आप आए दिल के आशियाने में क्या कहें क्या ना हुआ ज़माने में बात जो थी बस लवों तक आपके होगई है बयाँ हर फ़साने में । हम चलें उस आसमान के छोर तक, छोड़ना पङता है कुछ ,कुछ पाने में। प्रीति का यह चलन कब भाया किसे, कब कसर छोडेंगे ,ज़ुल्म ढाने में । इश्क फूलों का चमन ही तो नहीं, राह काँटों की है हर ज़माने में। ज़िंदगी हो गुले-गुलशन कब मज़ा, जो मज़ा काँटों में गुनगुनाने में। बात अपनी बने या ना बने श्याम, ना कसर रह जाय आज़माने में॥