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Showing posts from April 22, 2009

Loksangharsha

हम अहिंसा के पुजारी है ,अमन रखते है। कर भला होग भला, ऐसा वचन रखते है। हमको कमजोर न समझो ऐ दुनिया वालो- तन लंगोटी है मगर सर पर कफ़न रखते है ॥ आंसुओ के बिना नैन वीरान है। चाह के बिना रूप पाषाण है। आदमी का भी हक है वो गलती करे- गलतियों के बिना एक भगवान है॥ सपनो के तार सब टूट टूट जाते है। मिलकर भी मीत छूट छूट जाते है। प्यार का नियम यह हम आजतक न समझे अपने क्यों अपनों से रूठ रूठ जाते है। खो गया सच तलाश करते है। प्यार का पथ तलाश करते है । पीठ के घाव से तड़पकर हम- अत्मियत तलाश करतें है ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है । सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ??? अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा । फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है । सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे । इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में ! यह सनसनी है या हकीकत नही पता । अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ... इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पत

साकर गली म नेता जी,,

गाव की साकरगलियां म नेता जी रोजई जात अहा॥ माई दादा काकी चाचा से। हाथ जोड़ बियात अहा॥ गाँव की खस्ता हाल देख के। मन म बहुत लजात अहा॥ केऊकेऊ बोले अब आवा बाटे। ५ साल के बाद॥ काना फुंशी केऊ कराय। कहे मारा घून्षा लात॥ जनता के बतिया सुन के नेता जी सकुचात अहा॥ पानी सड़क न बिजली बाटे। न सुविधा के नाम आहे॥ नदिया कैसे पार करी । बुधू दादा कहत अहा॥ नेता के आश्वाशन सुन के लोगे॥ नेता के बात ओनात अहा॥ जूता चप्पल खात अहा॥ महफ़िल म फ़िर से जात अहा॥

वियोग के बादल छाए..

दिल चुरा के चले गए। दो गज की दूरी छोड़कर॥ मै वहा से हिल न सकी। तुम चले गए मुह मोड़ कर॥ मै पीया गम को तुम्हारे। तुम भी गागर थाम लिए॥ जब जल पूरा भर गया । हस के यूं ही फोड़ दिए॥ अब ठाथर तन हुआ। मन में बसा वियोग॥ फिर से तुमसे मिलन हो॥ हस कहता संयोग॥ वियोग के बादल छाए..

कविता आमंत्रण : अन्तिम तिथि ३०.५.२००९

साहित्य समाचार: भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्बारा नमामि मातु भारती २००९ हेतु रचना आमंत्रित अतिथि संपादक आचार्य संजीव 'सलिल' के कुशल संपादन में शीघ्र प्रकाश्य कोलकाता। विश्ववाणी हिन्दी के में श्रेष्ठ साहित्य सृजन की पक्षधर भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्वारा वश २००२ से हर साल एक स्तरीय सामूहिक काव्य संकलन का प्रकाशन किया जाता है. इस अव्यावसायिक योजना में सम्मिलित होने के लिए रचनाकारों से राष्ट्रीय भावधारा की प्रतिनिधि रचना आमंत्रित है. यह संकलन सहभागिता के आधार पर प्रकाशित किया जाता है. इस स्तरीय संकलन के संयोजक-संपादक श्री श्यामलाल उपाध्याय तथा अतिथि संपादक आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा हैं. हर सहभागी से संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्मतिथि, जन्मस्थान, आजीविका, संपर्क सूत्र, दूरभाष/चलभाष, ईमेल/चिटठा (ब्लोग) का पता, श्वेत-श्याम चित्र, नाम-पता लिखे २ पोस्ट कार्ड तथा अधिकतम २० पंक्तियों की राष्ट्रीय भावधारा प्रधान रचना २५०/- सहभागिता निधि सहित आमंत्रित है. हर सहभागी को संकलन की २ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की जायेंगी जिनका डाकव्यय पीठ वहन करेगी. हर सहभागी की प्रतिष्ठा में &#

मुश्किल ही ना हो जाती...गर उत्तर मिल भी जाते तो....!!

बाकि ही क्या रह जाता गर ..... उत्तर मिल भी जाते तो .....!! और भी मुश्किल हो जाती गर .... उत्तर मिल भी जाते तो ....!! जिन्दगी बड़ी अबूझ रही ..... इसीलिए हमने जी भी ली .....!! वक्त से पहले मर जाते हम गर .... उत्तर मिल भी जाते तो .....!! हमने वक्त को पल - पल सींचा .... पल - पल इक इंतज़ार किया हर पल भारी - भारी हो जाता गर .... उत्तर मिल भी जाते तो ....!! हर दुश्वार को आसां बनाना आदमी की ही अनूठी फितरत है हर आसानी मुश्किल हो जाती गर उत्तर मिल भी जाते तो ....!! हमने मुहब्बत को अपनाया .. और गाफिल सबों से प्यार किया हम गाफिल भला कहाँ रह पाते गर ... उत्तर मिल भी जाते तो ...!!