माँ सरस्वती शत-शत वन्दन संजीव 'सलिल' माँ सरस्वती! शत-शत वंदन, अर्पित अक्षत हल्दी चंदन. यह धरती कर हम हरी-भरी, माँ! वर दो बना सकें नंदन. प्रकृति के पुत्र बनें हम सब, ऐसी ही मति सबको दो अब- पर्वत नभ पवन धरा जंगल खुश हों सुन खगकुल का गुंजन. * माँ हमको सत्य-प्रकाश मिले, नित सद्भावों के सुमन खिलें. वर ऐसा दो सत्मूल्यों के शुभ संस्कार किंचित न हिलें. मम कलम-विचारों-वाणी को मैया! अपना आवास करो- मेर जीवन से मिटा तिमिर हे मैया! अमर उजास भरो.. * हम सत-शिव-सुन्दर रच पायें ,धरती पर स्वर्ग बसा पायें. पीड़ा औरों की हर पायें, मिलकर तेरी जय-जय-जय गायें. गोपाल, राम, प्रहलाद बनें, सीता. गार्गी बन मुस्कायें. हम उठा माथ औ' मिला हाथ हिंदी का झंडा फहरायें. * माँ यह हिंदी जनवाणी है, अब तो इसको जगवाणी कर. सम्पूर्ण धरा की भाषा हो अब ऐसा कुछ कल्याणी कर. हिंदीद्वेषी हो नतमस्तक खुद ही हिंदी का गान करें- हर भाषा-बोली को हिंदी की बहिना वीणापाणी कर. *