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Showing posts from February 19, 2011

समर्पण

चाँद तारों की बात करते हो  हवा का  रुख  बदलने की   बात करते हो  रोते बच्चों को जो हंसा दो  तो मैं जानूँ | मरने - मारने की बात करते हो  अपनी ताकत पे यूँ इठलाते  हो   गिरतों को तुम थाम लो  तो मैं मानूँ | जिंदगी यूँ तो हर पल बदलती है अच्छे - बुरे एहसासों से गुजरती है   किसी को अपना बना लो  तो में मानूँ | राह  से रोज़ तुम गुजरते हो  बड़ी - बड़ी बातों  से दिल को हरते हो  प्यार के दो बोल बोलके  तुम  उसके चेहरे में रोनक ला दो  तो मैं जानूँ | अपनों के लिए तो हर कोई जीता है  हर वक़्त दूसरा - दूसरा  कहता है | दुसरे को भी गले से जो तुम लगा लो  तो मैं मानूँ | तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है  खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है  नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो  तो मैं मानूँ |