विमर्श : भारतीय न्यायपालिका में राजनीति की सेंध : स्वतन्त्रता दिवस के हर्षोल्लास में भारत के लोकतंत्र के सर्वाधिक सदृश और विश्वासपात्र स्तंभ न्यायपालिका की नींव में राजनीती की सेंध लगाने की और लोगों का ध्यान नहीं जा पाया। माननीय न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में कॉलेजियन प्रणाली को समाप्त कर नयी प्रणाली को लाने के लिये बिल संसद में बिना विशेष बहस के लगभग सर्व सम्मति से पास कर दिया गया. भारतीय संसद में सिवाय भाटी और सुविधाएँ बढ़ाने के दलों और नेताओं में कभी किसी बिंदु पर मतैक्य नहीं होता। न्यायिक सक्रियता के कारण सभी दलों के नेताओं को पिछले दिनों कटघरे में पहुँचाना पड़ा। जनता को हार्दिक प्रसन्नता हुई किन्तु नेताओं के मन में न्यायाधीशों के प्रति कटुता पल गयी. कॉग्रेस कसमसाती रही किन्तु न्यायपालिका को छेड़ने की हिम्मत नहीं कर सकी. गत आम चुनाव में बी.जे.पी. को मिले जनमत का श्रेय मोदी जी को दिए जाने और मोदी जी की दबंग व्यक्तित्व के कारण विरोधी दल राजनैतिक विरोध के दमन किये जाने को लेकर आशंकित हैं. इस कारण लालू और नीतीश जैसे धुर विरोधी भी गले मिले हैं. न्यायपालिका के प्रति