकार करते थे । इसने अपना बचनेके लिए जन समूह में रहने लगे और इससे समुदाय का विकास हुआ | आज भी समुदाय में काम अच्छे प्रकार से किए जाते है या सब काम समुदाय के सिधांत पर ही किया जाता है । समुदाय में रहने पर इसको जंगली जानवरों से निपटने पर एक आसान तरीका मिल गया पर भोजन के लिए जंगलो पर निर्भर रहने वाला व्यक्ती jangaloo का डर जंगली जवारों का डर तो इसने आपने खाने के लिए खेती करना सुरु किया और जानवरों को बंधक बनाना सुरु किया इसके बदले वो जानवरों को सुराचा और खाना भी देते थे जो की उनके लिए जरुरी था पर .............. अब इनसानों के लिए डर कुछ और था ये था इंसानों का डर क्योकि कुछ लोग ताक़त के बदले लूट पाट किया करते थे और समुदाय में रहने वाला इंसान के लिए ये चलते फिरते समुदाय (डाकू इत्यादी ) का डर था जो की