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Showing posts from February 21, 2009

विनोद बिस्सा जी की कविता ''असमंजस विनाशकारी''

इस कड़ी में अब हम जो कविता प्रकाशित कर है उसे अपने शब्दों से सजाया है विनोद बिस्सा जी ने ,विनोद जी की इस कविता ने शीर्ष पाँच में तीसरा स्थान प्राप्त किया है ! हम विनोद की को बहुत बहुत बधाई देते है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते है ,आप लोगों से आग्रह है की उनकी इस कविता पर अपनी राय के रूप में समीक्षा भेजें ! असमंजस विनाशकारी प्रतिक्षण समय भाग रहा इस बात से बेखबर किस पथ जाऊं मैं पथिक खड़ा सोच रहा हर पलबे-फिकर नहीं समझ पा रहा वह क्या उसने उचित यह पथ चुना ? जिस पथ को वह ताके सुख दुख दोनो खड़े दिखें दोराहे पर खड़ा वह विस्मित पूरा समय युं ही खो दे असमंजस विनाशकारी ये बात वह नहीं समझ रहा हर पल खोजने में सही पथ पूरी ताकत झोंक रहा ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ विनोद बिस्सा आगे पढ़ें के आगे यहाँ

शांति और आनंद के दाता शिव

विनय बिहारी सिंह एक दिन बाद शिवरात्रि है। माना जाता है कि शिवरात्रि की रात जाग कर शिव जाप करने से वे प्रसन्न होते हैं। प्रसन्न हो कर क्या करेंगे। कहा जाता है- वे जीवन में शांति लाते हैं। हमें तनाव मुक्त करते हैं। शिव जी जिसको प्यार करते हैं, उसे किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं। इसीलिए तो उन्हें औघड़ दानी कहते हैं। वे सिर्फ देना जानते हैं। देना और उद्धार करना। भगवान शिव तुरंत प्रसन्न होने वाले देवता हैं। वे ज्यादातर ध्यान मुद्रा में बैठे रहते हैं। लेकिन समूचे ब्रह्मांड की गतिविधियां उनकी जानकारी में रहती हैं। रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि पुराणों में जिन्हें कृष्ण कहा गया है, तंत्रों में उन्हें ही शिव कहा गया है। वही परमब्रह्म हैं। चाहे कृष्ण कहें या शिव, चाहे काली कहें या दुर्गा। वही सृष्टि करने वाले, उसका पोषण करने वाले और अंत में संहार करने वाले हैं। ऋषियों ने कहा है कि जो पैदा होता है वह खत्म भी होता है। लेकिन जो सनातन है, वह कभी खत्म नहीं होता। ईश्वर के अलावा सब कुछ तो नश्वर है। और शिव जी तो वीतरागी हैं। एक मृगछाला पहने, शरीर में भभूत लगाए और ध्यान में बैठे हैं। न उन्हें अच्छा

काश, हमारा ऑफिस गांव में होता…

काश , हमारा ऑफिस आज गांव में होता… तो हम आज सुबह उठते, छोटे से ट्रांजिस्टर पर आकाशवाणी से समाचार सुनते कि मुम्बई में पेट्रोल नहीं मिलने से लोगों को भारी दिक्कत हो रही है, और आश्चर्य करते कि पेट्रोल की इतनी क्या जरूरत है। फिर नाश्ता करके घर से निकलते और खरामा- खरामा टहलते हुए ऑफिस पहुंच जाते जो कि घर से दस कदम की दूरी पर होता। रास्ते में साइकिल से शहर जाते स्कूल के गुरु जी से दुआ- सलाम भी कर लेते। ऑफिस जाकर कुर्सी- टेबल बाहर निकालते और नीम पेड़ के नीचे, गुनगुनी धूप में काम करने बैठ जाते। पास की गुमटी से चूल्हे में लकड़ी जला कर बनाई गई दस पैसे की अदरकवाली चाय भी आ जाती। चाय आती तो साथी भी आ जाते, अखबार भी ले आते। फिर अखबार में छपी दुनिया भर की खबरों पर चर्चा की जाती, सुबह सुने समाचार को “ब्रेकिंग न्यूज” की तरह पेश किया जाता और मुम्बई के लोगों की हंसी उड़ाई जाती कि बेचारे बिना पेट्रोल के ऑफिस नहीं जा पा रहे हैं। फिर चर्चा की जाती कि मुम्बई के लोगों को ऎसी मुसीबत से बचने के लिए क्या करना चाहिए। आधे लोग आश्चर्य करते कि मुम्बई वाले चीन की तरह साइकिल पर क्यों नहीं चलते, बाकी आधे आश्चर्य करते कि