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Showing posts from September 15, 2010

पीले रुमाल का फंदा

. किसी भी नए सदस्य को ठगों के गिरोह में शामिल करने से पहले वो उसे कब्रगाह पर बैठाकर गुड़ जरुर खिलाता था। एक बार कैप्टन स्लीमैन ने एक ठग से इसका कारण पहुंचा तो उसने जबाब दिया कि हुजूर ‘तपोनी’ (यानि कब्रगाह) का गुड़ जिसने भी चखा, उसके लिये “दुनिया ही दूसरी हो गई।” अगर आपने भी तपोनी का गुड़ खा लिया तो “फौरन ठग बन जाओगे…” जिस रास्ते से वो गुजरता था, वहां कोसों दूर इंसान तो क्या इंसानों की छाप तक मिलनी बंद हो जाती थी। जहां-जहां भी वो जाता, लोग इलाका खाली कर उसकी पहुंच से दूर निकल जाते। जानते हैं क्यों ? इंसान के भेष में वो था एक खूंखार जानवर। पैसे के लिये वो लोगों को अपना निशाना बनाता था और उसका हथियार होता था रुमाल। जी हां एक पीला रुमाल ! वो रुमाल से देता था अपने शिकार को मौत। क्योंकि खून से लगता था दुनिया के सबसे खूंखार सीरियल किलर को डर। एक नहीं, दो नहीं, दो सौ नहीं तीन सौ नहीं पूरे 931 लोगों को उतारा था उसने अपने पीले रुमाल से मौत के घाट। व्यापारी, काफिला और पीला रुमाल... ये दास्तां है एक ऐसे ठग की जिसे दुनिया का आजतक का सबसे क्रूर सीरियल किलर का खिताब हासिल है। बेहराम नाम का वो ठग अ

जीवन एक कला

    जीवन का जीवन से परिचय ही हमे जीने की कला सिखाता है ! जिस तरह सारा समाज सारी शिक्षा  हमे तब तक सही राह  नहीं दिखा  सकती जब तक हमे जीवन को जीने का सही ज्ञान प्राप्त न हो जाये ! जीवन को सही से जीने के लिए मनुष्य के अन्दर सकारात्मक सोच का होना बहुत जरुरी है क्युकी  उसमे हर वो गुण हैं जेसे अच्छी सोच ,प्यार , क्षमा करोध ,बस उसे तो इन सुब का इस्तेमाल सही जगह पर करने की देर है ! अगर हम किसी से प्यार करते हैं तो वो भी सच्चे   दिल से करे ओर राह में कोई भी बाधा आये तो उससे भी न डरे और अगर किसी से  नफ़रत करते हैं तो वो भी खुल कर करे उसमे  भी कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए हमे अपने सभी एहसासों को खुल कर जीना चाहिए और एक आज़ाद जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए !                                                                                                                               आज का मानव न तो खुल कर अपनी भावनाओ को व्यक्त  कर पता है बल्कि उस पर मुखोटा चड़ा कर कुच्छ और ही प्रदर्शित करता है ! दिल कुच्छ और चाह रहा होता है और बहार से न चाहते हुए भी हम उसे अपना लेते हैं ! जिस वजह से हम अन्दर से भी परे

चैनलों की चमड़ी चमकदार होते हुए भी मोटी है

जयप्रकाश चौकसे – यह मजे की बात है कि आमिर खान ने अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता की सिताराविहीन फिल्म पीपली लाइव का प्रचार उसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से किया, जिसका मखौल उनकी फिल्म उड़ाती है। मीडिया ने इस पर एतराज भी नहीं किया क्योंकि उन्हें किसी भी कीमत पर सितारा चाहिए, भले ही उसके हाथ में इनके लिए जूता ही क्यों न हो। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आत्मसम्मान खो दिया है और उनकी इनस्यूलर आत्मा पर आलोचना का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उनकी चमड़ी चमकदार होते हुए भी मोटी है। यह सच है कि भारत में प्राय: मनोरंजन उद्योग अर्धशिक्षित लोगों के हाथ रहा है, परंतु पारंपरिक अर्थ में अशिक्षित फिल्मकारों ने सामाजिक सोद्देश्यता की महान फिल्में भी रची हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कर्णधार बहुत पढ़े-लिखे लोग हैं, इसलिए उनकी संवेदनहीनता पर बहुत दुख होता है। ये पढ़े-लिखे कर्णधार आमिर खान अभिनीत थ्री इडियट्स के उस पात्र की तरह हैं, जो घोटा लगाकर येन केन प्रकारेण उच्चतम अंक अर्जित करता है। चैनल संचालकों के दिमाग इतने छोटे हैं कि उन्हें निकालकर कीड़े-मकोड़ों के जिस्म में फिट किया जा सकता है, परंतु इनकी फितरत ऐसी है कि वहां