Skip to main content

Posts

Showing posts from October 28, 2009

नवगीत : चीनी दीपक दियासलाई --संजीव 'सलिल'

नवगीत संजीव 'सलिल' चीनी दीपक दियासलाई, भारत में करती पहुनाई... * सौदा सभी उधर है. पटा पड़ा बाज़ार है. भूखा मरा कुम्हार है. सस्ती बिकती कार है. झूठ नहीं सच मानो भाई. भारत में नव उन्नति आयी... * दाना है तो भूख नहीं है. श्रम का कोई रसूख नहीं है. फसल चर रहे ठूंठ यहीं हैं. मची हर कहीं लूट यहीं है. अंग्रेजी कुलटा मन भाई. हिंदी हिंद में हुई पराई...... * दड़बों जैसे सीमेंटी घर. तुलसी का चौरा है बेघर. बिजली-झालर है घर-घर.. दीपक रहा गाँव में मर. शहर-गाँव में बढ़ती खाई. जड़ विहीन नव पीढी आई... *

सेक्स बेचा जाता है लेकिन यहां नहीं...

नई दिल्ली. दिल्ली में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी भले ही रफ्तार न पकड़ पा रही हो लेकिन यहां पर कॉलगर्ल की तैयारी जोर पकड़ने लगी है। दिल्ली में लड़कियों की संख्या में 50 फीसदी तक की कमी आ गई है जिसे पूरा करने के लिए मुंबई, बेंग्लोर और पूणे से भारी संख्या में लड़कियों को मंगाया जा रहा है। यह तो जगजाहिर है कि ऐसे खेल के आयोजन के दौरान लड़कियों की डिमांड भी बढ़ जाती है। और दलाल अच्छा पैसा कमाने के लिए ऐसे समय दोगुने दाम की मांग करते हैं। सबसे बड़ी बात बाहर से आने वाले मेहमानों में यह डिमांड सबसे ज्या दा रहती है। वे खेल का भरपूर मजा तो लेते ही हैं साथ में अपनी शारीरिक भूख भी मिटाते हैं। एक प्रमाण के मुताबिक जब भी इस प्रकार के खेल का आयोजन होता है उस समय कंडोम की बिक्री में भी एकाएक इजाफा हो जाता है। बीते वर्ष चीन में संपन्न हुए ओलंपिक खेल में एक लाख से ज्यादा कंडोम की बिक्री हुई थी, जिससे यह तो साफ हो जाता है कि ऐसे समय में लड़कियों की संख्या एकाएक बढ़ जाती है। वहीं दूसरी तरफ हम खेल का आयोजन इसलिए करते हैं जिससे दो देश अथवा अलग-अलग देश एक दूसरे के और नजदीक आ सकें, दो देशों के बीच आपसी

तुम मोती बन जाओ न..

जब मोती बन के आओगे॥ मै सीप सदा बन जाऊगी॥ अपने सीने के अन्दर यारा॥ तुझको वहा छुपाऊगी॥ कोई ढूढ़ नही पायेगा॥ अपना तुझे बनाऊगी॥ तुम साज़ बनोगे मेरा॥ मै शहनाई बन जाऊगी॥ हे प्रीतम अपने हाथो से॥ तेरा चमन सजाऊगी॥ फूल हंसेगे आँगन में॥ मै उनको गीत सुनाऊगी॥

एक बिंदास कवि..

एक बिंदास कवि ने बोला॥ कविता क्या निराली हो॥ मेरे हाथो से लिखी गयी हो॥ लेकिन मुझसे प्यारी हो॥ चुन चुन के शब्दों को ढूढा॥ एक अर्थ बनाया मैंने था॥ सब लोगो की जुबा पे तुम हो॥ पर मुस्कान हमारी हो॥

काहे पहनू लाल चुनारिया..

काहे पहनू लाल चुनारिया॥ काहे करू सिंगार॥ कौने कारण मिलू अकेले॥ कौन बा हमसे काम॥ हंस के पहने लाल चुनारिया॥ मर्जी से करे सिंगार॥ हमका तोअसे प्यार भइल बा॥ बस यही जरूरी काम॥ आवा तोहे अचरा से ओंट कर ली॥