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Showing posts from January 25, 2011

डा श्याम गुप्त का गीत ......ए मेरे मन ....

ऐ मेरे मन ...ऐ मेरे में..ऐ मेरे में .. आज तू है उदास क्यों इतना , कैसी चिंता ने तुझको घेरा है | किन ख्यालों में आज डूबा हुआ, कौन से गम ने डाला डेरा है ||.....ऐ मेरे मन ... हमने देखे जो सपने तू उन्हें याद न कर, टूटे सपनों की किसी से तू फ़रियाद न कर | तेर सपने थे कि सुन्दर ज़हां बसायेंगे, देश संस्कृति को नए ढंग से सजायेंगे |.....ऐ मेरे मन .... मिट गए देश की खातिर जो लिए सिर  पै कफ़न, मिट गए चाह लिए एसा व स्वाधीन वतन | मिट गए आस लिए देश बनेगा ये चमन | लुट गए देश पै ,बन जाए यही राहे- अमन ||.......ऐ मेरे मन .... बात अब देश संस्कृति की न करता कोई, उन शहीदों की भी राहों पै न चलता कोई | याद में वीरों की अब कौन लगाए मेले , बीर रस के भी नहीं गीतों को सुनता कोई ||......ऐ मेरे मन .... श्याम, चलिए जहां गम के न हों मेले कोई, हम अकेले हों न हों सारे झमेले कोई | याद में वीरों की पथ-दीप जलाए जाएँ, उन की रहां को भी पुष्पों से सजाये कोई || ऐ मेरे मन ....ऐ मेरे मन .... ऐ मेरे मन .....||

कट्टरताओं मत बाँटो देश ---- मिथिलेश

नया युग वैज्ञानिक अध्यात्म का है । इसमें किसी तरह की कट्टरता मूढता अथवा पागलपन है। मूढताए अथवा अंधताये धर्म की हो या जाति की अथवा फिर भाषा या क्षेत्र की पूरी तरह से बेईमानी हो चुकी है । लेकिन हमारें यहां की राजनीति इतनी भ्रष्ट हो गई है कि उन्हे देश को बाँटने के सिवाय कोई और मुद्दा ही नहीं दिखता । कभी वे अलग राज्य के नाम पर राजनीति कर रहे हैं तो कभी जाति और धर्म के नाम पर । जिस दश में लोग बिना खाए सो जा रहे हो , कुपोषण का शिकार हो रहें हो , लड़किया घर से निकलने पर डर रही हो उस देश में ऐसे मुद्दों पर राजनीति करना मात्र मूर्खता ही कही जा सकती है । आज से पाँच-छह सौ साल पहले यूरोप जिस अंधविश्वास दंभ एंव धार्मिक बर्बरता के युग में जी रहा था, उस युग में आज अपने देश को घसीटने की पूरी कोशिश की जा रही है जो किसी भी तरह से उचित नही है। जो मूर्खतायें अब तक हमारे निजी जीवन का नाश कर रही थी वही अब देशव्यापी प्रागंण में फैलकर हमारी बची-खुची मानवीय संवेदना का ग्रास कर रही है । जिनकें कारण अभी तक हमारे व्यक्तित्व का पतन होता रहा है जो हमारी गुलामी का प्रमुख कारण रही, अब उन्ही के कारण हमारा देश एक बार फ