नवगीत संजीव 'सलिल' चीनी दीपक दियासलाई, भारत में करती पहुनाई... * सौदा सभी उधर है. पटा पड़ा बाज़ार है. भूखा मरा कुम्हार है. सस्ती बिकती कार है. झूठ नहीं सच मानो भाई. भारत में नव उन्नति आयी... * दाना है तो भूख नहीं है. श्रम का कोई रसूख नहीं है. फसल चर रहे ठूंठ यहीं हैं. मची हर कहीं लूट यहीं है. अंग्रेजी कुलटा मन भाई. हिंदी हिंद में हुई पराई...... * दड़बों जैसे सीमेंटी घर. तुलसी का चौरा है बेघर. बिजली-झालर है घर-घर.. दीपक रहा गाँव में मर. शहर-गाँव में बढ़ती खाई. जड़ विहीन नव पीढी आई... *