स्मृति गीत: संजीव 'सलिल' सृजन विरासत तुमसे पाई... * अलस सवेरे उठते ही तुम, बिन आलस्य काम में जुटतीं. सिगडी, सनसी, चिमटा, चमचा चौके में वाद्यों सी बजतीं. देर हुई तो हमें जगाने टेर-टेर आवाज़ लगाई. सृजन विरासत तुमसे पाई... * जेल निरीक्षण कर आते थे, नित सूरज उगने के पहले. तव पाबंदी, श्रम, कर्मठता से अपराधी रहते दहले. निज निर्मित व्यक्तित्व, सफलता पाकर तुमने सहज पचाई. सृजन विरासत तुमसे पाई... * माँ!-पापा! संकट के संबल गए छोड़कर हमें अकेला. विधि-विधान ने हाय! रख दिया है झिंझोड़कर विकट झमेला. तुम बिन हर त्यौहार अधूरा, खुशी पराई. सृजन विरासत तुमसे पाई... * यह सूनापन भी हमको जीना ही होगा गए मुसाफिर. अमिय-गरल समभावी हो पीना ही होगा कल की खातिर. अब न शीश पर छाँव, धूप-बरखा मंडराई. सृजन विरासत तुमसे पाई... * वे क्षर थे, पर अक्षर मूल्यों को जीते थे. हमने देखा. कभी न पाया ह्रदय-हाथ पल भर रीते थे युग ने लेखा. सुधियों का संबल दे प्रति पल राह दिखाई.. सृजन विरासत तुमसे पाई... *