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Showing posts from March 1, 2009

हद है बेशर्मी की ये

हाल ही में केन्द्र सरकार ने बताया है कि अभिनव बिंद्रा का गोल्ड मैडल जीतना, स्लाम्दाग मिलिनयर के आस्कर जीतने, पिंकी इस्माईल का ऑस्कर जीतना हमारी उपलब्धि है। सरकार इन उपलब्धियों के लिए ख़ुद की पीठ थपथपा रही है। बात यही ख़तम नही होती, बेशर्मी की हद पार करते हुए मनमोहन सरकार लोकसभा चुनाव में इन जीतो से अपने भीख के कटोरे को चमकाने की कोशिश में है। मौजदा सरकार नागरिको को क्या इतना बेवकूफ समझती है कि उसकी ये दलील मान ली जायेगी। आज का भारतीय हर ढंग से इतना सक्षम है कि जान सके सच क्या है। अभिनव ने ओलंपिक से लौट कर बताया था कि कुछ खेल अधिकारियो ने उनकी क्षमता पर सवाल खड़े किए। अभिनव के पिता ने उन्हें अच्छी सुविधाए देने के लिए अपनी गांठ के ५ करोड़ खर्च कर दिए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने यह कहा है कि उनके मैडल पर सरकार का नही बल्कि देशवासियो का हक़ बनता है। सोचिये अगर अभिनव के पिता ने उनकी कोई मदद नही कि होती तो क्या गोल्ड मैडल का ख्वाब देखा जा सकता था। उन्हें एक अच्छी पिस्टल तक न उपलब्ध कराने वाली सरकार आज कहती है अभिनव भी हमारा, गोल्ड भी हमारा। स्लाम्दाग में दिखाई गई झुग्गियो के बच्चो कि लाचारी क

इबारत.................. "आस्था"

पूजा करती  थी कल तुम्हारी करती हूँ आज भी सोचकर  कि भगवान  को  हमेशा ही हक़ होता है गुनाह  करने का ...........|

शाकाहार या मांसाहार?

इस ब्लॉग में कुछ दिनों पहले छपी पोस्ट '' मांसाहार क्यों जायज़ है '' मैंने काफी रुचि लेकर पढी. मुझे बहुत अफ़सोस है की एक विषय को धर्म आदि से जोड़कर जायज़ दिखाया जा रहा है। यह सर्वविदित है की मांसाहार कई रोगों का घर है और मनुष्य के स्वभाव में आक्रामकता पैदा करता है। संभवतः शाकाहारी होने के कारण ही भारतीय लोग लड़ने-मरने का दम नहीं रखते, ऐसी बात अक्सर लोग कहते हैं पर यह बकवास है। यदि भारतीय लड़ने-मरने का दम नहीं रखते तो इसके पीछे उनकी दार्शनिकता और आरामतलबी है। और अब तो भारतीयों ने अपनी बुद्धि और काबिलियत का हर जगह लोहा भी मनवा लिया है। ऐसे लोगों में शाकाहारियों का प्रतिशत ही ज्यादा निकलेगा। मुझे जो बात बुरी लगी वो यह है की फिजूल के तर्क करके मांसाहार करना जायज़ बताया गया है। मैं मांसाहारियों से नफरत नहीं करता या किसी पर शाकाहार नहीं थोपता पर इस बात पर हमेशा बल देता हूँ कि शाकाहार मनुष्य के लिए उत्तम है। ऐसे प्रदेशों में जहाँ साग-सब्जी उत्पन्न नहीं होती वहां यदि लोग मांसाहार करते हैं तो इसमें कोई दोष नहीं है। बौद्ध धर्म में मांसाहार को त्यागने के लिए कहा गया है पर तिब्बत म

अभिषेक आनंद की सराहनीय कविता-भोली माँ

कलम का सिपाही कविता प्रतियोगिता के अंतर्गत हम आज सम्मानीय श्रेणी के लिए जो कविता प्रकाशित कर रहे है उसे अपने अल्फाजों से सजाया है ''अभिषेक आनंद'' जी ने !अभिषेक जी बिहार के पटना से बास्ता रखते है ! आप लोग इनकी कविता पर अपनी राय जरुर दें!! " भोली माँ " कुछ भी नहीं समझती है माँ ! किवाड़ पर हलकी सी भी आहट हो तो रात भर , अकेली , जागी रह जाती है ; मुझे घर आने में थोडी देर हो , तो चलकर , मोड़ तक पहुँच आती है ; कभी भूखे पेट जो , सो जाऊं , तो वो भी , कुछ खा नहीं पाती है .... उसको समझाऊं कैसे ! अब मै बड़ा हो गया हूँ , रख सकता हूँ अपना ख़याल . मगर ... गोद से लेकर अबतक , पाला है जो उसने , अब भी मुझे बच्चा ही समझती है ; मेरे लिए परेशान सी रहती है ; ...जो मै सोचता हूँ , वो शुकून से रहे ; ...जो मै दुआ करता हूँ , वो लम्बी उम्र जिए ; ...जो मै भी चाहता हूँ , वो भी पूरी नींद ले . पर , कैसे समझाऊं उसे !!! मेरे बारे में तो सोचती है पर मेरे जैसा नहीं सोचती है माँ ... बहुत भोली है , कुछ भी नहीं समझती है माँ !! आगे पढ़ें के आगे यहाँ

परीक्षा

परीक्षा विवेक रंजन श्रीवास्तव सी ६ , विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. परीक्षा जीवन की एक अनिवार्यता है . परीक्षा का स्मरण होते ही याद आती है परीक्षा की शनैः शनैः तैयारी . निर्धारित पाठ्यक्रम का अध्ययन , फिर परीक्षा में क्या पूछा जायेगा यह कौतुहल , निर्धारित अवधि में हम कितनी अच्छी तरह अपना उत्तर दे पायेंगे यह तनाव . परीक्षा कक्ष से बाहर निकलते ही यदि कुछ समय और मिल जाता या फिर अगर मगर का पछतावा ..और फिर परिणाम घोषित होते तक का आंतरिक तनाव . परिणाम मिल जाने पर भी असंतुष्टि या पुनर्मूल्यांकन की चुनौती ..हम सब इस प्रक्रिया से किंचित परिवर्तन के साथ कभी न कभी कुछ न कुछ मात्रा में तनाव सहते हुये गुजरे ही है . टी वी के रियल्टी शोज में तो इन दिनों प्रतियोगी के सम्मुख लाइव प्रसारण में ही उसे सफल या असफल घोषित करने की परंपरा चल निकली है .. परीक्षा और परिणाम के इस स्वरूप पर प्रतियोगी की दृष्टि से सोचकर देखें . सामान्यतः परीक्षा लिये जाने के मूल उद्देश्य व दृष्टिकोण को हममें से ज्यादातर लोग सही परिप्रेक्ष्य में समझे बिना ही येन केन प्रकारेण अधिकतम अंक पाना ही परीक्षा का उद्देश्य मान

जो सींच गए......................

मेरे भारत की आजादी, जिनकी बेमौल निशानी है। जो सींच गए खूं से धरती, इक उनकी अमर कहानी है। वो स्वतंत्रता के अग्रदूत, बन दीप सहारा देते थे। खुद अपने घर को जला-जला, मां को उजियारा देते थे। उनके शोणित की बूंद-बूंद, इस धरती पर बलिहारी थी। हर तूफानी ताकत उनके, पौरुष के आगे हारी थी। मॉ की खातिर लडते-लडते, जब उनकी सांसें सोई थी। चूमा था फॉंसी का फंदा, तब मृत्यु बिलखकर रोई थी। ना रोक सके अंग्रेज कभी, आंधी उस वीर जवानी की। है कौन कलम जो लिख सकती, गाथा उनकी कुर्बानी की। पर आज सिसकती भारत मां, नेताओं के देखे लक्षण। जिसकी छाती से दूध पिया, वो उसका तन करते भक्षण। जब जनता बिलख रही होती, ये चादर ताने सोते हैं। फिर निकल रात के साए में, ये खूनी खंजर बोते हैं। अब कौन बचाए फूलों को, गुलशन को माली लूट रहा। रिश्वत लेते जिसको पकड़ा, वो रिश्वत देकर छूट रहा। डाकू भी अब लड़कर चुनाव, संसद तक में आ जाते हैं। हर मर्यादा को छिन्न भिन्न, कुछ मिनटों में कर जाते हैं। यह राष्ट्र अटल, रवि सा उज्ज्वल, तेजोमय, सारा विश्व कहे। पर इसको सत्ता के दलाल, तम के हाथों में बेच रहे। ये भला देश का करते हैं, तो सिर्फ कागजी कामों में।