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Showing posts from August 26, 2009

लो क सं घ र्ष !: विश्व अर्थतंत्र में विकासमान देशों की भूमिका

अभी हाल ही में (जून 2009 में) रूस के येकातेरिनबर्ग नामक शहर में ‘ब्रिक’ देशों का शिखर सम्मेलन हुआ। ‘ब्रिक’ का अर्थ है: ब्राजील, रूस, इण्डिया (भारत) और चीन। इन देशों के अंगे्रजी नामों के पहले अक्षरों को मिलाकर ब्रिक बनता है। इसके अलावा शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद ही शंघाई सहयोग समिति (एस0सी0सी0) की बैठक भी हुई। यह देशों का मिलाजुला संगठन हैं जिसमें रूस, चीन और भारत शामिल हैं। उपर्युक्त सम्मेलन आज के विश्व और वैश्विक अर्थतंत्र में विकासमान देशों की बढ़ती भूमिका दर्शाते हैं। द्वितीय विश्व यु़द्ध के बाद साम्राज्यवादी संकट के फलस्वरूप अधिकतर पिछड़े देश आजाद होते चले गये। लेकिन इन नये आजाद देशों के सामने सबसे बड़ी समस्या थी आर्थिक पिछड़ेपन की, जो उन्हें राजनैतिक तौर पर भी स्थिर नहीं होने दे रही थी। पिछड़े और विकासमान देशों की एक सम्पूर्ण श्रेणी ही उभर आई जिन्हें सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवाद से था। इन पिछड़े देशों के सामने कृषि, उद्योगों, भारी मशीनों, यातायात, बाजार, अर्थतंत्र इत्यादि के विकास की समस्याएं मँुंह बाए खड़ी थीं। संसाधन, स्रोत, धन एवं पूँजी तथा तकनीक कहाँ से आयेगी? ऐसे में समाजवादी देश सहाय

वह पगली...

सुबह उठ कर मैछत पर जाता तो वह अपनी खिड़की से हमें देखती और मुस्कुराती जब मै सुबह उसे देखता तो हमें उसके होठो की लाली सूरज की लालिमा के समान दिखाती और जब वह हसती थी तो सूरज की किरणे उसकी मुह के अन्दर से हमें आकर्षित कराती॥ जब मै हस देता तो वह हमारे पास आती॥ और मै कहता शुभ प्रभात तो वह यही कहती की आप ही तो मेरे प्रभात है॥ जब मै उसके हाथो को छूटा तो हमें पूरब की हवा के झोके का एहसास होता। और जब उसकी आँखों को देखता तो हमारी तस्वीर जयमाल लिए उसके गले में डालने की कोशिश करता॥ अगर एक दिन के लिए मै कही चला जाता तो उस सुबह वाब छत की तरफ़ न आती और न किसी से बातें करते .जब मै कभी उसे स्पर्श करता तो बादल खुस होते और आकाश गंगा अपनी अम्रत जल से हम लोगो को तृप्त करती । अगर हमें किसी दिन jukhaam जो जाता तो वह हमारे लिए कितने मंदिरों का चक्कर लगाती। वह वही कहती जो मै सोचता ..हमारी khushiyaa उसकी खुशिया थी । वह हमारे जीवन की लकीर थी ॥ लेकिन पता नही किसकी नज़र लगी की ३ साल से उसका॥ कोई अता पता नही वह अपने गाँव चली गई है। और हमारे से उसका संपर्क नही है। वह कैसे होगी पगली॥

लो क सं घ र्ष !: लघुतम जीवन का अर्पण...

इसके विशाल पैरो में मानव का आत्म समर्पण। भावना विनाशी का क्रंदन लघुतम जीवन का अर्पण ॥ घर काल जयी आडम्बर, इस नील निलय के नीचे । भव विभव पराभव संचित, लालसा कसक को भींचे ॥ निज का यह भ्रम विस्तृत है , है जन्म मरण के ऊपर। यह महा शक्ति बांधे है, युग कल्प और मनवंतर ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'