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Showing posts from February 11, 2009

हर ओर सृजन

आए प्रेममास के पुलकित दिन ऋतुराज की तरुनाई कहू इसे या कहूं वसंत का यौवन आए प्रेममास के पुलकित दिन हर गुलशन गुलजार हुआ हर भवरे को मिला निमंत्रण आए प्रेममास के पुलकित दिन इसकी सुबह, इसकी शामें, इसकी रातें क्षण-क्षण मादक हर पल चंचल आए प्रेममास के पुलकित दिन विषबेल बन गई अमर बेल बंजर में गुंजन करें फूल आए प्रेममास के पुलकित दिन चौखट-चौखट चंदा चमके आँगन-आँगन बेला महके बगिया में खिले गुलाबों पर जूही रीझे चंपा अकुले आए प्रेममास के पुलकित दिन इठलाती नदिया भी रुक-रुक सागर से हँसी ठिठोल करे आए प्रेममास के पुलकित दिन गुमसुम बच्चे भी करें शोर जीवन की कैसी नई भोर आए प्रेममास के पुलकित दिन धरणी पर उतरे कामदेव रमणी के दिल में उथल-पुथल आए प्रेममास के पुलकित दिन कैसी टूटन कैसी सिहरन हर ओर सृजन हर ओर सृजन आए प्रेममास के पुलकित दिन दीक्षांत तिवारी हिंदुस्तान, आगरा मीठीमिर्ची.ब्लागस्पाट.कॉम

सेक्स ........बिंदास ..अ..अ..अ..अ........बोल (भाग-२)

दो-तीन दिन से मैं विश्विद्यालय (जामिया ) नहीं जा पा रहा हूँ । नौ और दस फ़रवरी को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी में व्यवस्था का देख रहा था । संगोष्ठी का विषय था - शिक्षा और राष्ट्र पुनर्निर्माण में छात्रों की भूमिका । वहां जामिया , जे एन यू तथा डीयू के युवा शक्ति के अलावा शिक्षकगण और कुछ प्रख्यात शिक्षाविद जिनमें श्री दीनानाथ बत्रा ,श्री धर्मेन्द्र जिज्ञासु व श्री बीएस राजपूत मौजूद थे । चर्चा के दौरान शिक्षा और राष्ट्र पुनर्निर्माण को लेकर विभिन्न विषयों पर प्रतिभागियों समेत अतिथि वक्ताओं ने भी अपनी -अपनी बात रखी । मुझे ठीक -ठीक याद नहीं , लेकिन किसी ने यौन शिक्षा पर काफी अच्छे तर्क प्रस्तुत करते हुए उसे हटाने की मांग की । आज के उत्तर आधुनिक युग में आपको ये बात बड़ी संकुचित और रुढिवादी लग सकती हैं ! ये तो मैं पिछले आलेख में कह चुका हूँ की आपको रुढियों को परिभाषित करना होगा । खैर ! संगोष्ठी के दौरान हीं मुझे एक ने जामिया से फ़ोन पर एक घटना की जानकारी दी जो इस प्रकार है-" हेलो , हाँ ....... जयराम , एक मजेदार बात सुन यार , ..................